अपनी बात
विज्ञ पाठक भली भांति जानते हैं कि जन्म कुंडली मे ग्रहो की, परस्पर दृष्टि-युति अथवा भावो में स्थिति के कारण बनने वाले शुभ योग तत्सम्बंधी ग्रह दशा या मुक्ति (अन्तरदशा) काल मे ही फल दिया करते हैं।
''राशि फल विचार'' तथा ''भाव फल विचार'' के बाद ज्योतिष मित्रो, जिज्ञासु विद्यार्थीगण तथा बंधु-बांधवों ने ' 'दशा फल विचार' ' पर लिखने का आग्रह किया।
इस विषय पर मेरे गुरु श्री महेन्द्र नाथ केदार, सुप्रसिद्व ज्यार्तिविद आदरणीय जगन्नाथ भसीन, श्री जैड. ए. अन्सारी की उत्कृष्ट रचनाएँ बाजार में उपलका हैं । अत: इस विषय पर कुछ भी लिखने का, मैं साहस नहीं जुटा पाया।
मेरे अभिन्न मित्र डाक्टर सुरेन्द्र शास्त्री (जम्मु वाले), श्री संजय शास्त्री? तथा श्री हरीश आद्या का विचार था कि ज्योतिष शास्त्र तो समुद्र सरीखा है । इसमें गोता लगाने वाले को सुदर बहुमूल्य मोती न मिलें-ये भला कब संभव है। अत: ये मानना कि शेष कुछ नहीं बचा, सभी कुछ समाप्त हो गया, सत्य के विपरीत बडी भ्रामक स्थिति है । परस्पर विचार विमर्श के बाद निर्णय हुआ कि एक बहुत छोटा सा मात्र 100-120 पृष्ठ का संकलन बनाया जाए, जिसमे मात्र महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी क्रमबद्ध वैज्ञानिक पद्धति से प्रस्तुत की जाए। संकलित सामग्री को पाठक विभिन्न कुंडलियो मे स्वयं जांच परख सकें तथा अपने विचार व अनुभव लेखक को बता सके, इस के लिए भी पुस्तक का आकार छोटा रखना आवश्यक था ।-इस पुस्तक मे ग्रह दशा फल का संकलन भाव कौतुहलम् उत्तर कालामृत, जातक परिजात तथा सारावली जैसे मानक ग्रथो से, मूल श्लोक सहित, किया गया है । योगिनी दशा के उपयोग पर श्री राजीव झाजी व श्री एन०के० शर्मा की पुस्तक निश्चय ही बेजोड है । वही योगिनी स्कंध की प्राण शक्ति है।
प्राय: ग्रह दशा का विचार करते समय ग्रह गोचर का भी ध्यान रखना पडता है । शुभ दशा तथा शुभ गोचर बहुधा अप्रत्याशित लाभ व मान वृद्धि दे दिया करते हैं । अत ''ग्रह गोचर फलम्' ' स्कन्ध का भी समावेश किया गया। अन्त मे, अष्टकवर्ग के व्यावहारिक प्रयोग पर भी एक्? अध्याय जोड दिया गया है । इससे पुस्तक का आकार तो निश्चय ही बढ गया किन्तु शायद उससे भी अधिक इसकी उपयोगिता बढी है।
मित्रों के आग्रह से योगिनी दशा को भी सम्मिलित किया गया तथा विषय को स्पष्ट करने के लिए कुछ व्यावहारिक कुंडलियो का भी उपयोग हुआ है। मुझे पूर्ण विश्वास है पाठक इस संकलन को उपयोगी पाएगे तथा इस पुस्तक को स्नेह व सम्मान देकर मेरा मनोबल बढ़ाएंगे।
कुतज्ञता ज्ञापन
ज्योतिष का पठन पाठन तथा प्रचार प्रसार, ऋषि ऋण से उऋण होने का श्रेष्ठ व सरल साधन है। भारत के प्राचीन दिव्यदृष्टा ऋषियों द्वारा अर्जित दैव विद्या की सुरक्षा व समृद्धि में सलग्न सभी महानुभावों का मैं हृदय से आभारी हूँ जिनके कारण आज भी ये दिव्य ज्योति, मानवमात्र के, जीवन को आलोकित कर रही है ।
परम् आदरणीय डॉक्टर बी वी रमण, श्री हरदेव शर्मा त्रिवेदी (ज्योषमति के आदि संस्थापक) आचार्य मुकन्द दैवज्ञ कुछ ऐसे कीर्ति स्तभ हैं जिनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी ।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद द्वारा आयोजित ज्योतिष प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुडे विद्वान श्री जे. एन शर्मा, डाक्टर ललिता गुप्ता, श्री आर्य भूषण शुक्ल, डाक्टर निर्मल जिन्दल श्री के. रंगाचारी, श्री एम एन केदार. श्री राम लाल द्विवेदी, डॉक्टर गौड़, इंजीनियर रोहित वेदी, आचार्य एम एम. जोशी, श्रीमती कुसुम वशिष्ठ निश्चय ही आदर व प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने ज्योतिष की दिव्य ज्योति से अनेक छात्रों के जीवन को सुखी व समृद्ध बनाया । मैं इन सभी विद्वानों का आभारी हूँ । ' अपने मित्र व सहृ्दय पाठकों के स्नेह को भूल पाना मेरे लिए असंभव है । कदाचित यही तो मेरी लेखनी की प्राणशक्ति है । श्री अमृतलाल जैन, उनके सुपुत्र श्री देवेन्द्र कुमार जैन तथा उनके सहयोगी संपादन मंडल के सभी सदस्यों का मैं धन्यवाद करना चाहूँगा जिनके कृपापूर्ण सहयोग के बिना ये संकलन बनना असंभव था।
अन्त में उस नटखट चितचोर की बात करना जरूरी है । शायद एक वही तो हम सब के भीतर बैठ कर नित नये खेल किया करता है । कोई लेखक बनता है तो कोई प्रकाशक, कभी कोई पाठक बनता है तो कोई इस ज्ञान का. उपभोक्ता... । सब कुछ बरन वही तो है।
उस नटवरनागर की कृपा सदा सभी पर बनी रहे। सभी जन स्वस्थ व सुखी रहें, सम्मान व समृद्धि पाएं । इस प्रार्थना के साथ ज्योतिष प्रेमियों को यह कृति सादर समर्पित है।
विषय-सूची दंशा स्कंध |
||
अध्याय-1 |
दशा फल विचार के कतिपय सूत्र |
1-34 |
अध्याय-2 |
सूर्य दशा फलम् |
35-42 |
अध्याय-3 |
चंद्र दशा फलम् |
43-49 |
अध्याय-4 |
मंगल दशा फलम् |
50-56 |
अध्याय-5 |
राहु दशा फलम् |
57-62 |
अध्याय-6 |
गुरु दशा फलम् |
63-69 |
अध्याय-7 |
शनि दशा फलम् |
70-76 |
अध्याय-8 |
बुध दशा फलम् |
77-83 |
अध्याय-9 |
केतु दशा फलम् |
84-88 |
अध्याय-10 |
शुक्र दशा फलम् |
89-95 |
अध्याय-11 |
ग्रह दशा विशिष्ट फलम् |
96-115 |
गोचर स्कंध |
||
अध्याय-12 |
गोचर स्कंध सूर्य का फल |
116-119 |
अध्याय-13 |
चंद्रमा का गोचर फल |
120-112 |
अध्याय-14 |
मंगल का गोचर फल |
123-125 |
अध्याय-15 |
बुध गोचर फल |
126-128 |
अध्याय-16 |
गुरु का गोचर फल |
129-131 |
अध्याय-17 |
शुक्र का गोचर फल |
132-134 |
अध्याय-18 |
शनि का गोचर फल |
135-140 |
अध्याय-19 |
राहु का गोचरफल |
141-143 |
अध्याय-20 |
केतु का गोचर फल |
144-146 |
अध्याय-21 |
गोचर ग्रह वेध फलम् |
147-153 |
अध्याय-22 |
महत्वपूर्ण ग्रहों का गोचर फल |
154-158 |
अष्टक वर्ग |
||
अध्याय-23 |
अष्टक वर्ग का उपयोग |
159-173 |
योगिनी स्कंध |
||
अध्याय-24 |
योगिनी दशा |
174-191 |
अध्याय-25 |
योगिनी दशा का प्रयोग |
192-203 |
अध्याय-26 |
घटना की पुष्टि में योगिनी और विंशोत्त्तरी का प्रयोग |
204-220 |
अध्याय-27 |
वर्ग कुंडली में दशा विचार |
221-239 |
अध्याय-28 |
वर्ष कुंडली में दशा विचार |
240-248 |
अध्याय-29 |
राशि का फल |
249-263 |
अध्याय-30 |
घटना का समय और स्वरूप निर्धारण |
264-293 |
अध्याय-31 |
अशुभ दशा का उपचार |
294-305 |
परिशिष्ट |
||
1 |
चंद्र स्पष्ट से ग्रह दशा का भोग्य काल जनना |
|
2 |
ग्रह की दशा अर्न्तदशा क्रम और अवधि |
|
3 |
अर्न्तदशा में प्रत्यन्तर दशा तालिका |
|
4 |
सन्दर्भ ग्रंथ सूची |
अपनी बात
विज्ञ पाठक भली भांति जानते हैं कि जन्म कुंडली मे ग्रहो की, परस्पर दृष्टि-युति अथवा भावो में स्थिति के कारण बनने वाले शुभ योग तत्सम्बंधी ग्रह दशा या मुक्ति (अन्तरदशा) काल मे ही फल दिया करते हैं।
''राशि फल विचार'' तथा ''भाव फल विचार'' के बाद ज्योतिष मित्रो, जिज्ञासु विद्यार्थीगण तथा बंधु-बांधवों ने ' 'दशा फल विचार' ' पर लिखने का आग्रह किया।
इस विषय पर मेरे गुरु श्री महेन्द्र नाथ केदार, सुप्रसिद्व ज्यार्तिविद आदरणीय जगन्नाथ भसीन, श्री जैड. ए. अन्सारी की उत्कृष्ट रचनाएँ बाजार में उपलका हैं । अत: इस विषय पर कुछ भी लिखने का, मैं साहस नहीं जुटा पाया।
मेरे अभिन्न मित्र डाक्टर सुरेन्द्र शास्त्री (जम्मु वाले), श्री संजय शास्त्री? तथा श्री हरीश आद्या का विचार था कि ज्योतिष शास्त्र तो समुद्र सरीखा है । इसमें गोता लगाने वाले को सुदर बहुमूल्य मोती न मिलें-ये भला कब संभव है। अत: ये मानना कि शेष कुछ नहीं बचा, सभी कुछ समाप्त हो गया, सत्य के विपरीत बडी भ्रामक स्थिति है । परस्पर विचार विमर्श के बाद निर्णय हुआ कि एक बहुत छोटा सा मात्र 100-120 पृष्ठ का संकलन बनाया जाए, जिसमे मात्र महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी क्रमबद्ध वैज्ञानिक पद्धति से प्रस्तुत की जाए। संकलित सामग्री को पाठक विभिन्न कुंडलियो मे स्वयं जांच परख सकें तथा अपने विचार व अनुभव लेखक को बता सके, इस के लिए भी पुस्तक का आकार छोटा रखना आवश्यक था ।-इस पुस्तक मे ग्रह दशा फल का संकलन भाव कौतुहलम् उत्तर कालामृत, जातक परिजात तथा सारावली जैसे मानक ग्रथो से, मूल श्लोक सहित, किया गया है । योगिनी दशा के उपयोग पर श्री राजीव झाजी व श्री एन०के० शर्मा की पुस्तक निश्चय ही बेजोड है । वही योगिनी स्कंध की प्राण शक्ति है।
प्राय: ग्रह दशा का विचार करते समय ग्रह गोचर का भी ध्यान रखना पडता है । शुभ दशा तथा शुभ गोचर बहुधा अप्रत्याशित लाभ व मान वृद्धि दे दिया करते हैं । अत ''ग्रह गोचर फलम्' ' स्कन्ध का भी समावेश किया गया। अन्त मे, अष्टकवर्ग के व्यावहारिक प्रयोग पर भी एक्? अध्याय जोड दिया गया है । इससे पुस्तक का आकार तो निश्चय ही बढ गया किन्तु शायद उससे भी अधिक इसकी उपयोगिता बढी है।
मित्रों के आग्रह से योगिनी दशा को भी सम्मिलित किया गया तथा विषय को स्पष्ट करने के लिए कुछ व्यावहारिक कुंडलियो का भी उपयोग हुआ है। मुझे पूर्ण विश्वास है पाठक इस संकलन को उपयोगी पाएगे तथा इस पुस्तक को स्नेह व सम्मान देकर मेरा मनोबल बढ़ाएंगे।
कुतज्ञता ज्ञापन
ज्योतिष का पठन पाठन तथा प्रचार प्रसार, ऋषि ऋण से उऋण होने का श्रेष्ठ व सरल साधन है। भारत के प्राचीन दिव्यदृष्टा ऋषियों द्वारा अर्जित दैव विद्या की सुरक्षा व समृद्धि में सलग्न सभी महानुभावों का मैं हृदय से आभारी हूँ जिनके कारण आज भी ये दिव्य ज्योति, मानवमात्र के, जीवन को आलोकित कर रही है ।
परम् आदरणीय डॉक्टर बी वी रमण, श्री हरदेव शर्मा त्रिवेदी (ज्योषमति के आदि संस्थापक) आचार्य मुकन्द दैवज्ञ कुछ ऐसे कीर्ति स्तभ हैं जिनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी ।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद द्वारा आयोजित ज्योतिष प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुडे विद्वान श्री जे. एन शर्मा, डाक्टर ललिता गुप्ता, श्री आर्य भूषण शुक्ल, डाक्टर निर्मल जिन्दल श्री के. रंगाचारी, श्री एम एन केदार. श्री राम लाल द्विवेदी, डॉक्टर गौड़, इंजीनियर रोहित वेदी, आचार्य एम एम. जोशी, श्रीमती कुसुम वशिष्ठ निश्चय ही आदर व प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने ज्योतिष की दिव्य ज्योति से अनेक छात्रों के जीवन को सुखी व समृद्ध बनाया । मैं इन सभी विद्वानों का आभारी हूँ । ' अपने मित्र व सहृ्दय पाठकों के स्नेह को भूल पाना मेरे लिए असंभव है । कदाचित यही तो मेरी लेखनी की प्राणशक्ति है । श्री अमृतलाल जैन, उनके सुपुत्र श्री देवेन्द्र कुमार जैन तथा उनके सहयोगी संपादन मंडल के सभी सदस्यों का मैं धन्यवाद करना चाहूँगा जिनके कृपापूर्ण सहयोग के बिना ये संकलन बनना असंभव था।
अन्त में उस नटखट चितचोर की बात करना जरूरी है । शायद एक वही तो हम सब के भीतर बैठ कर नित नये खेल किया करता है । कोई लेखक बनता है तो कोई प्रकाशक, कभी कोई पाठक बनता है तो कोई इस ज्ञान का. उपभोक्ता... । सब कुछ बरन वही तो है।
उस नटवरनागर की कृपा सदा सभी पर बनी रहे। सभी जन स्वस्थ व सुखी रहें, सम्मान व समृद्धि पाएं । इस प्रार्थना के साथ ज्योतिष प्रेमियों को यह कृति सादर समर्पित है।
विषय-सूची दंशा स्कंध |
||
अध्याय-1 |
दशा फल विचार के कतिपय सूत्र |
1-34 |
अध्याय-2 |
सूर्य दशा फलम् |
35-42 |
अध्याय-3 |
चंद्र दशा फलम् |
43-49 |
अध्याय-4 |
मंगल दशा फलम् |
50-56 |
अध्याय-5 |
राहु दशा फलम् |
57-62 |
अध्याय-6 |
गुरु दशा फलम् |
63-69 |
अध्याय-7 |
शनि दशा फलम् |
70-76 |
अध्याय-8 |
बुध दशा फलम् |
77-83 |
अध्याय-9 |
केतु दशा फलम् |
84-88 |
अध्याय-10 |
शुक्र दशा फलम् |
89-95 |
अध्याय-11 |
ग्रह दशा विशिष्ट फलम् |
96-115 |
गोचर स्कंध |
||
अध्याय-12 |
गोचर स्कंध सूर्य का फल |
116-119 |
अध्याय-13 |
चंद्रमा का गोचर फल |
120-112 |
अध्याय-14 |
मंगल का गोचर फल |
123-125 |
अध्याय-15 |
बुध गोचर फल |
126-128 |
अध्याय-16 |
गुरु का गोचर फल |
129-131 |
अध्याय-17 |
शुक्र का गोचर फल |
132-134 |
अध्याय-18 |
शनि का गोचर फल |
135-140 |
अध्याय-19 |
राहु का गोचरफल |
141-143 |
अध्याय-20 |
केतु का गोचर फल |
144-146 |
अध्याय-21 |
गोचर ग्रह वेध फलम् |
147-153 |
अध्याय-22 |
महत्वपूर्ण ग्रहों का गोचर फल |
154-158 |
अष्टक वर्ग |
||
अध्याय-23 |
अष्टक वर्ग का उपयोग |
159-173 |
योगिनी स्कंध |
||
अध्याय-24 |
योगिनी दशा |
174-191 |
अध्याय-25 |
योगिनी दशा का प्रयोग |
192-203 |
अध्याय-26 |
घटना की पुष्टि में योगिनी और विंशोत्त्तरी का प्रयोग |
204-220 |
अध्याय-27 |
वर्ग कुंडली में दशा विचार |
221-239 |
अध्याय-28 |
वर्ष कुंडली में दशा विचार |
240-248 |
अध्याय-29 |
राशि का फल |
249-263 |
अध्याय-30 |
घटना का समय और स्वरूप निर्धारण |
264-293 |
अध्याय-31 |
अशुभ दशा का उपचार |
294-305 |
परिशिष्ट |
||
1 |
चंद्र स्पष्ट से ग्रह दशा का भोग्य काल जनना |
|
2 |
ग्रह की दशा अर्न्तदशा क्रम और अवधि |
|
3 |
अर्न्तदशा में प्रत्यन्तर दशा तालिका |
|
4 |
सन्दर्भ ग्रंथ सूची |