पुस्तक के विषय में
प्रातःस्मरणीय महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराजजी की साधनोज्वल प्रज्ञा में जिस तत्वानुभूति का प्रतिफलन हुआ था, यह उसी का संकलन है। तत्त्व से यहाँ षट्त्रिश तत्त्व किंवा पंचतत्त्वादि का तात्पर्यार्थ नहीं है। यहाँ तत्त्व का अर्थ प्राणब्रह्म, आत्मब्रह्म, परब्रह्मरूप सत्ता है, जो तत्त्वातीत होकर भी सर्वतत्त्वमय है। इनका तत्त्वातीत रूप मन-वाणी- अनुभूति, सबसे परे है । जीवदशा में इनके इस रूप की अनुभूति कर सकना भी असम्भव है, यहाँ तक की इनकी धारणा भी इस देहयन्त्र से कोई कैसे कर सकता है? तथापि महापुरुष के अन्त-चक्षु इनके तत्त्वमय स्वरूप की अनुभूति कर ही लेते हैं, यही है परमतत्त्व की अनुग्रहरूप कृपा । स्वप्रयत्न से कोई भी इस तत्वानुभूति का अधिकारी नहीं हो सकता । यह कृपा-सापेक्ष है।
यह अनुग्रहानुभूति सामान्य जन के लिए दुष्प्राप्य है । इस अनुभूति प्रभा को धारण करने योग्य जिस चित्तफलक की आवश्यकता है, वह पाकर भी मनुष्य उस पर संश्लिष्ट कल्मष का मार्जन नहीं कर सका है । ऐसी स्थिति में महापुरुष की तत्त्वानुभूतिपूर्ण वाङ्मयी त्रिपथगा में, ज्ञान- भक्ति-कर्म की अन्त:सलिला में निमज्जन करके जिज्ञासुवर्ग अवश्य कृतार्थ होगा और उसके इस स्नान से स्वच्छ- धौत-निष्कल्मष चित्तफलक पर किंचित् परिमाण में वह अनुभूति अवश्य प्रतिच्छवित हो सकेगी, यह विश्वास करता हूँ।
इस संक्षिप्त कलेवर तथापि प्रत्यक्षानुभूतिपूर्ण, गम्भीरार्थनिहित सद्ग्रन्थ को प्रकाशित करके सर्वजनसुलभ करने का विश्वविद्यालय प्रकाशन के अधिष्ठातागण ने एक स्तुत्य प्रयास किया है, जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।
विषयानुक्रमणिका
1
आत्मज्ञान
2
प्रकाश एवं चिदाकाश
8
3
आनन्दधाम
11
4
बलि
12
5
नामकरण
14
6
भाव
15
7
देवता
16
इच्छा
24
9
आकाश तत्त्व
29
10
प्रकाश- आलोक-ज्योति
31
सत्ता
34
विजय
36
13
ज्ञान एवं कर्म
37
दीक्षातत्त्व
39
कृत्रिम तथा स्वाभाविक वायु
43
कृपा
45
17
बिन्दु-महाबिन्दु
47
18
कृष्णतत्त्व (कृष्णज्योति तत्त्व)
56
19
मार्ग
58
20
आकाश
63
21
क्रिया
67
22
प्रलय-मृत्यु
70
23
मन
72
अखण्ड सत्व
75
25
विशुद्धवाणी प्रसंग
78
26
शुद्धसत्त्व
83
27
अन्तर्यात्रा
86
28
जप
92
कारण-जगत् तथा इच्छा, ईश्वरेच्छा
98
30
बीज
101
बिन्दु-कला
103
32
देह तथा कारण-जगत्
108
33
आत्मज्ञान-आत्मगति
117
गुरु
137
35
वेद एवं सूर्य
139
साधक एवं योगी
141
धर्म
142
38
अगम पथ
144
सृष्टि-काम रहस्य
147
40
व्यापकता
149
41
जीवोद्धार
150
42
चित्त
151
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