गुरुगीता भाषा
श्रीलक्ष्मीनृसिंहाय नम:
एक समय सुन्दर कैलास पर्वतपर श्रीपार्वतीजी ने लोकोफ्कार के लिये महादेवजी से प्रश्न क्यिा ।।१।।
पार्वतीजी बोली कि, हे शंकर सदुरु! हे परमेश्वर! हे कृपासागर! श्रीमहादेवजी! मुझको गुरुदीक्षा दीजिये ।।२।।
हे देवाधिदेव! इस जीव को किस उपाय से ब्रह्मप्राप्ति होती है? यह आप कहिये, मैं आपके चरणों की शरण में आई हूं, आपको नमस्कार हो ।।३।।
इस प्रकार से पार्वतीजी का कथन सुनकर भगवान् श्रीशंकरजी बोले कि, हे पार्वती! तुम मेरा ही अवतार हो, मुझसे भिन्न नहीं हो ।।४।।
तुमने जो यह प्रश्न किया है, वह लोकोपकार के लिये किया है। पहले ऐसा प्रश्र कभी किसीने नहीं किया ।।५।।
हे भवानी! तुम्हारे इसप्रश्न का उत्तर त्रिभुवन में भी दुर्लभ है, परंतु मैं तुमको बताऊगा, सद्गुरु के सिवाय कोई भी तत्व इन तीनों भुवनों में अधिक नहीं ।।६।।
वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, नाना प्रकार की विद्यायें, चौसठ कला, उच्चाटन, मारण, मोहन, जारण, वशीकरण आदि ।।७।।
शैवमत, वैष्णवमत, सौरमत, गणेशमत और शाक्तमत ये सब भी सब जीवों को भ्रांतिकारक हैं ।।८।।
हेपार्वती ! सदुरु की प्राप्ति होने के लिये सब पुष्यकर्म करना,इसलिये (प्रथम)सदुरुके भक्ति मार्ग में लगना ।।९।।
हे भक्तश्रेष्ठे! अखण्ड(निरन्तर)गुरु की भक्ति करना,देव और गुरु; इनमे भेद नहीं धरना ।।१०।।
Your email address will not be published *
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend