पुस्तक के विषय में
अन्वेषण के इतिहास में सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति यदि कोई है तो नैनसिंह रावत का नाम सर्वोच्च शिखर पर है । उन्नीसवीं सदी के हिमालयी अन्वेषक नैनसिंह का जन्म 21 अक्तूबर, 1830 को ग्राम भटकूड़ा में हुआ था । शुरू से ही परिश्रमी, मेहनती, नैनसिह के जीवन का उद्देश्य अपने लक्ष्य को पा लेने का था । जीवन की कई विसंगतियों को पार कर लगातार आगे बढ़ते रहने में, अनुसंधान करने में भयंकर कठिनाइयों का सामना करना तो जैसे नैनसिंह की आदत में शुमार हो चुका था ।
नैनसिंह की प्रतिभा उनकी सूझबूझ और क्षमता का अद्भुत विवरण इस पुस्तक में है । उनकी कार्यपद्धति से भारत के ही नहीं अपितु विदेशों के भी प्रतिनिधि कायल थे ।
उनकी जीवनगाथा को सरलतम रोचक शैली में श्री शेखर पाठक ने प्रस्तुत किया है । मानो इस यात्रा में हम भी सहयात्री हैं ।
प्रोफेसर शेखर पाठक हिमालयी इतिहास के अध्येता, निरंतर यात्रा करने वाले तथा जन-आंदोलनों के हिस्सेदार रहे हैं । कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में तीन दशक से अधिक समय तक इतिहास के शिक्षक रहने के साथ आप भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के फैलो रहे हैं । फिलहाल आप नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय, नई दिल्ली के समकालीन अध्ययन संस्थान में सीनियर फैलो हैं और हिमालय के औपनिवेशिक युग के इतिहास पर कार्यरत हैं ।
प्रस्तावना
यद्यपि अन्वेषण के इतिहास में पंडितों या मुंशियों की लगातार चर्चा होती है और उनमें नैन सिंह रावत सर्वाधिक चर्चित रहे हैं लेकिन किसी पंडित या मुंशी की तो दूर नैन सिंह की भी कोई प्रमाणिक जीवनी पिछले साल तक उपलब्ध नहीं थी । नैन सिंह रावत तथा रॉयल ज्यॉग्रेफिकल सोसायटी के 175 साल पूरे होने के मौके पर 2006 में नैन सिंह रावत के जीवन, अन्वेषण तथा लेखन के साथ हिमालय में अन्वेषण का विस्तृत सर्वेक्षण करने वाली तीन खंडों में प्रकाशित पुस्तक 'एशिया की पीठ पर' प्रकाशित हुई थी । यह नैन सिंह को अत्यंत विस्तार से प्रस्तुत करने का प्रयास था ।
परंतु नैन सिंह रावत की एक सरल और लोकप्रिय तरीके से लिखी हुई जीवनी की जरूरत बनी हुई थी । इस हेतु प्रोफेसर विपिन चंद्र के आग्रह को स्वीकारते हुए यह पुस्तक तैयार की गई हे। 'पंडितों का पंडित' इसी जरूरत को पूरा करने की कोशिश है । इसमें अधिकतम शोध सामग्री का प्रयोग हो सका है और जीवनी को सरल तथा रोचक बनाने का प्रयास किया गया है । नैन सिंह रावत को लगातार उसके युग के साथ देखा गया है । बार बार उसकी डायरी के अंशों का प्रयोग किया गया है । परिशिष्ट में कुछ सामग्री दी गई है । साथ ही संदर्भ सामग्री भी दी गई है ताकि यदि किसी पाठक को और अधिक जानकारी चाहिए तो वह बहुत सी और पुस्तकों या लेखों को देख सकता है । नक्शे तथा फोटो भी पाठकों को नैन सिंह के युग में ले जाने में मदद देंगे ।
अनुक्रम |
||
प्रस्तावना |
ग्यारह |
|
1 |
हिमालय की खोज |
|
सिकंदर से सर्वे आव इंडिया तक |
1 |
|
2 |
औपनिवेशिक शासन और हिमालय |
|
नई व्यवस्था के तहत नये अभियान |
20 |
|
3 |
नैन सिंह : पृष्ठभूमि तथा परिवार |
|
कठिन परिवेश, जटिल चुनौतियां |
35 |
|
4 |
पहली बार ल्हासा |
|
देहरादून से काठमांडू से ल्हासा से कैलास |
66 |
|
5 |
ठोकज्यालुंग तक |
|
सोने, सुहागे तथा नमक की खानों वाला मुलुक |
95 |
|
6 |
यारकंद में पांच महीने |
|
मध्य एशिया के तमाम इलाकों से होकर |
112 |
|
7 |
अंतिम अंवेषण यात्रा |
|
लेह से ल्हासा से तवांग से गुवाहाटी |
136 |
|
8 |
यात्रा साहित्य तथा विज्ञान लेखन |
|
तीन डायरियां तथा एक किताब |
183 |
|
9 |
एक मूल्यांकन |
|
शैली, संस्कार, सम्मान तथा स्मृति |
161 |
|
परिशिष्ट |
||
1 |
पंडित नैन सिंह रावत की वंशावली |
179 |
2 |
संदर्भ सूची |
181 |
3 |
पंडित नैन सिंह रावत : कुछ महत्वपूर्ण तिथियां |
191 |
पुस्तक के विषय में
अन्वेषण के इतिहास में सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति यदि कोई है तो नैनसिंह रावत का नाम सर्वोच्च शिखर पर है । उन्नीसवीं सदी के हिमालयी अन्वेषक नैनसिंह का जन्म 21 अक्तूबर, 1830 को ग्राम भटकूड़ा में हुआ था । शुरू से ही परिश्रमी, मेहनती, नैनसिह के जीवन का उद्देश्य अपने लक्ष्य को पा लेने का था । जीवन की कई विसंगतियों को पार कर लगातार आगे बढ़ते रहने में, अनुसंधान करने में भयंकर कठिनाइयों का सामना करना तो जैसे नैनसिंह की आदत में शुमार हो चुका था ।
नैनसिंह की प्रतिभा उनकी सूझबूझ और क्षमता का अद्भुत विवरण इस पुस्तक में है । उनकी कार्यपद्धति से भारत के ही नहीं अपितु विदेशों के भी प्रतिनिधि कायल थे ।
उनकी जीवनगाथा को सरलतम रोचक शैली में श्री शेखर पाठक ने प्रस्तुत किया है । मानो इस यात्रा में हम भी सहयात्री हैं ।
प्रोफेसर शेखर पाठक हिमालयी इतिहास के अध्येता, निरंतर यात्रा करने वाले तथा जन-आंदोलनों के हिस्सेदार रहे हैं । कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में तीन दशक से अधिक समय तक इतिहास के शिक्षक रहने के साथ आप भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के फैलो रहे हैं । फिलहाल आप नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय, नई दिल्ली के समकालीन अध्ययन संस्थान में सीनियर फैलो हैं और हिमालय के औपनिवेशिक युग के इतिहास पर कार्यरत हैं ।
प्रस्तावना
यद्यपि अन्वेषण के इतिहास में पंडितों या मुंशियों की लगातार चर्चा होती है और उनमें नैन सिंह रावत सर्वाधिक चर्चित रहे हैं लेकिन किसी पंडित या मुंशी की तो दूर नैन सिंह की भी कोई प्रमाणिक जीवनी पिछले साल तक उपलब्ध नहीं थी । नैन सिंह रावत तथा रॉयल ज्यॉग्रेफिकल सोसायटी के 175 साल पूरे होने के मौके पर 2006 में नैन सिंह रावत के जीवन, अन्वेषण तथा लेखन के साथ हिमालय में अन्वेषण का विस्तृत सर्वेक्षण करने वाली तीन खंडों में प्रकाशित पुस्तक 'एशिया की पीठ पर' प्रकाशित हुई थी । यह नैन सिंह को अत्यंत विस्तार से प्रस्तुत करने का प्रयास था ।
परंतु नैन सिंह रावत की एक सरल और लोकप्रिय तरीके से लिखी हुई जीवनी की जरूरत बनी हुई थी । इस हेतु प्रोफेसर विपिन चंद्र के आग्रह को स्वीकारते हुए यह पुस्तक तैयार की गई हे। 'पंडितों का पंडित' इसी जरूरत को पूरा करने की कोशिश है । इसमें अधिकतम शोध सामग्री का प्रयोग हो सका है और जीवनी को सरल तथा रोचक बनाने का प्रयास किया गया है । नैन सिंह रावत को लगातार उसके युग के साथ देखा गया है । बार बार उसकी डायरी के अंशों का प्रयोग किया गया है । परिशिष्ट में कुछ सामग्री दी गई है । साथ ही संदर्भ सामग्री भी दी गई है ताकि यदि किसी पाठक को और अधिक जानकारी चाहिए तो वह बहुत सी और पुस्तकों या लेखों को देख सकता है । नक्शे तथा फोटो भी पाठकों को नैन सिंह के युग में ले जाने में मदद देंगे ।
अनुक्रम |
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प्रस्तावना |
ग्यारह |
|
1 |
हिमालय की खोज |
|
सिकंदर से सर्वे आव इंडिया तक |
1 |
|
2 |
औपनिवेशिक शासन और हिमालय |
|
नई व्यवस्था के तहत नये अभियान |
20 |
|
3 |
नैन सिंह : पृष्ठभूमि तथा परिवार |
|
कठिन परिवेश, जटिल चुनौतियां |
35 |
|
4 |
पहली बार ल्हासा |
|
देहरादून से काठमांडू से ल्हासा से कैलास |
66 |
|
5 |
ठोकज्यालुंग तक |
|
सोने, सुहागे तथा नमक की खानों वाला मुलुक |
95 |
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6 |
यारकंद में पांच महीने |
|
मध्य एशिया के तमाम इलाकों से होकर |
112 |
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7 |
अंतिम अंवेषण यात्रा |
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लेह से ल्हासा से तवांग से गुवाहाटी |
136 |
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8 |
यात्रा साहित्य तथा विज्ञान लेखन |
|
तीन डायरियां तथा एक किताब |
183 |
|
9 |
एक मूल्यांकन |
|
शैली, संस्कार, सम्मान तथा स्मृति |
161 |
|
परिशिष्ट |
||
1 |
पंडित नैन सिंह रावत की वंशावली |
179 |
2 |
संदर्भ सूची |
181 |
3 |
पंडित नैन सिंह रावत : कुछ महत्वपूर्ण तिथियां |
191 |