योग एक जीवन दर्शन
योग एक जीवन दर्शन है, योग आत्मानुशासन है, योग एक जीवन पद्धति है, योग व्याधिमुक्त व समाधियुक्त जीवन की संकल्पना है । योग आत्मोपचार एवं आत्मदर्शन की श्रेष्ठ आध्यात्मिक विद्या है । योग व्यक्तित्व को वामन से विराट- बनाने की या समग्र रूप से स्वयं को रूपान्तरित व विकसित करने की आध्यात्मिक विद्या है । योग मात्र एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं अपितु योग का प्रयोग परिणामों पर आधारित एक ऐसा प्रमाण है जो व्याधि को निर्मूल करता है अत: यह एक सम्पूर्ण विधा का शरीर रोगों का ही नहीं बल्कि मानस रोगों का भी चिकित्सा शास्त्र है ।
योग एलोपैथी की तरह कोई लाक्षणिक चिकित्सा नहीं अपितु रोगों के मूल कारण को निर्मूल कर हमें भीतर से स्वस्थता प्रदान करता है।योग को मात्र एक व्यायाम की तरह देखना या वर्ग विशेष की मात्र पूजापाठ की एक पद्धति की तरह देखना संकीर्णतापूर्ण, अविवेकी दृष्टिकोण है । स्वार्थ, आग्रह, अज्ञान एवं अहंकार से ऊपर उठकर योग को हमें एक सम्पूर्ण विज्ञान की तरह देखना चाहिए ।
योग की पौराणिक मान्यता है कि इससे अष्टचक्र जागृत होते हैं एवं प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से जन्म-जन्मान्तर के संचित अशुभ संस्कार व पाप परिक्षीण होते हैं ।
इसी पुस्तक से
अनुक्रमणिका
1
प्रकाशकीय
2
प्राण-सूक्त
3
प्राण का अर्थ एवं महत्त्व
8
4
प्राण के प्रकार
10
5
देह में स्थित पंचकोश
13
6
प्राण-साधना
15
7
वैदिक साहित्य में प्राणविद्या
16
29
9
चिकित्सा विज्ञान के दो सिद्धान्त
32
प्राणायाम का अनुभूत सत्य
35
11
पेट से श्वसन की मान्यता अवैज्ञानिक
37
12
वायु के घटक
38
यौगिक क्रियाओं का यांत्रिकीय विश्लेषण
41
14
मेडिकल साइंस की नैनोटैक्नोलॉजी 'प्राण'
58
प्राणायाम का महत्त्व एवं लाभ
63
प्राणायाम हेतु कुछ नियम
82
17
प्राणायाम में उपयोगी बन्धत्रय
86
18
प्राणायाम की सम्पूर्ण आठ प्रक्रियाएँ
88
19
रोगोपचार की दृष्टि से उपयोगी अन्य प्राणायाम
100
20
शरीर में सन्निहित शक्ति-केन्द्र या चक्र
105
21
कुण्डलिनी शक्ति
111
22
ध्यान के लिए कुछ दिशा-निर्देश
118
23
कुण्डलिनी जागरण के लक्ष्ण एवं लाभ
121
Your email address will not be published *
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend