पुस्तक के विषय में
लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व में एक प्रखर राजनीतिज्ञ और अटल इसदों वाले ईमानदार व्यक्ति का आदर्श मेंल था। भारतीय जनमानस के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित शास्त्री जी ने सदैव लोकमत का अनुसरण किया। नम्रता और दृढ़ संकल्प के विवेकपूर्ण संगम वाले शास्त्री जी हर वर्ग के विश्वासपात्र थे। प्रख्यात लेखक श्री डी. आर. मनकेकर ने लालबहादुर शास्त्री की आत्मकथा में उन्हें गांधीवादी सिद्धांतों का अक्षरश: पालन करने वाले ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। जिनके हाथों में देशवासियों ने अपनी नियति की डोर सौंप दी थी।
प्राक्कथन लालबहादुर शास्त्री की जीवन-गाथा लिखना प्रेम से किया गया श्रम है । साथ ही स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक मंच पर प्रवेश करने वाले एक विलक्षण तथा आकर्षक व्यक्तित्व, भारत के क्षितिज पर सहसा चमक कर निकल जाने वाले एक भास्वर तारे के प्रति लेखक की श्रद्धांजलि भी है । बहुत काल तक, अनेक युगों तक भारतवासी. उनके बच्चे और उन बच्चों के नाती-पोते छोटे कद के उस महान पुरूष की चर्चा कृतज्ञ भाव से करेंगें, जो इतने कम समय में, आधुनिक भारतीय इतिहास के पृष्ठों पर चमक उठा और जिसकी क्षीण काया. मृदु स्वभाव, विनम्रता तथा चारित्रिक शक्ति में, उन्हें ''निष्काम कर्मयोग' के प्रति निष्ठावान जनसेवक का भारतीय आदर्श पूर्ण रूप में, मूर्तिमान हुआ दिखाई पडा ।
शास्त्री ने बाइबिल की यह उक्ति-विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे राजनैतिक जीवन में साकार कर दिखाई। उनमें मानवीय दुखों पर, आसू बहाकर रो पडने वाला शिशु हृदय और जम्मु-कश्मीर में पाकिस्तान की दगाबाजी की सजा देने के लिए भारतीय सेना को राष्ट्रीय सीमा पार करके पश्चिमी पाकिस्तान में घुस जाने का आदेश देने वाला वज संकल्प. एक साथ था।
शास्त्री जी की महान उपलब्धि यह थी कि वह निराशाप्रद वर्षों में पस्त भारतीय जनता का साहस बढाकर उसे आत्मविश्वास प्रदान कर गए। उन्होंने पड़ोसी देश को भारत का सम्मान करने की सीख दी और ऐसा करने के दौर में उन्होंने उसके उद्दंड तानाशाह से विश्वास तथा व्यक्तिगत सम्मान भी अर्जित किया।
यदि लालबहादुर कुछ दिन और जीवित रहते तो उन देशो के बीच, जो पहले एक ही शरीर के दो अंग थे, समझौता हो जाने के फलस्वरूप शायद शक, गलतफहमी और विवाद मिट जाते । प्रधानमंत्री शास्त्री की गतिविधियों में ऐसे अनेक संकेत थे जिनसे उनके इस संकल्प का प्रमाण मिलता था कि वह पाकिस्तान से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करेंगें । कश्मीर हो या असम या देश में कहीं अन्यत्र, उन्होंने अनेक पेचीदा गुत्थियों को सुलझाने में अपने मृदु स्वभाव की क्षमता का प्रमाण दिया था।
ताशकंद में उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि यदि एक ओर वह वज हृदय युद्ध नेता थे तो दूसरी ओर वह शांति के अच्छे नेता भी हो सकते थे और एक महान तथा भले उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह भरसक कोशिश करने को तैयार थे । शास्त्री की विलक्षणता यह भी थी कि उनमें जनता को प्रिय न लगने वाली बातें कहने और सुनने का साहस भी था, यदि उनकी आत्मा उस पथ को उचित मानती । राजनीतिज्ञ में इस प्रकार का साहस होना दुर्लभ है ।
दिसंबर 1964 में भारत के प्रधानमंत्री पद पर लालबहादुर शास्त्री के आरूढ होने के छ: मास बाद, मैंने उनकी राजनीतिक जीवनी लिखी तो उनसे संबंधित लिखित सामग्री इतनी कम थी कि उनके संबंध में अंग्रेजी तो क्या हिंदी में भी साहित्य अप्राप्य सा रहा । अत: उस पुस्तक के लिए अधिकाँश सामग्री लालबहादुर शास्त्री से साक्षात्कार करके (जो अपनी दैनिक व्यस्तता के बावजूद इसके लिए कृपापूर्वक राजी हो जाते थे), और उनके परिजनों, संबधियों मित्रों तथा उनके साथ काम कर चुके अफसरों से एकत्र करनी पड़ी ।
शास्त्री जी की वह प्रथम प्रकाशित जीवनी थी। मैं उस पुरतक्) को तैयार करने की जल्दी में सोचता था कि जवाहरलाल के उत्तराधिकारी के परिचय के रुप में उनकी राजनीतिक जीवनी विश्व की जनता को ही नहीं अपने देश की जनता को भी मिलनी चाहिए, यद्यपि उन्होंने अब तक अपने को प्रचार से दूर ही रखा था । उस पुस्तिका के तीन संस्करण निकले ।
दूसरे रारकरण में लालबहादुर के जीवन का राबसे स्वर्णिम प्रहर पाकिस्तानसे 22 दिवसीय युद्ध तक का घटनाक्रम और तीसरे संस्करण में ताशकद के बाद उस विलक्षण जीवन कथा पर आकस्मिक यवनिकापात तक था ।
जहां मेंरी पुरानी पुस्तक में मुख्यत: शास्त्री की राजनीतिक गतिएविधियो पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था, वहां वर्तमान पुस्तक में लालबहादुर की पूर्ण जीवनगाथा, सभी पक्षों, पहलुओं सहित, बताने का प्रयास है । इस जीवनी में संकलित नई सामग्री का संग्रह अन्य स्त्रोतों के अतिरिक्त ललिता शास्त्री से साक्षात्कारों द्धारा गत पांच वर्षों के भीतर नेताओं तथा पत्रकारों, मित्रों एवं संबंधियों द्धारा व्यक्तिगत संस्मरणों के रूप में प्रकाशित प्रचुर साहित्य से भी किया गया है ।
यहां पर आवश्यक है कि मैं अपनी पत्नी कमला के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करूं जिन्होंने स्त्रोतों में से अधिकांश से-यहां तक कि ललिता शास्त्री से भी बातचीत करके सामग्री का सग्रह किया और शास्त्री जी के जीवन पर लिखित साहित्य पढ़कर सामग्री तैयार करने में सहायता प्रदान की ।
विषय-सूची
1
बचपन के दिन
2
हाईस्कूल में
10
3
देशभक्ति से ग्रस्त
17
4
गृहस्थाश्रम में
25
5
संघर्ष क्षेत्र में
42
6
फैजाबाद जेल में
51
7
ललिता देवी भी संघर्ष में
64
8
भारत छोड़ो चेतावनी
77
9
परिवार की मुसीबतें
86
नये अध्याय का श्रीगणेश
98
11
नई दिल्ली में
111
12
कसौटी पर खरे
120
13
विपत्ति में अचूक सहायक
128
14
गृह मंत्रालय में
138
15
कामराज योजना और उसके बाद
150
16
वट वृक्ष गिर पड़ा
159
नेहरू के बाद कौन
169
18
नया नेता निर्वाचित
181
19
नकेल किसी के हाथ में नहीं
192
20
सच्ची सहधर्मिणी
202
21
जटिल समस्याएं
211
22
विश्व रंगमंच पर
222
23
सब का अंत
233
24
उन सा कोई और नहीं
244
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