भ्रमर-गीत: Bhramar-Geet

Best Seller
FREE Delivery
Express Shipping
$15
$20
(25% off)
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA749
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan, Varanasi
Author: स्वामी करपात्रीजी महाराज (Swami Karapatri ji Maharaj)
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 1999
ISBN: 9789387643000
Pages: 173
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 180 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

आमुख

सकल शास्त्र-पारावारीण, निगमागम-पारदृश्वा, ब्रह्मीभूत, अनन्तश्री विभूषित पूज्य स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज का नाम भारतीय संस्कृति के प्रत्येक उपासक के मानस-पटलपर सुअंकित है पूज्य-चरण का वाड्मय सौरभ आस्तिक हृदय को निरन्तर सुवासित कर रहा है वे सर्वतो विसरत्प्रतिभा के धनी, वाङि्मता कला के मूर्तिमान रूप तथा विविध शास्त्रों के मर्म-प्रकाशक थे वे अद्भुत शरण्य थे-जिसे शरण में लिया, जिसे अपनाया, जिसपर कृपा-कटाक्ष किया, वही निहाल हो गया पूज्य-चरण की हृदयानुरागिणी वृत्ति सदा उनके अन्तरतम की भक्ति- भावना को उद्घाटित करती रहती थी, उनका मस्तिष्क पक्ष कभी भी हृदय पक्ष को बोझिल नहीं कर पाता था श्रीमद्भागवत पर उनका स्वाध्याय बहुत गम्भीर था, इस महान् ग्रन्थ के अत्यन्त गहन एवं सूक्ष्मतिसूक्ष्म प्रसंग भी उनके लिए करामलकवत् ही थे ' रासपंचाध्यायी ', ' भ्रमरगीत ' एवं ऐसे ही अन्य मार्मिक प्रसंगों की जो व्याख्या उन्होंने की और अपने ग्रन्थ ' भक्तिरसार्णव ' में भक्ति के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पक्षों का जो प्रस्तुतीकरण किया उसके आधार पर समकालीन समालोचकों ने उन्हें ' भक्ति ' को दसवें रस के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया।

प्रस्तुत पुस्तक ' भ्रमर-गीत ' की संकलयित्री श्रीमती पद्यावती झुनझुनवाला महाराजश्री के शरण में आयीं उनके शरण में आते ही इस महिला की बालकपन से ही रसानुगामिनी प्रतिभा निखर उठी। लेखनी कागज पर थिरकने लगी ' मीरा ' के विषय में पद्माजी ने एक गम्भीर शोध-गन्ध लिखा जिसे विद्वानों और भक्तों ने पूर्ण सम्मान दिया और जिस पर वे उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत हुईं पूज्यपाद स्वामीजी महाराज के पास ही मेरा इनसे परिचय हुआ इनके विशेष अनुरोध पर पूज्यवर ने ' श्रीमद्भागवत ' के दो अंश ' गोपी-गीत ' और ' भ्रमर-गीत ' का प्रवचन किया ' गोपी-गीत ' का प्रवचन नॉन चातुर्मास्य में सम्पन्न हुआ, ' भ्रमर-गीत ' का प्रवचन एक ही चातुर्मास्य में सम्पूर्ण करते हुए उन्होंने यह कहा था कि ' समय बहुत कम है अन्यथा इस पर बहुत विशद -च्चा हो सकती है पद्माजी ने सम्पूर्ण प्रवचनों को टेप कर लिया था, जो उनके पास गज भी सुव्यवस्थित रखे हुए हैं महाराजश्री के आदेश से ही इन प्रवचनों को लिपिबद्ध करके उन्हें प्रस्तुत रूप में दिखाया गया था यह संकलन उन्हें बहुत पसन्द आया और रसें के आदेश से इनको छपवाने की चर्चा भी चली

इनमें ' गोपी-गीत ' का कुछ अंश पहले प्रकाशित हो चुका था किन्तु कतिपय अपरिहार्य कारणों से वह पूर्ण प्रकाशित हो सका पद्माजी ने ' भ्रमर-गीत ' का संकलन मुझे भी दिखाया था यह संकलन मुझे बहुत पसन्द आया अत: मैंने इसके प्रकाशन का भार अपने ऊपर लिया ' भ्रमर-गीत ' के प्रत्येक पद की व्याख्या में सहृदय-हृदय द्रावकसरसता व्यास है ' पिवत भागवत रसमालयम् ' भागवत-रस का लय पर्यन्त पान करना चाहिए यह सन्देश, यथार्थ रूप से इसमें निहित है प्रत्येक सहृदय व्यक्ति को परम सरस, परम रसिक श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज की रसमयी वाणी का आस्वादन स्वयं करना चाहिए साथ ही, इस संकलन-गन्ध, ' भ्रमर-गीत ' के प्रचार-प्रसार द्वारा जन-जन के हृदय में इस रसमयी दिव्यवाणी का संचार कर अपने पावन कर्तव्य का पालन करना चाहिए। पूज्य चरणों के आशीष से ही यह कार्य सम्पन्न हो सका है हम ' भ्रमर-गीत ' के प्रकाशन के अवसर पर परम पूज्य श्रीचरणों में अपनी प्रणामाञ्जलि निवेदन कर उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं इस ग्रन्थ की संकलयित्री श्रीमती पद्मावती झुनझुनवाला को भी इस कार्य के लिए धन्यवाद देते हुए ऐसे कार्यों में उनकी सतत प्रेरणा बनी रहे यह आशीष प्रदान करते हैं श्रीयुत् पुरुषोत्तमदासजी मोदी जिनसे मनोयोग पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ, मैं आभार व्यक्त करता हूँ पूज्य चरणों का सत्-साहित्य जन-जन में प्रचारित होता रहे, यही भगवान् से प्रार्थना है

वक्तव्य

प्रात:स्मरणीय परम पूज्य अनन्तश्री विभूषित श्रीगुरुदेव स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज द्वारा 'श्रीमद्भागवत ' अन्तर्गत प्राप्त ' भ्रमर-गीत ' पर किये गये प्रवचनों का यह संकलन प्रकाशित हो रहा है यह मेरे लिए अतिशय आनन्द का विषय है साथ ही, विषय का गाम्भीर्य, वक्ता की ज्ञान-गरिमा मण्डित महत्ता और अपनी नितान्त अज्ञता के कारण अत्यन्त संकोच भी हो रहा है।

उक्त प्रवचनों को पुस्तक-रूप में परिवर्तित करते हुए यत्र-तत्र किञ्चित् अनिवार्य परिवर्तन भी किये गये हैं प्रवचन-काल में किसी विषय को स्पष्ट करने हेतु की गयी पुनरुक्ति को छोड़ भी दिया गया है तथापि विषयानुक्रम सर्वथा तदनुसार ही है; साथ ही सम्पूर्ण संकलन में महाराजश्री के भाव, भाषा एवं शैली का अक्षरश: अनुसरण किया गया है फिर भी ' भ्रम-प्रमाद-विप्रलिप्सा-करणा- पाटवादि पुरुष-स्वभाव-सुलभ ' दोषों तथा मेरे अज्ञान के कारण बहुत सी त्रुटियाँ रह गयी होंगी विद्वत्-वर्ग से मेरी कर-बद्ध विनम्र प्रार्थना है कि प्रस्तुत संकलन में जो भी त्रुटियाँ रह गयी हों उनके लिए क्षमा करते हुए मेरा मार्ग प्रदर्शन भी करेंगे ताकि भविष्य में उन त्रुटियों का अपमार्जन किया जा सके

प्रात:स्मरणीय अनन्तश्री विभूषित स्वामी श्रीअखण्डानन्दजी सरस्वती महाराज के लिए भी मैं बारम्बार सश्रद्धया करबद्ध नमस्कार करती हूँ उनके आशीर्वाद से ही यह पुस्तक प्रस्तुत रूप में छप सकी; पूज्य भाई श्रीविश्वम्भरनाथजी द्विवेदी ने जिस मनोयोग से मेरे लेखन की त्रुटियों को शुद्ध किया तदर्थ मैं उनके प्रति बारम्बार नतमस्तक हूँ; साथ ही आशा करती हूँ कि उनका ऐसा सहयोग भविष्य में भी मिलता रहेगा

अपनी बड़ी बहन श्रीमती सुलभा देवी गुप्ता के वात्सल्यमय सहयोग और पुत्रवत् चि० अनिलकुमार गुप्ता, चि० सुशीलकुमार गुप्ता, चि० चन्द्रशेखर गुप्ता और चि० अशोककुमार गुप्ता का स्नेहमय सहयोग भी मेरे लिए अविस्मरणीय है पूज्य बहन के प्रति सादर नतमस्तक हूँ पुत्रवत् चारों भाइयों की सदा वर्द्धनोन्यूख मंगल की करबद्ध प्रार्थना भूतभावन भगवान् विश्वनाथ से करती हूँ आदरणीय भाई श्रीमार्कण्डेयजी ब्रह्मचारी ( धर्मसंघ-विद्यालय, दुर्गाकुण्ड, वाराणसी) जो लगभग चालीस वर्षों से महाराजश्री की सेवा में रहते हुए उनके लेखन का कार्य करते रहे हैं, के विशिष्ट परिश्रम-साध्य सहयोग के कारण ही यह संकलन अपने प्रस्तुत स्वरूप में सम्भव हो सका है उनके इस स्नेहाशीर्वादमय सहयोग के प्रति मैं सदा-सर्वदा सादर नत-मस्तक हूँ

विद्वत्-वर्ग से मेरी पुन: करबद्ध प्रार्थना है-

अज्ञान-दोषान्मतिविभ्रमाद् वा यदर्थहीनं लिखित मयात्र

तत्सर्वमायैं: परिशोधनीयम् क्रोधा कार्यो ननु मानवोऽहम् ।।

 

अनुक्रमणिका

   
 

आमुख

 

iii

 

वक्तव्य

 

v

 

उपोद्घात

 

1-19

1

उद्धव की ब्रजयात्रा एवं नन्द-यशोदा के साथ संवाद

   

2

उद्धव गोपीजन-सम्मिलन

 

50

3

गोप्युवाच

श्लोक 10.47.12

60

4

 

श्लोक 10.47.13

70

5

 

श्लोक 10.47.14

80

6

 

श्लोक 10.47.15

95

7

 

श्लोक 10.47.16

105

8

 

श्लोक 10.47.17

120

9

 

श्लोक 10.47.18

129

10

 

श्लोक 10.47.19

137

11

 

श्लोक 10.47.20

143

12

 

श्लोक 10.47.21

149

13

उद्धव उवाच

10.47.22-23

156

14

उपसंहार

 

163

 

Sample Pages







Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at [email protected]
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through [email protected].
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories