पुस्तक परिचय
प्रेमचंद (1880-1936) भारत के शीर्षस्थ एवं कालजयी साहित्यकारों में से एक हैं । संपूर्ण विश्व साहित्य में उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । वे बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न साहित्यकार थे । उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, संपादकीय, संस्मरण, समीक्षा आदि गद्य विधाओं में लिखा, लेकिन उन्हें एक कहानीकार और उपन्यास लेखक के रूप में ही ज्यादा पहचाना गया । उन्हें अपने जीवनकाल में ही 'उपन्यास-सम्राट' की पदवी मिल गई थी ।
प्रेमचंद ने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हज़ारों लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका आदि की लेखकीय धरोहर छोड़ी है । यह स्थिति हिंदी एवं उर्दू दोनों भाषाओं से ही दिखाई पड़ती है, चूँकि वे इन दोनों ही भाषाओं में समान रूप से सृजनशील थे ।
उनका उपन्यास गोदान और कहानी 'कफ़न' उनकी सर्वाधिक चर्चित और कालजयी रचनाएँ हैं । प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय किसान के करुण जीवन के यथार्थ को मर्मभेदी रूप में प्रस्तुत किया गया है । उनकी रचनाओं की सामग्री उनके जीवन के निजी अनुभवों और निकट परिवेश के सूक्ष्म निरीक्षण से समेटी गई है ।
लेखक परिचय
कमल किशोर गोयनका (जन्म : 1938) प्रस्तुत विनिबंध के लेखक गोयनका जी की ख्याति प्रेमचंद के अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान के लिए समर्पित व्यक्ति के रूप में है । प्रेमचंद पर केंद्रित आपकी दो दर्जन से ज्यादा मौलिक एवं संपादित कृतियाँ प्रकाशित हैं, जिनमें प्रमुख हैं-प्रेमचंद विश्वकोश (दो खंड, 1981), प्रेमचंद का अप्राप्त साहित्य (दो खंड, 1988), प्रेमचंद के नाम पत्र (2002), प्रेमचंद की अप्राप्त कहानियाँ (2005), प्रेमचदं कहानी रचनावली (छह खंड, 2011) आदि । अन्य लेखकों और विषयों पर भी उनकी 20 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत डॉ. ज़ाकिर हुसैन स्नातकोत्तर (सांध्य) महाविद्यालय के हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त उप-प्राचार्य गोयनका जी को भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), हिंदी अकादमी (दिल्ली), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ), केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) और हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के पुरस्कारों सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हुए हैं ।
अनुक्रम |
||
1 |
जीवन |
7 |
2 |
साहित्य |
11 |
3 |
साहित्य-चिन्तन |
20 |
4 |
सृजन-प्रक्रिया |
28 |
5 |
राष्ट्र स्वराज्य का कथात्मक महासमर |
34 |
6 |
समाज जागरण, मुक्ति एवं कायाकल्प |
46 |
7 |
कृषि संस्कृति रक्षा की अनिवार्यता |
56 |
8 |
विचार गांधीवाद या समाजवाद |
66 |
9 |
साम्प्रदायिकता एकता का संकल्प |
74 |
10 |
मनोविज्ञान प्रयोग की दिशाएँ |
85 |
11 |
भाषा वैभव और वैशिष्ट्य |
92 |
12 |
प्रासंगिकता विचार का औचित्य |
103 |
13 |
उपसंहार |
108 |
परिशिष्ट |
121 |
पुस्तक परिचय
प्रेमचंद (1880-1936) भारत के शीर्षस्थ एवं कालजयी साहित्यकारों में से एक हैं । संपूर्ण विश्व साहित्य में उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । वे बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न साहित्यकार थे । उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, संपादकीय, संस्मरण, समीक्षा आदि गद्य विधाओं में लिखा, लेकिन उन्हें एक कहानीकार और उपन्यास लेखक के रूप में ही ज्यादा पहचाना गया । उन्हें अपने जीवनकाल में ही 'उपन्यास-सम्राट' की पदवी मिल गई थी ।
प्रेमचंद ने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हज़ारों लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका आदि की लेखकीय धरोहर छोड़ी है । यह स्थिति हिंदी एवं उर्दू दोनों भाषाओं से ही दिखाई पड़ती है, चूँकि वे इन दोनों ही भाषाओं में समान रूप से सृजनशील थे ।
उनका उपन्यास गोदान और कहानी 'कफ़न' उनकी सर्वाधिक चर्चित और कालजयी रचनाएँ हैं । प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय किसान के करुण जीवन के यथार्थ को मर्मभेदी रूप में प्रस्तुत किया गया है । उनकी रचनाओं की सामग्री उनके जीवन के निजी अनुभवों और निकट परिवेश के सूक्ष्म निरीक्षण से समेटी गई है ।
लेखक परिचय
कमल किशोर गोयनका (जन्म : 1938) प्रस्तुत विनिबंध के लेखक गोयनका जी की ख्याति प्रेमचंद के अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान के लिए समर्पित व्यक्ति के रूप में है । प्रेमचंद पर केंद्रित आपकी दो दर्जन से ज्यादा मौलिक एवं संपादित कृतियाँ प्रकाशित हैं, जिनमें प्रमुख हैं-प्रेमचंद विश्वकोश (दो खंड, 1981), प्रेमचंद का अप्राप्त साहित्य (दो खंड, 1988), प्रेमचंद के नाम पत्र (2002), प्रेमचंद की अप्राप्त कहानियाँ (2005), प्रेमचदं कहानी रचनावली (छह खंड, 2011) आदि । अन्य लेखकों और विषयों पर भी उनकी 20 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत डॉ. ज़ाकिर हुसैन स्नातकोत्तर (सांध्य) महाविद्यालय के हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त उप-प्राचार्य गोयनका जी को भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), हिंदी अकादमी (दिल्ली), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ), केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) और हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के पुरस्कारों सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हुए हैं ।
अनुक्रम |
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1 |
जीवन |
7 |
2 |
साहित्य |
11 |
3 |
साहित्य-चिन्तन |
20 |
4 |
सृजन-प्रक्रिया |
28 |
5 |
राष्ट्र स्वराज्य का कथात्मक महासमर |
34 |
6 |
समाज जागरण, मुक्ति एवं कायाकल्प |
46 |
7 |
कृषि संस्कृति रक्षा की अनिवार्यता |
56 |
8 |
विचार गांधीवाद या समाजवाद |
66 |
9 |
साम्प्रदायिकता एकता का संकल्प |
74 |
10 |
मनोविज्ञान प्रयोग की दिशाएँ |
85 |
11 |
भाषा वैभव और वैशिष्ट्य |
92 |
12 |
प्रासंगिकता विचार का औचित्य |
103 |
13 |
उपसंहार |
108 |
परिशिष्ट |
121 |