प्रकाशक का निवेदन
गांधीजी कार्य-पद्धतिका निरीक्षण करने पर उसका एक मुख्य लक्षण सहज ही ध्यानमें आता है। सार्वजनिक हितके प्रश्नोंका विचार करते समय उनके निर्णय किसी विशेष विचारसरणीके आधार पर अथवा किसी निश्चित सिद्धान्तों फलित नहीं होते थे। उनका ध्यान केवल इसी बात पर केन्द्रित रहता था कि सत्य और अहिंसाके मूल-भूत सिद्धान्तोंको देशके शासनके सम्बन्धित कामकाजमें व्यवहारका रूप कैसे दिया जाय। कांग्रेसका और कांग्रेसके द्वारा भारतीय राष्ट्रका उन्होंने जो मार्गदर्शन किया, उसे समझनेके लिए यह बात खास तौर पर ध्यानमें रखने जैसी है।
गांधीजीने स्वराज्यकी स्थापनाके लिए कांग्रेसजनोंको अपनी कार्य-पद्धतिकी तालीम दी थी; इतना ही नहीं, स्वराज्यकी स्थापना होनेके बाद स्वराज्यमें राज्य-प्रबन्ध कैसे किया जाय, इस विषयमें कांग्रेसजनोंकी दृष्टि और समझका भी उन्होंने विकास किया था।
1937 में भारतकी जनताको प्रान्तीय स्वराज्यके मर्यादित अधिकार प्राप्त हुए उस समयसे आरंभ करके 1947 में शासनकी संपूर्ण सत्ता और अधिकार भारतके लोगोंको मिले तब तक और उस समयसे आरंभ करके 1947 में शासनकी संपूर्ण सत्ता और अधिकार भारतके लोगोंको मिले तब तक और उसके बाद भी गांधीजीने अपना यह कार्य जीवनके अंतिम दिन तक चालू रखा था।
स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रकी राज्य-व्यवस्थाके बारेमें गांधीजीका मूल आग्रह यह था कि जिन सेवकों पर देशके शासनकी जिम्मेदारी है, उन्हें दो बातोंका सदा पूरा ध्यान रखना चाहिये: (1) उन्हें एक गरीब राष्ट्रकी राज्य-व्यवस्था चलानी है; और (2) उसे चलाते हुए उन्हें भारतके पिछड़े हुए और गरीब जन-समुदायके हितका सबसे पहलेखयाल रखना है । गांधीजी 1915 में स्थायी रूपसे भारतमें रहनेके लिए दक्षिण अफ्रीकासे लौटे तभीसे उन्होंने यह समझाना शुरू कर: दिया था कि यह कार्य कैसे किया जाय । इसलिए पहले 1937 में और फिर 1947 के बाद गांधीजीने भारतका राजकाज चलानेवाले जन- सेवकोंको यह बताया था कि उनकी जिम्मेदारी कैसी और कितनी है । इस पुस्तकमें गांधीजीके इस विषयसे सम्बन्धित भाषणों और लेखोंका संग्रह किया गया है । इन लेखों और भाषणोंमें उन्हेंने स्पष्ट रूपसे यह दिखाया है कि कांग्रेसजनोंने भारतका शासन-तंत्र हाथमें लेकर कैसी जिम्मेदारी अपने सिर उठाई है और इस जिम्मेदारीका क् किस प्रकार भलीभांति अदा कर सकते हैं ।
गांधीजीकी रीति आदेश देनेकी नहीं थी । और न उन्होंने कभी यह माना कि कांग्रेसजनोंको आदेश देनेकी कोई सत्ता उनके पास है । वे कांग्रेसियोंके भीतरकी सद्भावना और अच्छाईसे अपील करते थे और यह विश्वास रखते थे कि उनकी अपील व्यर्थ नहीं जायगी । जनसेवकोंको भारतकी शासन-व्यवस्था द्वारा भारतीय जनताकी कितनी और कैसी सेवा करनी है, इस सम्बन्धमें गाधीजीकी आशाओं और अपेक्षाओंका दर्शन हमें इस संग्रहमें होता है । ऐसा लगता है कि आज मूलभूत बातोंको कुछ हद तक भुलाया जा रहा है और राज- नीतिक तथा सार्वजनिक कार्यकर्ता कुछ मिश्र प्रयोजनसे कार्य करते दिखाई देते हैं । ऐसे समय यह संग्रह हमें जाग्रत करनेमें बहुत उपयोगी सिद्ध होगा ।
आशा है, भारतकी शासन-व्यवस्थाकी जिम्मेदारी अपने करों पर लेनेवाले सेवकोंसे राष्ट्रपिताने जो अपेक्षायें रखी हैं तथा इस गरीब देशकी जनताके प्रति उनका जो कर्तव्य है, उसका स्पष्ट दर्शन उन्हें इस संग्रहमें होगा ।
अनुक्रमणिका |
||
प्रकाशकका निवेदन |
3 |
|
विभाग -1 : प्रास्ताविक |
||
1 |
अधिकार-पत्र |
3 |
2 |
संसदीय शामन-व्यवस्था |
5 |
विभाग-2: विधानसभायें |
||
3 |
विधानसभाओंमें जाना |
6 |
4 |
धारासभाएं और रचनात्मक कार्यक्रम |
9 |
5 |
धारासभाओंका मोह |
11 |
6 |
रचनात्मक कार्यक्रम |
13 |
विभाग -3 : विधानसभाओंके सदस्य |
||
7 |
शपथ-पत्रका मसविदा |
16 |
8 |
धारासभाओंके सदस्य |
17 |
9 |
धारासभाकी सावधानी |
19 |
10 |
संविधान-सभा फूलोंकी सेज नही |
19 |
विभाग -4 : विधानसभाके सदस्योंका भत्ता |
||
11 |
धारासभाके कांग्रेसी सदस्य और भत्ता |
21 |
12 |
धारासभाके सदस्योंकी तनखाह |
24 |
विभाग -5 : विधानसभाके सदस्योंको चेतावनी |
||
13 |
बड़े दुःखकी बात |
27 |
14 |
एक एक पाई बचाइये |
29 |
15 |
हम सावधान रहें |
30 |
16 |
कांग्रेसजनोंमें भ्रष्टाचार |
33 |
विभाग -6 : मतदान, मताधिकार और कानून |
||
17 |
धारासभाके सदस्य और मतदाता |
36 |
18 |
स्त्रियां और विधानसभायें |
38 |
19 |
मताधिकार |
40 |
20 |
कानून द्वारा सुधार |
42 |
विभाग -7 : पद-ग्रहण और मंत्रियोंका कर्तव्य |
||
21 |
कांग्रेसी मंत्रि-मण्डल |
44 |
22 |
कितना मौलिक अंतर है! |
49 |
23 |
मंत्रीपद कोई पुरस्कार नहीं है |
52 |
24 |
विजयकी कसौटी |
55 |
25 |
पद-ग्रहणका मेरा अर्थ |
58 |
26 |
आलोचनाओंका जवाब |
61 |
27 |
कांग्रेसी मंत्रियोंकी चौहरी जिम्मेदारी |
69 |
28 |
शराबबन्दी |
72 |
29 |
खादी |
76 |
30 |
कांग्रेस सरकारें और ग्राम-सुधार |
88 |
31 |
कांग्रेसी मंत्रि-मण्डल और नई तालीम |
94 |
32 |
विदेशी माध्यम |
102 |
33 |
शालाओंमें संगीत |
105 |
34 |
साहित्यमें गंदगी |
106 |
35 |
जुआ, वेश्यागृह और घुड़दौड़ |
107 |
36 |
कानून-सम्मत व्यभिचार |
109 |
37 |
मंत्रि-मण्डल और हरिजनोंकी समस्यायें |
110 |
38 |
आरोग्यके नियम |
116 |
39 |
लाल फीताशाही |
118 |
विभाग -8 : मंत्रियोंके वेतन |
||
40 |
व्यक्तिगत लाभकी आशा न रखें |
120 |
41 |
वेतनोंका स्तर |
121 |
42 |
मंत्रियोंका वेतन |
122 |
43 |
मंत्रियोंके वेतनमें वृद्धि |
123 |
44 |
हम ब्रिटिश हुकूमतकी नकल न करें |
125 |
विभाग -9 : मंत्रियोंके लिए आचार-संहिता |
||
45 |
स्वतंत्र भारतके मंत्रियोंसे |
129 |
46 |
मंत्रियों तथा गवर्नरोंके लिए विधि-निषेध |
129 |
47 |
दो शब्द मंत्रियोसे |
131 |
48 |
मंत्रियोंको मानपत्र और उनका सत्कार |
132 |
49 |
मानपत्र और फूलोंके हार |
134 |
50 |
मत्रियोंको चेतावनी |
135 |
51 |
गरीबी लज्जाकी बात नहीं |
136 |
52 |
अनाप-शनाप सरकारी खर्च और बिगाड़ |
137 |
53 |
क्या मंत्री अगना अनाज-कपड़ा राशनकी दुकानोंसे ही खरीदेंगे? |
139 |
54 |
सबकी आखें मंत्रियोंकी ओर |
140 |
55 |
कांग्रेसी मंत्री साहब लोग नहीं |
141 |
56 |
देशरोवा और मंत्रीपद |
141 |
57 |
कानूनमें दस्तंदाजी ठीक नहीं |
142 |
58 |
अनुभवी लोगोकी सलाह |
143 |
विभाग -10 : मंत्रि-मण्डलोंकी आलोचना |
||
59 |
एक आलोचना |
144 |
60 |
एक मंत्रीकी परेशानी |
146 |
61 |
मंत्रियोंकी टीका |
149 |
62 |
सरकारका विरोध |
150 |
63 |
मंत्रियोंको भावुक कहीं होना चाहिये |
151 |
64 |
धमकियां-मंत्रियोंके लिए रोजकी बात |
152 |
65 |
सरकारको कमजोर न बनाइये |
152 |
66 |
मंत्री और जनता |
154 |
विभाग -11 : मंत्रि-मण्डल और अहिंसा |
||
67 |
हमारी असफलता |
155 |
68 |
आत्म-परीक्षणकी अपील |
156 |
69 |
नागरिक स्वाधीनता |
158 |
70 |
तूफानके आसार |
161 |
71 |
विद्यार्थी और हड़तालें |
164 |
72 |
क्या यह पिकेटिंग है? |
167 |
73 |
मंत्रि-मण्डल और सेना |
169 |
74 |
कांग्रेसी मंत्री और अहिंसा |
170 |
75 |
सचमुच शर्मकी बात |
173 |
विभाग - 12 : विविध |
||
76 |
प्रान्तीय गवर्नर कौन हों? |
175 |
77 |
भारतीय गवर्नर |
177 |
78 |
गवर्नर और मंत्रीगण |
179 |
79 |
किसान प्रधानमन्त्री |
179 |
80 |
प्रधानमन्त्रीका श्रेष्ठ कार्य |
180 |
81 |
विधानसभाका अध्यक्ष |
181 |
82 |
सरकारी नौकरियां |
181 |
83 |
सरकारी नौकरोंकी बहाली |
188 |
84 |
लोकतंत्र और सेना |
190 |
85 |
अनुशासनका गण |
192 |
86 |
मंत्री और प्रदर्शन |
194 |
87 |
नमक-कर |
195 |
88 |
अपराध और जेल |
196 |
89 |
स्रोत |
197 |
प्रकाशक का निवेदन
गांधीजी कार्य-पद्धतिका निरीक्षण करने पर उसका एक मुख्य लक्षण सहज ही ध्यानमें आता है। सार्वजनिक हितके प्रश्नोंका विचार करते समय उनके निर्णय किसी विशेष विचारसरणीके आधार पर अथवा किसी निश्चित सिद्धान्तों फलित नहीं होते थे। उनका ध्यान केवल इसी बात पर केन्द्रित रहता था कि सत्य और अहिंसाके मूल-भूत सिद्धान्तोंको देशके शासनके सम्बन्धित कामकाजमें व्यवहारका रूप कैसे दिया जाय। कांग्रेसका और कांग्रेसके द्वारा भारतीय राष्ट्रका उन्होंने जो मार्गदर्शन किया, उसे समझनेके लिए यह बात खास तौर पर ध्यानमें रखने जैसी है।
गांधीजीने स्वराज्यकी स्थापनाके लिए कांग्रेसजनोंको अपनी कार्य-पद्धतिकी तालीम दी थी; इतना ही नहीं, स्वराज्यकी स्थापना होनेके बाद स्वराज्यमें राज्य-प्रबन्ध कैसे किया जाय, इस विषयमें कांग्रेसजनोंकी दृष्टि और समझका भी उन्होंने विकास किया था।
1937 में भारतकी जनताको प्रान्तीय स्वराज्यके मर्यादित अधिकार प्राप्त हुए उस समयसे आरंभ करके 1947 में शासनकी संपूर्ण सत्ता और अधिकार भारतके लोगोंको मिले तब तक और उस समयसे आरंभ करके 1947 में शासनकी संपूर्ण सत्ता और अधिकार भारतके लोगोंको मिले तब तक और उसके बाद भी गांधीजीने अपना यह कार्य जीवनके अंतिम दिन तक चालू रखा था।
स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रकी राज्य-व्यवस्थाके बारेमें गांधीजीका मूल आग्रह यह था कि जिन सेवकों पर देशके शासनकी जिम्मेदारी है, उन्हें दो बातोंका सदा पूरा ध्यान रखना चाहिये: (1) उन्हें एक गरीब राष्ट्रकी राज्य-व्यवस्था चलानी है; और (2) उसे चलाते हुए उन्हें भारतके पिछड़े हुए और गरीब जन-समुदायके हितका सबसे पहलेखयाल रखना है । गांधीजी 1915 में स्थायी रूपसे भारतमें रहनेके लिए दक्षिण अफ्रीकासे लौटे तभीसे उन्होंने यह समझाना शुरू कर: दिया था कि यह कार्य कैसे किया जाय । इसलिए पहले 1937 में और फिर 1947 के बाद गांधीजीने भारतका राजकाज चलानेवाले जन- सेवकोंको यह बताया था कि उनकी जिम्मेदारी कैसी और कितनी है । इस पुस्तकमें गांधीजीके इस विषयसे सम्बन्धित भाषणों और लेखोंका संग्रह किया गया है । इन लेखों और भाषणोंमें उन्हेंने स्पष्ट रूपसे यह दिखाया है कि कांग्रेसजनोंने भारतका शासन-तंत्र हाथमें लेकर कैसी जिम्मेदारी अपने सिर उठाई है और इस जिम्मेदारीका क् किस प्रकार भलीभांति अदा कर सकते हैं ।
गांधीजीकी रीति आदेश देनेकी नहीं थी । और न उन्होंने कभी यह माना कि कांग्रेसजनोंको आदेश देनेकी कोई सत्ता उनके पास है । वे कांग्रेसियोंके भीतरकी सद्भावना और अच्छाईसे अपील करते थे और यह विश्वास रखते थे कि उनकी अपील व्यर्थ नहीं जायगी । जनसेवकोंको भारतकी शासन-व्यवस्था द्वारा भारतीय जनताकी कितनी और कैसी सेवा करनी है, इस सम्बन्धमें गाधीजीकी आशाओं और अपेक्षाओंका दर्शन हमें इस संग्रहमें होता है । ऐसा लगता है कि आज मूलभूत बातोंको कुछ हद तक भुलाया जा रहा है और राज- नीतिक तथा सार्वजनिक कार्यकर्ता कुछ मिश्र प्रयोजनसे कार्य करते दिखाई देते हैं । ऐसे समय यह संग्रह हमें जाग्रत करनेमें बहुत उपयोगी सिद्ध होगा ।
आशा है, भारतकी शासन-व्यवस्थाकी जिम्मेदारी अपने करों पर लेनेवाले सेवकोंसे राष्ट्रपिताने जो अपेक्षायें रखी हैं तथा इस गरीब देशकी जनताके प्रति उनका जो कर्तव्य है, उसका स्पष्ट दर्शन उन्हें इस संग्रहमें होगा ।
अनुक्रमणिका |
||
प्रकाशकका निवेदन |
3 |
|
विभाग -1 : प्रास्ताविक |
||
1 |
अधिकार-पत्र |
3 |
2 |
संसदीय शामन-व्यवस्था |
5 |
विभाग-2: विधानसभायें |
||
3 |
विधानसभाओंमें जाना |
6 |
4 |
धारासभाएं और रचनात्मक कार्यक्रम |
9 |
5 |
धारासभाओंका मोह |
11 |
6 |
रचनात्मक कार्यक्रम |
13 |
विभाग -3 : विधानसभाओंके सदस्य |
||
7 |
शपथ-पत्रका मसविदा |
16 |
8 |
धारासभाओंके सदस्य |
17 |
9 |
धारासभाकी सावधानी |
19 |
10 |
संविधान-सभा फूलोंकी सेज नही |
19 |
विभाग -4 : विधानसभाके सदस्योंका भत्ता |
||
11 |
धारासभाके कांग्रेसी सदस्य और भत्ता |
21 |
12 |
धारासभाके सदस्योंकी तनखाह |
24 |
विभाग -5 : विधानसभाके सदस्योंको चेतावनी |
||
13 |
बड़े दुःखकी बात |
27 |
14 |
एक एक पाई बचाइये |
29 |
15 |
हम सावधान रहें |
30 |
16 |
कांग्रेसजनोंमें भ्रष्टाचार |
33 |
विभाग -6 : मतदान, मताधिकार और कानून |
||
17 |
धारासभाके सदस्य और मतदाता |
36 |
18 |
स्त्रियां और विधानसभायें |
38 |
19 |
मताधिकार |
40 |
20 |
कानून द्वारा सुधार |
42 |
विभाग -7 : पद-ग्रहण और मंत्रियोंका कर्तव्य |
||
21 |
कांग्रेसी मंत्रि-मण्डल |
44 |
22 |
कितना मौलिक अंतर है! |
49 |
23 |
मंत्रीपद कोई पुरस्कार नहीं है |
52 |
24 |
विजयकी कसौटी |
55 |
25 |
पद-ग्रहणका मेरा अर्थ |
58 |
26 |
आलोचनाओंका जवाब |
61 |
27 |
कांग्रेसी मंत्रियोंकी चौहरी जिम्मेदारी |
69 |
28 |
शराबबन्दी |
72 |
29 |
खादी |
76 |
30 |
कांग्रेस सरकारें और ग्राम-सुधार |
88 |
31 |
कांग्रेसी मंत्रि-मण्डल और नई तालीम |
94 |
32 |
विदेशी माध्यम |
102 |
33 |
शालाओंमें संगीत |
105 |
34 |
साहित्यमें गंदगी |
106 |
35 |
जुआ, वेश्यागृह और घुड़दौड़ |
107 |
36 |
कानून-सम्मत व्यभिचार |
109 |
37 |
मंत्रि-मण्डल और हरिजनोंकी समस्यायें |
110 |
38 |
आरोग्यके नियम |
116 |
39 |
लाल फीताशाही |
118 |
विभाग -8 : मंत्रियोंके वेतन |
||
40 |
व्यक्तिगत लाभकी आशा न रखें |
120 |
41 |
वेतनोंका स्तर |
121 |
42 |
मंत्रियोंका वेतन |
122 |
43 |
मंत्रियोंके वेतनमें वृद्धि |
123 |
44 |
हम ब्रिटिश हुकूमतकी नकल न करें |
125 |
विभाग -9 : मंत्रियोंके लिए आचार-संहिता |
||
45 |
स्वतंत्र भारतके मंत्रियोंसे |
129 |
46 |
मंत्रियों तथा गवर्नरोंके लिए विधि-निषेध |
129 |
47 |
दो शब्द मंत्रियोसे |
131 |
48 |
मंत्रियोंको मानपत्र और उनका सत्कार |
132 |
49 |
मानपत्र और फूलोंके हार |
134 |
50 |
मत्रियोंको चेतावनी |
135 |
51 |
गरीबी लज्जाकी बात नहीं |
136 |
52 |
अनाप-शनाप सरकारी खर्च और बिगाड़ |
137 |
53 |
क्या मंत्री अगना अनाज-कपड़ा राशनकी दुकानोंसे ही खरीदेंगे? |
139 |
54 |
सबकी आखें मंत्रियोंकी ओर |
140 |
55 |
कांग्रेसी मंत्री साहब लोग नहीं |
141 |
56 |
देशरोवा और मंत्रीपद |
141 |
57 |
कानूनमें दस्तंदाजी ठीक नहीं |
142 |
58 |
अनुभवी लोगोकी सलाह |
143 |
विभाग -10 : मंत्रि-मण्डलोंकी आलोचना |
||
59 |
एक आलोचना |
144 |
60 |
एक मंत्रीकी परेशानी |
146 |
61 |
मंत्रियोंकी टीका |
149 |
62 |
सरकारका विरोध |
150 |
63 |
मंत्रियोंको भावुक कहीं होना चाहिये |
151 |
64 |
धमकियां-मंत्रियोंके लिए रोजकी बात |
152 |
65 |
सरकारको कमजोर न बनाइये |
152 |
66 |
मंत्री और जनता |
154 |
विभाग -11 : मंत्रि-मण्डल और अहिंसा |
||
67 |
हमारी असफलता |
155 |
68 |
आत्म-परीक्षणकी अपील |
156 |
69 |
नागरिक स्वाधीनता |
158 |
70 |
तूफानके आसार |
161 |
71 |
विद्यार्थी और हड़तालें |
164 |
72 |
क्या यह पिकेटिंग है? |
167 |
73 |
मंत्रि-मण्डल और सेना |
169 |
74 |
कांग्रेसी मंत्री और अहिंसा |
170 |
75 |
सचमुच शर्मकी बात |
173 |
विभाग - 12 : विविध |
||
76 |
प्रान्तीय गवर्नर कौन हों? |
175 |
77 |
भारतीय गवर्नर |
177 |
78 |
गवर्नर और मंत्रीगण |
179 |
79 |
किसान प्रधानमन्त्री |
179 |
80 |
प्रधानमन्त्रीका श्रेष्ठ कार्य |
180 |
81 |
विधानसभाका अध्यक्ष |
181 |
82 |
सरकारी नौकरियां |
181 |
83 |
सरकारी नौकरोंकी बहाली |
188 |
84 |
लोकतंत्र और सेना |
190 |
85 |
अनुशासनका गण |
192 |
86 |
मंत्री और प्रदर्शन |
194 |
87 |
नमक-कर |
195 |
88 |
अपराध और जेल |
196 |
89 |
स्रोत |
197 |