सृष्टि के अभ्युदय के उपरांत मानव समुदाय में महत्वाकांक्षा जागृत हुई जिसके परिणामस्वरूप लोगो में आगामी जीवन के विषय में जानने की इच्छा बलवती हुई | इसी उत्कंठा के शमन के उदेश्य से विभिन्न प्रकार के फलस्वरूप की पद्धतियों का विकास हर सभ्यता में हुआ | विकास के क्रम में ही खगोल के सिद्धांत विकसित होते गए जिसे निश्चित रूप से भौतिकशास्त्र एवं गणित से भी महती सहायता प्राप्त हुई | वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष शास्त्र का प्रमुख आधार ही खगोलीय एवं गणितीय गणनाएं है | जन्म समय की खगोलीय स्थति के आधार पर ही गणितीय गणना कर किसी जातक की जन्मकुंडली का निर्माण किया जाता है |
प्रस्तुत पुस्तक की रचना पाठको को ज्योतिष से सम्बृद्ध आवश्यक खगोलीय एवं गणितीय गणनाओं से परिचित कराने के उदेश्य से की गई है | इस पुस्तक में ज्योतिषीय खगोल एवं गणित के हर सूक्ष्म एवं विशद् सिद्धांत समाविष्ट है जिनका विवेचन बिल्कुल सरल रूप में उदाहरण के साथ स्पष्ट किया गया है |
पुस्तक की शुरुआत ज्योतिष एवं खगोल के इतिहास के साथ की गई है जिसमे हर काल में क्या प्रगति हुई है तथा उस समय के उल्लेखनीय विद्धानों के क्या योगदान है, इसका उल्लेख किया गया है | दूसरे अध्याय में भचक्र परिचय के साथ-साथ खगोल के प्रमुख सिद्धांतो का विवेचन किया गया है | तीसरी अध्याय में सौरमंडल में स्थित ग्रहों, तारो, नक्षत्रों, उपग्रहों, उल्काश्मों, उल्कापिंडों आदि का वर्णन एवं ज्योतिष से उनके संबंधों की व्यख्या की गई है | चौथे अध्याय में समय की गणना है जिसमे प्राचीन से लेकर आधुनिक समय में प्रचलित सार्वभौमिक समय के मापदंडों की व्यख्या तथा उनके अन्तसम्बन्धो की व्याख्या दी गई है | पांचवें अध्याय में पंचांग के घटक का वितरण है जिसका उपयोग मुख्य्ता: मुहूर्त निधार्रण के लिए किया जाता है | इसी प्रकार छठे अध्याय में कुंडलियों के प्रकार, सातवें अध्याय में कुंडली निर्माण की पद्धति, आठवें अध्याय में षोडश वर्गों की गणना, नवे अध्याय में भाव एवं चलित कुंडली तथा दसवें अध्याय में ज्योतिष में सर्वाधिक प्रचलित विंशोत्तरी दशा की गणना आदि सरल एवं स्पष्ट रूप में समझाई गई है |
सृष्टि के अभ्युदय के उपरांत मानव समुदाय में महत्वाकांक्षा जागृत हुई जिसके परिणामस्वरूप लोगो में आगामी जीवन के विषय में जानने की इच्छा बलवती हुई | इसी उत्कंठा के शमन के उदेश्य से विभिन्न प्रकार के फलस्वरूप की पद्धतियों का विकास हर सभ्यता में हुआ | विकास के क्रम में ही खगोल के सिद्धांत विकसित होते गए जिसे निश्चित रूप से भौतिकशास्त्र एवं गणित से भी महती सहायता प्राप्त हुई | वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष शास्त्र का प्रमुख आधार ही खगोलीय एवं गणितीय गणनाएं है | जन्म समय की खगोलीय स्थति के आधार पर ही गणितीय गणना कर किसी जातक की जन्मकुंडली का निर्माण किया जाता है |
प्रस्तुत पुस्तक की रचना पाठको को ज्योतिष से सम्बृद्ध आवश्यक खगोलीय एवं गणितीय गणनाओं से परिचित कराने के उदेश्य से की गई है | इस पुस्तक में ज्योतिषीय खगोल एवं गणित के हर सूक्ष्म एवं विशद् सिद्धांत समाविष्ट है जिनका विवेचन बिल्कुल सरल रूप में उदाहरण के साथ स्पष्ट किया गया है |
पुस्तक की शुरुआत ज्योतिष एवं खगोल के इतिहास के साथ की गई है जिसमे हर काल में क्या प्रगति हुई है तथा उस समय के उल्लेखनीय विद्धानों के क्या योगदान है, इसका उल्लेख किया गया है | दूसरे अध्याय में भचक्र परिचय के साथ-साथ खगोल के प्रमुख सिद्धांतो का विवेचन किया गया है | तीसरी अध्याय में सौरमंडल में स्थित ग्रहों, तारो, नक्षत्रों, उपग्रहों, उल्काश्मों, उल्कापिंडों आदि का वर्णन एवं ज्योतिष से उनके संबंधों की व्यख्या की गई है | चौथे अध्याय में समय की गणना है जिसमे प्राचीन से लेकर आधुनिक समय में प्रचलित सार्वभौमिक समय के मापदंडों की व्यख्या तथा उनके अन्तसम्बन्धो की व्याख्या दी गई है | पांचवें अध्याय में पंचांग के घटक का वितरण है जिसका उपयोग मुख्य्ता: मुहूर्त निधार्रण के लिए किया जाता है | इसी प्रकार छठे अध्याय में कुंडलियों के प्रकार, सातवें अध्याय में कुंडली निर्माण की पद्धति, आठवें अध्याय में षोडश वर्गों की गणना, नवे अध्याय में भाव एवं चलित कुंडली तथा दसवें अध्याय में ज्योतिष में सर्वाधिक प्रचलित विंशोत्तरी दशा की गणना आदि सरल एवं स्पष्ट रूप में समझाई गई है |