पुस्तक के विषय में
नई शताब्दी के आरम्भ में मेरा सम्पर्क ज्योतिष शोध मंडल के सदस्यों से हुआ । बातचीत के दौरान भावार्थ रत्नाकर व उसके महत्व पर भी चची हुई । वर्ष में लगभग माह तक इस श्रेष्ठ कृति का अध्ययन व अध्यापन चला ।
आदरणीय डॉ बीवी रमण ने अंग्रेजी में तो श्री जगन्नाथ भसीन ने हिन्दी में इस ग्रन्थ पर टीका लिखी है। श्री गोपेश कुमार ओझा ने अपनी फलदीपिका में भावार्थ रत्नाकर के योगों का संकलन किया है ।
श्री रामानुजाचार्य का यह नथ निश्चय ही उत्कृष्ट व अद्वितीय है । कदाचित पहली बार द्वादश लग्न पर ऐसा गहन व सटीक विचार इस पुस्तक में हुआ है । शाधार्थियों का आग्रह था कि सूत्र-परीक्षण के लिए लग्न परक कुण्डली संग्रह भी इसमें संलग्न किया जाना चाहिए । पाठकों की सुविधा के लिए कुण्डलियाँ भी सम्मिलित की गई ।
इस कृति का दूसरा खंड विभिन्न योगों पर प्रकाश डालता है । निश्चय ही यह इस पुस्तक का अति महत्वपूर्ण व उपयोगी भाग है ।
परस्पर विचार-विमर्श से उपजे विचार व टिप्पणियों का संकलन कब एक पुस्तक बन गया-मुझे तो पता भी नहीं चला ।
कुण्डली संग्रह व टीका टिप्पणी के कारण पुस्तक का आकार निश्चय ही बढ़ गया है । किन्तु शायद आकार से कहीं ज्यादा उपयोगिता बड़ी है ऐसा शोधकर्ताओं का विश्वास है । मैं सर्व श्री राजेश चन्द्र गुप्त श्री प्रकाश चन्द्र, नीरज खरबन्दा सचिन सैनी अनुराग बागड़िया धर्मवीर तथा श्रीमती सुमेधा कक्कड़ का आभारी हूँ जिनके सहयोग से पुस्तक का प्रारूप तैयार हुआ ।
इस पुस्तक में श्री रामानुजाचार्य के विचार व अनुभवों को संजोने का प्रयास हुआ हैं-यदि कहीं टीका या व्याख्या में मेरी अज्ञानता या प्रमाद से कोई दोष उत्पन्न हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
'गोपाल की करी सब होई
जो अपना पुरषारथ मानै अति झूठौ है सोई ।
सो ये कृति मेरी नहीं है यह तो उस की है जो सदा सबकुछ किया करता है-फिर ये मैं कौन?
कृतज्ञता
ज्ञापन परमज्योति के उपासक दिव्य दृष्टा ऋषि मुनि व योगियों ने मानव मात्र के कल्याण के
लिए इस ज्ञान का विकास किया, मैं उनका आभारी हूँ ।
हजारों वर्षो से ज्योतिर्विज्ञान के उपासक इस ज्ञान से समाज का कल्याण व मार्गदर्शन
कर रहे हैं वे सभी प्रशंसा के पात्र हैं ।
भारत की प्राचीन धरोहर की रक्षा के लिए अनेक विद्वान ज्योतिष के पठन-पाठन, लेक
प्रकाशन व साहित्य वितरण सम्बन्धी कार्यो से जुड़े हैं वे सभी आदर व प्रशंसा के पात्र है। उनको शत-शत नमन।
मेरे गुरुजन श्री रोहित वेदी, श्री रंगाचारी, डॉ श्रीकान्त गौड़ श्री विनय आदित्य श्री
एसएस रुस्तगी, श्री के थ्यागराजन व डॉ प्रवीण कुमार नै मेरा उत्साह व मनोबल बढ़ाया।
मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
श्री अमृतलाल जैन उनके पुत्र श्री देवेन्द्र व पुनीत जैन तथा कार्यदल के सभी सदस्यों ने निष्ठापूर्वक श्रम कर इस पुस्तक को सजाया व सँवारा। वे निश्चय ही प्रशंसा के पात्र हैं।
मेरे छात्र प्रशंसक, मित्र व पाठक मेरी लेखनी की प्राण शक्ति हैं। उनके बिना इस पुस्तक का लेखन-सम्पादन असम्भव था-वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं।
विषय-सूची |
||
1 |
मेष लग्न |
|
2 |
वृष लग्न |
16-27 |
3 |
मिथुन लग्न |
28-39 |
4 |
कर्क लग्न |
40-54 |
5 |
सिंह लग्न |
55-67 |
6 |
कन्या लग्न |
68-77 |
7 |
तुला लग्न |
78-92 |
8 |
वृश्चिक लग्न |
93-103 |
9 |
धनु लग्न |
104-115 |
10 |
मकर लग्न |
116-126 |
11 |
कुम्भ लग्न |
127-141 |
12 |
मीन लग्न |
142-157 |
13 |
धन योग विचार |
158-162 |
14 |
विद्या विचार |
163-166 |
15 |
खान-पान |
167-170 |
16 |
भ्रातृ सुख |
171 |
17 |
वाहन तथा भाग्य |
172-173 |
18 |
शत्रु और रोग विचार |
174 |
19 |
स्त्री और काम सुख |
175-176 |
20 |
आयु और स्वास्थ्य |
177-178 |
21 |
भाग्ययोग |
179-183 |
22 |
राजयोग |
184-189 |
23 |
तीर्थ स्नान |
190-194 |
24 |
मृत्यु योग |
195-198 |
25 |
दशा के परिणाम |
199-205 |
26 |
सामान्य योग |
206-209 |
27 |
ग्रह मालिक योग |
210-212 |
परिशिष्ट |
||
ग्रह व राशि सम्बन्ध |
213 |
|
नाभस योग-(32 योग) |
214-217 |
|
फल कथन के सूत्र |
218-219 |
पुस्तक के विषय में
नई शताब्दी के आरम्भ में मेरा सम्पर्क ज्योतिष शोध मंडल के सदस्यों से हुआ । बातचीत के दौरान भावार्थ रत्नाकर व उसके महत्व पर भी चची हुई । वर्ष में लगभग माह तक इस श्रेष्ठ कृति का अध्ययन व अध्यापन चला ।
आदरणीय डॉ बीवी रमण ने अंग्रेजी में तो श्री जगन्नाथ भसीन ने हिन्दी में इस ग्रन्थ पर टीका लिखी है। श्री गोपेश कुमार ओझा ने अपनी फलदीपिका में भावार्थ रत्नाकर के योगों का संकलन किया है ।
श्री रामानुजाचार्य का यह नथ निश्चय ही उत्कृष्ट व अद्वितीय है । कदाचित पहली बार द्वादश लग्न पर ऐसा गहन व सटीक विचार इस पुस्तक में हुआ है । शाधार्थियों का आग्रह था कि सूत्र-परीक्षण के लिए लग्न परक कुण्डली संग्रह भी इसमें संलग्न किया जाना चाहिए । पाठकों की सुविधा के लिए कुण्डलियाँ भी सम्मिलित की गई ।
इस कृति का दूसरा खंड विभिन्न योगों पर प्रकाश डालता है । निश्चय ही यह इस पुस्तक का अति महत्वपूर्ण व उपयोगी भाग है ।
परस्पर विचार-विमर्श से उपजे विचार व टिप्पणियों का संकलन कब एक पुस्तक बन गया-मुझे तो पता भी नहीं चला ।
कुण्डली संग्रह व टीका टिप्पणी के कारण पुस्तक का आकार निश्चय ही बढ़ गया है । किन्तु शायद आकार से कहीं ज्यादा उपयोगिता बड़ी है ऐसा शोधकर्ताओं का विश्वास है । मैं सर्व श्री राजेश चन्द्र गुप्त श्री प्रकाश चन्द्र, नीरज खरबन्दा सचिन सैनी अनुराग बागड़िया धर्मवीर तथा श्रीमती सुमेधा कक्कड़ का आभारी हूँ जिनके सहयोग से पुस्तक का प्रारूप तैयार हुआ ।
इस पुस्तक में श्री रामानुजाचार्य के विचार व अनुभवों को संजोने का प्रयास हुआ हैं-यदि कहीं टीका या व्याख्या में मेरी अज्ञानता या प्रमाद से कोई दोष उत्पन्न हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
'गोपाल की करी सब होई
जो अपना पुरषारथ मानै अति झूठौ है सोई ।
सो ये कृति मेरी नहीं है यह तो उस की है जो सदा सबकुछ किया करता है-फिर ये मैं कौन?
कृतज्ञता
ज्ञापन परमज्योति के उपासक दिव्य दृष्टा ऋषि मुनि व योगियों ने मानव मात्र के कल्याण के
लिए इस ज्ञान का विकास किया, मैं उनका आभारी हूँ ।
हजारों वर्षो से ज्योतिर्विज्ञान के उपासक इस ज्ञान से समाज का कल्याण व मार्गदर्शन
कर रहे हैं वे सभी प्रशंसा के पात्र हैं ।
भारत की प्राचीन धरोहर की रक्षा के लिए अनेक विद्वान ज्योतिष के पठन-पाठन, लेक
प्रकाशन व साहित्य वितरण सम्बन्धी कार्यो से जुड़े हैं वे सभी आदर व प्रशंसा के पात्र है। उनको शत-शत नमन।
मेरे गुरुजन श्री रोहित वेदी, श्री रंगाचारी, डॉ श्रीकान्त गौड़ श्री विनय आदित्य श्री
एसएस रुस्तगी, श्री के थ्यागराजन व डॉ प्रवीण कुमार नै मेरा उत्साह व मनोबल बढ़ाया।
मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
श्री अमृतलाल जैन उनके पुत्र श्री देवेन्द्र व पुनीत जैन तथा कार्यदल के सभी सदस्यों ने निष्ठापूर्वक श्रम कर इस पुस्तक को सजाया व सँवारा। वे निश्चय ही प्रशंसा के पात्र हैं।
मेरे छात्र प्रशंसक, मित्र व पाठक मेरी लेखनी की प्राण शक्ति हैं। उनके बिना इस पुस्तक का लेखन-सम्पादन असम्भव था-वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं।
विषय-सूची |
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1 |
मेष लग्न |
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2 |
वृष लग्न |
16-27 |
3 |
मिथुन लग्न |
28-39 |
4 |
कर्क लग्न |
40-54 |
5 |
सिंह लग्न |
55-67 |
6 |
कन्या लग्न |
68-77 |
7 |
तुला लग्न |
78-92 |
8 |
वृश्चिक लग्न |
93-103 |
9 |
धनु लग्न |
104-115 |
10 |
मकर लग्न |
116-126 |
11 |
कुम्भ लग्न |
127-141 |
12 |
मीन लग्न |
142-157 |
13 |
धन योग विचार |
158-162 |
14 |
विद्या विचार |
163-166 |
15 |
खान-पान |
167-170 |
16 |
भ्रातृ सुख |
171 |
17 |
वाहन तथा भाग्य |
172-173 |
18 |
शत्रु और रोग विचार |
174 |
19 |
स्त्री और काम सुख |
175-176 |
20 |
आयु और स्वास्थ्य |
177-178 |
21 |
भाग्ययोग |
179-183 |
22 |
राजयोग |
184-189 |
23 |
तीर्थ स्नान |
190-194 |
24 |
मृत्यु योग |
195-198 |
25 |
दशा के परिणाम |
199-205 |
26 |
सामान्य योग |
206-209 |
27 |
ग्रह मालिक योग |
210-212 |
परिशिष्ट |
||
ग्रह व राशि सम्बन्ध |
213 |
|
नाभस योग-(32 योग) |
214-217 |
|
फल कथन के सूत्र |
218-219 |