नाम : डॉ. आनन्द कुमार सिंह
जन्म : 23 अक्टूबर 1981
पिता का नाम: श्री विन्देश्वरी सिंह
माता का नाम: श्रीमती पानमती सिंह
पता : ग्राम-महरुपुर, पो. राऊतमऊ, जनपद-आजमगढ़
शिक्षा : हाईस्कूल-इण्टरमीडिएट कालेज, सठियांव, इण्टरमीडिएट डी.ए.वी. इण्टर कालेज, आजमगढ़, स्नातकोत्तर एवं पीएच डी. आपने डी.ए.वी.पी.जी. कालेज आजमगढ़ (सम्बद्ध-वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर) से किया।
आपने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) राजनीति विज्ञान विषय से उत्तीर्ण किया। आपकी अध्ययन एवं अध्यापन में काफी रूचि है। आप वर्ष 2003 से 2010 तक डी.ए.वी. कालेज, आजमगढ़ में राजनीति विज्ञान विषय में अंशकालिक प्रवक्ता के रूप में कार्य किया तत्पश्चात 2011 से 2017 तक आप श्री दुर्गा जी स्नातकोत्तर महाविद्यालय चण्डेश्वर, आजमगढ़ में राजनीति विज्ञान विषय में अंशकालिक प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। वर्तमान में आप बी.एन.एस.एस.पी.जी. कालेज मोहब्बतपुर में राजनीति विज्ञान विभाग में कार्यरत है। आपके द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में राजनीति विषयों पर शोध पत्र प्रकाशित होते रहते है।
आप वर्ष 2022 में राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए एक यूट्यूब चैनल "Political Science by Dr. Anand Singh" प्रारम्भ किया। आपके चैनल से उत्तर भारत के राजनीति विज्ञान के अधिकांश विद्यार्थी लाभ ले रहे हैं।
डॉ. शम्भू कुमार सिंह, एम.ए., पी-एच.डी. विगत 16 वर्षों से सिरो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका के प्रीमीयर कॉलेज संताल परगना महाविद्यालय, दुमरा में राजनीति विज्ञान विभाग के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के कई प्रशासनिक पदों पर अपने कर्त्तव्यों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया है। शिक्षण कार्य में आने से पूर्व श्री सिंह पत्रकारिता जगत से भी सम्बद्ध रहे हैं। इन्होंने दैनिक हिन्दुस्तान एवं यूनाइटेड न्युज ऑफ इंडिया (यू.एन.आई.) के लिए भी काम किया है। वर्तमान समय में भी श्री सिंह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं।
19वीं शताब्दी में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारण को अस्तित्व में आने के कारण राज्यों के कार्यों में वृद्धि हुई, तत्पश्चात् 20वीं सदी में लोककल्याण की अवधारणा पर राज्यों ने व्यापक बल दिया, जिसके फलस्वरूप प्रशासन के संचालन में नई अवधारणाओं को बल मिला है। वर्तमान में शासन प्रणाली यह माँग करती है कि नीति निर्माण व निर्णय निर्धारण में अधिक व्यक्तियों की भागीदारी हो, जबकि सरकार का मुख्य उद्देश्य जनसामान्य का सर्वांगीण विकास, सुशासन, राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक उत्तरदायित्व व प्रशासनिक पारदर्षिता जैसी अवधारणओं को बढ़ावा देना है। 20वीं सदी के अन्त में उदारीकरण, निजीकरण वैश्वीकरण की अवधारणाओं का प्रभाव राज्यों पर पड़ा। वैश्वीकरण के दौर में राज्य अपनी प्रकृति के वैश्वीकरण की अवधारणा के अनुरूप परिवर्तित हो रहा है। राज्य मुख्य रूप से अपना ध्यान नियामकीय और नियंत्रणकारी कायों तक सीमित कर रहा है। अतः राज्य कल्याणकारी राज्य से नियंत्रित राज्य में परिवर्तित हो रहा है। ऐसे में लोक प्रशासन की राज्य द्वारा नीति-निर्धारण करने में सहयोग व नीतियों को क्रियान्वित कर विभिन्न समसामयिक चुनौतियों का सामना करते हुए सुशासन, कुशलता, जवावदेयता व पारदर्पिता के लक्ष्यों को प्राप्त करना है। राज्य व लोक प्रशासन के समक्ष विभिन्न समसामयिक मुद्दे हैं। राज्य की लोक सेवा को निजी प्रशासन से प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती मिल रही है। राज्य को व्यापारिक कायों में विश्वव्यापी संगठनों के दबावों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वर्तमान में विकासशील देशों में विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम विश्वव्यापी संगठन के भागीदारीपूर्ण अनुदान से ही चल रहे हैं। एक ओर राज्य लोक प्रशासन को वैश्वीकरण की प्रक्रिया से चुनौती मिल रही, दूसरी ओर बाजारवादी नीतियों को लागू करने की अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को दवाव भी राज्य व प्रशासन के समक्ष है। वैश्वीकरण के चलते राज्य की लोक कल्याणकारी प्रवृत्ति और लोक सुरक्षा की अवधारणा में भी बदलाव आया है जिसके फलस्वरूप लोक प्रशासन में नई प्रवृत्तियों का आगमन हुआ है। एक ओर जहाँ राज्य अपने आप को कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर वैश्वीकरण राज्य को पुनः नियामकीय राज्य की भूमिका में देखना चाहता है।
वैश्वीकरण की अवधारणा के लागू होने के पश्चात् राज्य व लोक प्रशासन के क्षेत्र में नये प्रतिमानों को लागू किया। जिनके माध्यम से आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप निर्धारित न्यूनतम पाठ्यक्रम के आधार पर पूर्णतया नवीन कलेवर में प्रस्तुत पुस्तक के पाठकों के हाथों में देते हुए, हमें अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है। इस पुस्तक की सम्पूर्ण विषय सामग्री को अत्यन्त सरल व सुगम भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है तथा विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक को लिखा गया है। यह पुस्तक बी.ए., एम.ए. तथा प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी होगी।
इस पुस्तक की रचना में मुझे जिन पुस्तकों व शोध ग्रंथों से सहायता मिली है तथा जिसके परिणाम स्वरूप यह पुस्तक अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सकी है, मैं उन सभी लेखकों व विद्वानों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ।
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