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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और भारत का संविधान (शिक्षा नीति 2020 के अनुपालन में सत्र 2022-2023 से अनुमोदित पाठ्य पुस्तक)- Indian National Movement and Constitution of India (Approved Text Book from Session 2022-2023 in Compliance with Education Policy 2020)

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Item Code: HBD713
Author: Sujit Kumar Srivastava
Publisher: Rudra Publication, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9788197057717
Pages: 269
Cover: PAPERBACK
Other Details 9.5x7 inch
Weight 472 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय

भारत के राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन और संविधान का ज्ञान सिर्फ छात्र-छात्राओं के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय के लिए उपयोगी विषय है। प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख तिथियों, घटनाओं और नायको के योगदानों पर प्रकाश डाला गया है। भारत का संविधान एक पवित्र दस्तावेज है जिसे बनाने में विभिन्न सेनानियों, कानून विशेषज्ञों और लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान निर्माण का ज्ञान भी एक रोचक विषय है जिसे प्रत्येक भारतीय को समझना चाहिए। संविधान न सिर्फ हमारे अधिकारों का स्रोत है बल्कि नागरिक कर्तव्य, कानून प्रणाली, न्याय प्रणाली, विधि निर्माण प्रक्रिया, न्यायिक प्रक्रिया, सामासिक संस्कृति के संवर्द्धन का स्रोत भी है। इसका ज्ञान प्रत्येक भारतीय नागरिक से अपेक्षित भी है जिससे नागरिकों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया जा सके और उन्हें प्रेरणा प्राप्त हो। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक के लिए उनके अधिकारों और मिलने वाले सभी सुविधाओं का स्रोत ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिकों के लिए अनुकरणीय भी है। इसमें नागरिकों के मूल अधिकार, मूल कर्तव्य, मूल अधिकार, व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के संगठन और कार्य प्रणाली पर प्रकाश डाला गया है जिससे स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओं में संविधान के प्रति सामान्य समझ उत्पन्न किया जा सके।

लेखक परिचय

राजनीतिक समीक्षक, स्वतंत्र पत्रकार और लेखक के रूप में दशकों से कार्य कर रहे, राष्ट्रवादी विचारों के प्रखर वक्ता और अपने गृह जनपद में अनेक सामाजिक आंदोलनों के नेतृत्वकर्ता प्रोफेसर सुजीत कुमार श्रीवास्तव का जन्म ऋषियों की तपोभूमि के रूप में विख्यात आज़मगढ़ की पावन धरती पर हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ से पूरी की। उत्तर प्रदेश में मानव अधिकार पर उनका शोध चर्चित रहा। विश्वविद्यालय में 1997 से अतिथि प्रवक्ता के रूप में उन्होंने अपना कैरियर शुरू किया। इस दौरान छत्रपति शाहूजी शोध संस्थान लखनऊ में काउंसिलर के रूप में कार्य भी किए। उच्च शिक्षा आयोग से चयन के उपरान्त सन 2003 से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर टी. एन. पी. जी. कॉलेज टांडा अंबेडकर नगर में कार्यरत रहे। सन 2007 में प्रथम स्वाधीनता आंदोलन की 150वीं वर्षगांठ पर अंबेडकरनगर से आजमगढ़ तक 100 किमी की पदयात्रा की। संप्रति सन 2003 से डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, आजमगढ़ में प्रोफ़ेसर के रुप में कार्यरत हैं। प्रो. सुजीत ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में तृतीय पीढ़ी के मानव अधिकारो के संवर्धन व तमसा नदी को प्रदूषण के लिए तमसा बचाओ आंदोलन का संयोजन किया। इसी प्रकार आजमगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग को लेकर सात वर्षों तक विश्वविद्यालय अभियान का नेतृत्व किया। अध्ययन अध्यापन के अतिरिक्त राजनीतिक सामाजिक आंदोलनों के अनुभवों के साथ विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्र, पत्रिकाओ, शोध पत्रिकाओं में लेख तथा पाठ्यक्रम और संदर्भ पुस्तकों के लेखन का कार्य करते रहे हैं। साथ ही विभिन्न विषयों पर शोध का मार्गदर्शन दिया जा रहा है।

लेखक की कलम से

19वीं शताब्दी में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारण को अस्तित्व में आने के कारण राज्यों के कार्यों में वृद्धि हुई, तत्पश्चात् 20वीं सदी में लोककल्याण की अवधारणा पर राज्यों ने व्यापक बल दिया, जिसके फलस्वरूप प्रशासन के संचालन में नई अवधारणाओं को बल मिला है। वर्तमान में शासन प्रणाली यह माँग करती है कि नीति निर्माण व निर्णय निर्धारण में अधिक व्यक्तियों की भागीदारी हो, जबकि सरकार का मुख्य उद्देश्य जनसामान्य का सर्वांगीण विकास, सुशासन, राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक उत्तरदायित्व व प्रशासनिक पारदर्षिता जैसी अवधारणओं को बढ़ावा देना है। 20वीं सदी के अन्त में उदारीकरण, निजीकरण वैश्वीकरण की अवधारणाओं का प्रभाव राज्यों पर पड़ा। वैश्वीकरण के दौर में राज्य अपनी प्रकृति के वैश्वीकरण की अवधारणा के अनुरूप परिवर्तित हो रहा है। राज्य मुख्य रूप से अपना ध्यान नियामकीय और नियंत्रणकारी कार्यों तक सीमित कर रहा है। अतः राज्य कल्याणकारी राज्य से नियंत्रित राज्य में परिवर्तित हो रहा है। ऐसे में लोक प्रशासन की राज्य द्वारा नीति-निर्धारण करने में सहयोग व नीतियों को क्रियान्वित कर विभिन्न समसामयिक चुनौतियों का सामना करते हुए सुशासन, कुशलता, जवाबदेयता व पारदर्पिता के लक्ष्यों को प्राप्त करना है। राज्य व लोक प्रशासन के समक्ष विभिन्न समसामयिक मुद्दे हैं। राज्य की लोक सेवा को निजी प्रशासन से प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती मिल रही है। राज्य को व्यापारिक कार्यों में विश्वव्यापी संगठनों के दद्यावों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वर्तमान में विकासशील देशों में विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम विश्वव्यापी संगठन के भागीदारीपूर्ण अनुदान से ही चल रहे हैं। एक ओर राज्य लोक प्रशासन को वैश्वीकरण की प्रक्रिया से चुनौती मिल रही, दूसरी ओर बाजारवादी नीतियों को लागू करने की अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को दवाव भी राज्य व प्रशासन के समक्ष है। वैश्वीकरण के चलते राज्य की लोक कल्याणकारी प्रवृत्ति और लोक सुरक्षा की अवधारणा में भी बदलाव आया है जिसके फलस्वरूप लोक प्रशासन में नई प्रवृत्तियों का आगमन हुआ है। एक ओर जहाँ राज्य अपने आप को कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर वैश्वीकरण राज्य को पुनः नियामकीय राज्य की भूमिका में देखना चाहता है।

वैश्वीकरण की अवधारणा के लागू होने के पश्चात् राज्य व लोक प्रशासन के क्षेत्र में नये प्रतिमानों को लागू किया। जिनके माध्यम से आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप निर्धारित न्यूनतम पाठ्यक्रम के आधार पर पूर्णतया नवीन कलेवर में प्रस्तुत पुस्तक के पाठकों के हाथों में देते हुए, हमें अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है। इस पुस्तक की सम्पूर्ण विषय सामग्री को अत्यन्त सरल व सुगम भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है तथा विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक को लिखा गया है। यह पुस्तक बी.ए., एम.ए, तथा प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी होगी।

इस पुस्तक की रचना में मुझे जिन पुस्तकों व शोध ग्रंथों से सहायता मिली है तथा जिसके परिणाम स्वरूप यह पुस्तक अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सकी है, मैं उन सभी लेखकों व विद्वानों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ।

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