पुस्तक परिचय
शातातप, गर्ग, पराशर, याज्ञवल्क्य आदि के द्वारा प्रकट किए गए तथा प्राचीन संस्कृत वाङ्मय से खास आपके लिए चुन चुनकर लाए गए उपायों का साफ खुलासा करने वाले इस ग्रन्थ में आप पाएंगें-
जन्मपत्री हो न हो, सामने पड़े कष्ट के अनुसार सीधे उपाय;
किसी भी पंथ, धर्म, सम्प्रदाय का कोई बन्धन नहीं;
बहुत मामूली खर्च में होने वाली सटीक विधियां; सब कुछ आसान और खुद करने योग्य;
सब सात्विक उपाय, किसी भी तरह के वाममार्गी टोनों टोटकों से परे;
कालसर्प, मंगलीक, राहु अंगारक, पितृ दोष, केमदुम (गरीबी) वास्तु आदि केआसान उपचार।
आसानी से मिलने वाली और घर में रखने भर से ही फल देने वाली चीजों से ही ग्रह शान्ति;
केवल दिनचर्या और दैनिक व्यवहार में ही मामूली फेरबदल के उपाय;
बहुत छोटे लेकिन गहरा असर रखने वाले मन्त्रों का खुलासा;
नौ ग्रहों की पूजा के लिए बिल्कुल आसान, कारगर और तुरंत फलने वाले अनेक तरीके;
वनस्पतियों, जड़ी बूटियों, धातु, मिट्टी, जल, फूल, फल और सब्जियों से ग्रह शान्ति;
कम मूल्य वाले सुलभ नग नगीनो के लाभ का विवेचन; घरेलू क्लेश, अनबन और विरोध को सीमित कर घर में बरकत, सुख शान्ति और आपसी तालमेल की पगडण्डियां;
कर्ज, हर्ज और मर्ज से यथासम्भव छुटकारे की युक्तियां;
दोषनिवारण: मन की शान्ति : भाग्यवृद्धि : सिद्धि के सोपान;
संस्कृत जानना या खुद कर्मकाण्डी होना कतई जरूरी नहीं।
दो शब्द
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमै । (हितोपदेश)
व्यवहार कुशलता तरकीब, इलाज, उपचार से दुर्गम काज भी आसानी से सम्पन्न होते हैं, जबकि मूढ़मति जन जोर जबरदस्ती, से काम साधने की जुगत में रहते हैं । कहा गया है कि अपाय यानि नुकसान, दोष, कुफल, पाप फल, कमी, हानि आदि के सही कारण को पहचान लें तो उसका उपाय करना बहुत सरल और बड़ा कारगर हो जाता है । उपाय कैसा हो, इसके लिए कमजोरी का वजूद, मात्रा, वजन समझना जरूरी है ।
जहां काम आवे सुई कहा करै तलवार, नतीजा, परिणाम, कार्य को देखकर उसका कारण, मुकम्मल वजह पहचानना ज्यादा आसान है । दूर जंगल में उठते धुएं को देखकर हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि वहां आग है । इसके विपरीत आग होना सदा धुआ होने की गारंटी नहीं है । जैसे, अपने घर की रसोई में देखती आखों गैस का चूल्हा या हीटर जलते होने पर भी अनिवार्य रूप से धुआ नहीं होता है । यहां किस ग्रह का क्या फल है, इस बात पर जोर न देकर यह रास्ता चुना है कि आप कार्य परिणाम, फल, परेशानी को देखकर उसके कारण रूप ग्रहदोष को खुद ग्द्रुचानें और उसका उपाय करके लाभ प्राप्त करें । इसके लिए किस ग्रह का क्या फल है यह बहुप्रचलित रास्ता यहां नहीं अपनाया है । बल्कि कौन सी कमजोरी हानि, कमी, सेनानी किस ग्रह के कारण होती है, इस बात को मद्देनजर रखते हुए सब ग्रहों के कमजोर फलों के विवेचन को तरज़ीह दी गई है । उदाहरण के लिए आपको तनाव, मन में बेचैनी, भीतरी डर अवसाद महसूस होता है और इसके कारण आपके सामाजिक, पारिवारिक या व्यापारिक सम्बन्धों में हालात बदमज़ा हो रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि कहीं न कहीं आपके जन्म समय की चन्द्रमा की स्थिति जिम्मेवार है। तब चन्द्रमा के आसान उपाय खुद करिए और काम पर मजे से चलिए । इसके लिए आपको अपनी जन्मपत्री की गहरी पड़ताल करने की कोई खास जरूरत नहीं पड़ेगी ।
बड़े उपायों का खुलासा हम अपने उपाय भाग्योदय नामक ग्रन्थ में कर चुके हैं। पाठकों का खास आग्रह था कि सरल, खुद करने योग्य सर्वसाधारण उपायों का खुलासा किया जाए जिससे साधारण जन भी निःसंकोच उन्हें करके लाभ पा सकें।
यह पुस्तक संस्कृत न जानने वाले लोगों और बड़े उपायों के विधि-विधान कर पाने में असमर्थ लोगों को दृष्टि में रखकर लिखी जा रही है । यहां की सब बातें ऋषियों मुनियो द्वारा ही बताई गई हैं। इनमें कुछ भी कपोलकल्पना या मनमर्जी की मिलावट नहीं है । केवल दिनचर्या में भी मामूली हेरफेर करके कुदरती उपायों से ही ग्रहों की अनुकूलता पाने के आसान अल्पमोली उपायों का खुलासा किया गया है । जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों, खान-पान और मामूली व्रत दान आदि से ग्रहों की अनुकूलता पाने के सरल सोपानों को साफ समझाया गया है ।
कहा गया है कि
गोचरे वा विलग्ने वा ये ग्रहा रिष्टसूचका:।
पूजयेत् तान् प्रयत्नेन पूजित: स्यु: शुभावहा: ।।
यहां वाममार्गी तामसिक पूजा, दान, टोने टोटके और निराधार बातों को कोई स्थान नहीं दिया गया है । ग्रहों के पूजन के लिए उनके शास्त्र सम्मत चित्र भी दिए गए हैं । अनिष्ट ग्रह को अनुकूल करने के लिए शास्त्रों में जो दस बारह तरीके बताए गए हैं, उनमें से सरल विधियों का भी खुलासा किया जाए इसीलिए यह पुस्तक लिखी गई है । ग्रह शान्ति के लिए इन शास्त्रीय विधियों का आधार लिया गया हैं-
वैदिक या पौराणिक मन्त्रों का जप, हवन आदि । मणि या रत्न बहुमोली अल्पमोली या वैकल्पिक रत्न आदि बताए गए हैं । यहां कम मूल्य वाले लेकिन कारगर उपरत्नों को बताया गया है । औषधि या जड़ी-बूटी या वनस्पतियों के माध्यम से भी ग्रह-शान्ति की आसान विधियां कही गई हैं । नाममन्त्रों के द्वारा बहुत छोटे मन्त्रों को स्पष्ट किया गया है । रामायण आदि के जनभाषा में कहे गए अंशों का मन्त्रात्मक रूप स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है ।
वृक्षों में दैवी शक्ति का अधिवास होने से वनस्पति पूजा से अनिष्ट निवारण के उपाय समाहित हैं । ग्रहों के व्रत की पुराणों में वर्णित विधियां बताते हुए लोकाचार में प्रचलित कल्पित कथा कहानियों से यथासम्भव बचाव रखा गया है । दिनचर्या में यदि सुबह का समय सध जाए तो सारा दिन सही हो जाता है, इस शास्त्रादेश का पालन करते हुए आसान दैनिक कृत्यों का विवरण व विधि बताई है ।
पाठकों से निवेदन है कि मन्त्र चाहे छोटा हो या बड़ा, उसमें देवताओं का निवास होता है । उसका विधि पूर्वक जप, मनन, पारायण, यजन, पूजन हवन करने से देवता प्रसन्न होकर कल्याण को ही प्रेरित करते हैं ।
कहा गया है-
मर परम मधु जात बस विधि हरि हर सुर सर्व।
महामत्त्त गजराज कहं बस कर अकुंश खर्व ।।
अत: उपाय करते समय कृपया इन बातों का खास ध्यान रखें तो सफलता अवश्य मिलती है- श्रद्धा- गीता में कहा गया है कि श्रद्धाहीन और दुविधा में जीने वाले लोग परेशानी में पड़ते हैं । अत: श्रद्धा सफलता की पहली सीढ़ी है । धैर्य- उपाय करते समय मन में धीरज रखना बहुत जरूरी है । हम आज तजि रसायन, ताकत की दवा खाना शुरु करें तो उसका नतीजा आने में समय तो लगेगा ही । आज हम आम का पौधा लगाएं तो उसके फल खाने के लिए हमें इन्तजार तो करना ही पड़ेगा । लेकिन छत से कूद जाएं तो मज्जन फल पेखिय तत्काला के नियम से हाथों हाथ तत्काल फल मिल जाएगा । भक्ति- यही वह ताकत है जो मन्त्र, देवता और भक्त का त्रिकोण बना उन्हें एक सूत्र में पिरोती है । शुद्धि- तन मन व कर्म की त्रिविध शुद्धि सफलता के लिए आवश्यक है । तन साफ मन में अच्छे विचार और सब तरह की हिंसा से बचाव सफलता की अगली सीढ़ी है । हाथ में माला का मनका घूमे, जीभ मुंह में कदम ताल करे और मनवा बेईमान आकाश पाताल की खबरें कवर कर रहा हो तो भला उपाय हमें क्या खाकर फल देगा? अत: इन मामूली दिखने वाले नियमों का पालन करते हुए पूरे विश्वास के साथ उपाय करिए तो देर सबेर फल आएगा ही । प्रत्यक्ष फल आने तक आपा साधै जग सध जाए के अनुसार क्रमश: हमारा आत्मिक उत्थान अवश्य होता रहेगा । अन्त में अथर्वा, गर्ग, पराशर, कात्यायन, शातातप, याज्ञवल्क्य, आदि वैदिक ऋषियों के खन्न करते हुए लोकोपकार की सद्भावना से किया गया यह प्रयत्न सार्थक उपयोगी और कष्टनिवारक हो सके, ऐसी कामनाओं के साथ बरसों से निरन्तर चल रहे ज्ञानयज्ञ का यह दिव्य प्रसाद पाठकों को सादर समर्पित करते हुए प्रार्थना है-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्वदु:खभाग्वेत्।।
अनुक्रमणी |
||
1 |
आधार शिला: कर्म प्रधान विश्व रचि राखा |
9-19 |
2 |
सूर्य के उपाय: तमसो मा ज्योतिर्गमय |
21-35 |
3 |
चन्द्रमा के उपाय:चन्द्रमा मनसो जात: |
37-48 |
4 |
मंगल के उपाय: ताम्रो अरुण उत बभ्रु:सुमंगल: |
50-61 |
5 |
बुध के उपाय: बुधो बुद्धिमतां श्रेष्ठों विष्नुरूपी धनप्रद: |
63-73 |
6 |
बृहस्पति के उपाय: आदित्यं विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् |
75-88 |
7 |
शुक्र के उपाय: प्रेम आकर्षण और सुखभोग |
90-104 |
8 |
शनि के उपाय: हरि और हर का प्यारा |
106-121 |
9 |
राहु केतु के उपाय: उन्नति रूप और धन |
124-139 |
10 |
सरल और अनुभूत उपाय: कौन सो काज जग माहीं |
140-157 |
11 |
रामायण अदि के सरल उपाय: मेटत कठिन कुअंक भाल के |
158-176 |
पुस्तक परिचय
शातातप, गर्ग, पराशर, याज्ञवल्क्य आदि के द्वारा प्रकट किए गए तथा प्राचीन संस्कृत वाङ्मय से खास आपके लिए चुन चुनकर लाए गए उपायों का साफ खुलासा करने वाले इस ग्रन्थ में आप पाएंगें-
जन्मपत्री हो न हो, सामने पड़े कष्ट के अनुसार सीधे उपाय;
किसी भी पंथ, धर्म, सम्प्रदाय का कोई बन्धन नहीं;
बहुत मामूली खर्च में होने वाली सटीक विधियां; सब कुछ आसान और खुद करने योग्य;
सब सात्विक उपाय, किसी भी तरह के वाममार्गी टोनों टोटकों से परे;
कालसर्प, मंगलीक, राहु अंगारक, पितृ दोष, केमदुम (गरीबी) वास्तु आदि केआसान उपचार।
आसानी से मिलने वाली और घर में रखने भर से ही फल देने वाली चीजों से ही ग्रह शान्ति;
केवल दिनचर्या और दैनिक व्यवहार में ही मामूली फेरबदल के उपाय;
बहुत छोटे लेकिन गहरा असर रखने वाले मन्त्रों का खुलासा;
नौ ग्रहों की पूजा के लिए बिल्कुल आसान, कारगर और तुरंत फलने वाले अनेक तरीके;
वनस्पतियों, जड़ी बूटियों, धातु, मिट्टी, जल, फूल, फल और सब्जियों से ग्रह शान्ति;
कम मूल्य वाले सुलभ नग नगीनो के लाभ का विवेचन; घरेलू क्लेश, अनबन और विरोध को सीमित कर घर में बरकत, सुख शान्ति और आपसी तालमेल की पगडण्डियां;
कर्ज, हर्ज और मर्ज से यथासम्भव छुटकारे की युक्तियां;
दोषनिवारण: मन की शान्ति : भाग्यवृद्धि : सिद्धि के सोपान;
संस्कृत जानना या खुद कर्मकाण्डी होना कतई जरूरी नहीं।
दो शब्द
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमै । (हितोपदेश)
व्यवहार कुशलता तरकीब, इलाज, उपचार से दुर्गम काज भी आसानी से सम्पन्न होते हैं, जबकि मूढ़मति जन जोर जबरदस्ती, से काम साधने की जुगत में रहते हैं । कहा गया है कि अपाय यानि नुकसान, दोष, कुफल, पाप फल, कमी, हानि आदि के सही कारण को पहचान लें तो उसका उपाय करना बहुत सरल और बड़ा कारगर हो जाता है । उपाय कैसा हो, इसके लिए कमजोरी का वजूद, मात्रा, वजन समझना जरूरी है ।
जहां काम आवे सुई कहा करै तलवार, नतीजा, परिणाम, कार्य को देखकर उसका कारण, मुकम्मल वजह पहचानना ज्यादा आसान है । दूर जंगल में उठते धुएं को देखकर हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि वहां आग है । इसके विपरीत आग होना सदा धुआ होने की गारंटी नहीं है । जैसे, अपने घर की रसोई में देखती आखों गैस का चूल्हा या हीटर जलते होने पर भी अनिवार्य रूप से धुआ नहीं होता है । यहां किस ग्रह का क्या फल है, इस बात पर जोर न देकर यह रास्ता चुना है कि आप कार्य परिणाम, फल, परेशानी को देखकर उसके कारण रूप ग्रहदोष को खुद ग्द्रुचानें और उसका उपाय करके लाभ प्राप्त करें । इसके लिए किस ग्रह का क्या फल है यह बहुप्रचलित रास्ता यहां नहीं अपनाया है । बल्कि कौन सी कमजोरी हानि, कमी, सेनानी किस ग्रह के कारण होती है, इस बात को मद्देनजर रखते हुए सब ग्रहों के कमजोर फलों के विवेचन को तरज़ीह दी गई है । उदाहरण के लिए आपको तनाव, मन में बेचैनी, भीतरी डर अवसाद महसूस होता है और इसके कारण आपके सामाजिक, पारिवारिक या व्यापारिक सम्बन्धों में हालात बदमज़ा हो रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि कहीं न कहीं आपके जन्म समय की चन्द्रमा की स्थिति जिम्मेवार है। तब चन्द्रमा के आसान उपाय खुद करिए और काम पर मजे से चलिए । इसके लिए आपको अपनी जन्मपत्री की गहरी पड़ताल करने की कोई खास जरूरत नहीं पड़ेगी ।
बड़े उपायों का खुलासा हम अपने उपाय भाग्योदय नामक ग्रन्थ में कर चुके हैं। पाठकों का खास आग्रह था कि सरल, खुद करने योग्य सर्वसाधारण उपायों का खुलासा किया जाए जिससे साधारण जन भी निःसंकोच उन्हें करके लाभ पा सकें।
यह पुस्तक संस्कृत न जानने वाले लोगों और बड़े उपायों के विधि-विधान कर पाने में असमर्थ लोगों को दृष्टि में रखकर लिखी जा रही है । यहां की सब बातें ऋषियों मुनियो द्वारा ही बताई गई हैं। इनमें कुछ भी कपोलकल्पना या मनमर्जी की मिलावट नहीं है । केवल दिनचर्या में भी मामूली हेरफेर करके कुदरती उपायों से ही ग्रहों की अनुकूलता पाने के आसान अल्पमोली उपायों का खुलासा किया गया है । जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों, खान-पान और मामूली व्रत दान आदि से ग्रहों की अनुकूलता पाने के सरल सोपानों को साफ समझाया गया है ।
कहा गया है कि
गोचरे वा विलग्ने वा ये ग्रहा रिष्टसूचका:।
पूजयेत् तान् प्रयत्नेन पूजित: स्यु: शुभावहा: ।।
यहां वाममार्गी तामसिक पूजा, दान, टोने टोटके और निराधार बातों को कोई स्थान नहीं दिया गया है । ग्रहों के पूजन के लिए उनके शास्त्र सम्मत चित्र भी दिए गए हैं । अनिष्ट ग्रह को अनुकूल करने के लिए शास्त्रों में जो दस बारह तरीके बताए गए हैं, उनमें से सरल विधियों का भी खुलासा किया जाए इसीलिए यह पुस्तक लिखी गई है । ग्रह शान्ति के लिए इन शास्त्रीय विधियों का आधार लिया गया हैं-
वैदिक या पौराणिक मन्त्रों का जप, हवन आदि । मणि या रत्न बहुमोली अल्पमोली या वैकल्पिक रत्न आदि बताए गए हैं । यहां कम मूल्य वाले लेकिन कारगर उपरत्नों को बताया गया है । औषधि या जड़ी-बूटी या वनस्पतियों के माध्यम से भी ग्रह-शान्ति की आसान विधियां कही गई हैं । नाममन्त्रों के द्वारा बहुत छोटे मन्त्रों को स्पष्ट किया गया है । रामायण आदि के जनभाषा में कहे गए अंशों का मन्त्रात्मक रूप स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है ।
वृक्षों में दैवी शक्ति का अधिवास होने से वनस्पति पूजा से अनिष्ट निवारण के उपाय समाहित हैं । ग्रहों के व्रत की पुराणों में वर्णित विधियां बताते हुए लोकाचार में प्रचलित कल्पित कथा कहानियों से यथासम्भव बचाव रखा गया है । दिनचर्या में यदि सुबह का समय सध जाए तो सारा दिन सही हो जाता है, इस शास्त्रादेश का पालन करते हुए आसान दैनिक कृत्यों का विवरण व विधि बताई है ।
पाठकों से निवेदन है कि मन्त्र चाहे छोटा हो या बड़ा, उसमें देवताओं का निवास होता है । उसका विधि पूर्वक जप, मनन, पारायण, यजन, पूजन हवन करने से देवता प्रसन्न होकर कल्याण को ही प्रेरित करते हैं ।
कहा गया है-
मर परम मधु जात बस विधि हरि हर सुर सर्व।
महामत्त्त गजराज कहं बस कर अकुंश खर्व ।।
अत: उपाय करते समय कृपया इन बातों का खास ध्यान रखें तो सफलता अवश्य मिलती है- श्रद्धा- गीता में कहा गया है कि श्रद्धाहीन और दुविधा में जीने वाले लोग परेशानी में पड़ते हैं । अत: श्रद्धा सफलता की पहली सीढ़ी है । धैर्य- उपाय करते समय मन में धीरज रखना बहुत जरूरी है । हम आज तजि रसायन, ताकत की दवा खाना शुरु करें तो उसका नतीजा आने में समय तो लगेगा ही । आज हम आम का पौधा लगाएं तो उसके फल खाने के लिए हमें इन्तजार तो करना ही पड़ेगा । लेकिन छत से कूद जाएं तो मज्जन फल पेखिय तत्काला के नियम से हाथों हाथ तत्काल फल मिल जाएगा । भक्ति- यही वह ताकत है जो मन्त्र, देवता और भक्त का त्रिकोण बना उन्हें एक सूत्र में पिरोती है । शुद्धि- तन मन व कर्म की त्रिविध शुद्धि सफलता के लिए आवश्यक है । तन साफ मन में अच्छे विचार और सब तरह की हिंसा से बचाव सफलता की अगली सीढ़ी है । हाथ में माला का मनका घूमे, जीभ मुंह में कदम ताल करे और मनवा बेईमान आकाश पाताल की खबरें कवर कर रहा हो तो भला उपाय हमें क्या खाकर फल देगा? अत: इन मामूली दिखने वाले नियमों का पालन करते हुए पूरे विश्वास के साथ उपाय करिए तो देर सबेर फल आएगा ही । प्रत्यक्ष फल आने तक आपा साधै जग सध जाए के अनुसार क्रमश: हमारा आत्मिक उत्थान अवश्य होता रहेगा । अन्त में अथर्वा, गर्ग, पराशर, कात्यायन, शातातप, याज्ञवल्क्य, आदि वैदिक ऋषियों के खन्न करते हुए लोकोपकार की सद्भावना से किया गया यह प्रयत्न सार्थक उपयोगी और कष्टनिवारक हो सके, ऐसी कामनाओं के साथ बरसों से निरन्तर चल रहे ज्ञानयज्ञ का यह दिव्य प्रसाद पाठकों को सादर समर्पित करते हुए प्रार्थना है-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्वदु:खभाग्वेत्।।
अनुक्रमणी |
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1 |
आधार शिला: कर्म प्रधान विश्व रचि राखा |
9-19 |
2 |
सूर्य के उपाय: तमसो मा ज्योतिर्गमय |
21-35 |
3 |
चन्द्रमा के उपाय:चन्द्रमा मनसो जात: |
37-48 |
4 |
मंगल के उपाय: ताम्रो अरुण उत बभ्रु:सुमंगल: |
50-61 |
5 |
बुध के उपाय: बुधो बुद्धिमतां श्रेष्ठों विष्नुरूपी धनप्रद: |
63-73 |
6 |
बृहस्पति के उपाय: आदित्यं विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् |
75-88 |
7 |
शुक्र के उपाय: प्रेम आकर्षण और सुखभोग |
90-104 |
8 |
शनि के उपाय: हरि और हर का प्यारा |
106-121 |
9 |
राहु केतु के उपाय: उन्नति रूप और धन |
124-139 |
10 |
सरल और अनुभूत उपाय: कौन सो काज जग माहीं |
140-157 |
11 |
रामायण अदि के सरल उपाय: मेटत कठिन कुअंक भाल के |
158-176 |