साहित्य अकादेमी का सौजन्य है कि उसने मुझे समकालीन भारतीय साहित्य जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका का अतिथि संपादक मनोनीत किया है। यह पत्रिका सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय पत्रिका है क्योंकि देश की सभी प्रमुख भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसके विशाल फलक की गहराई और श्रेष्ठता तलाशना मेरे लिए सौभाग्य भी होगा और कसौटी भी।
यह सुयोग ही है कि अपना कार्यारंभ 150वें अंक से कर रहा हूँ- कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर की 150वीं जयंती से। इस पहले ही अंक में उन्हें श्रद्धा-सुमन चढ़ाने का अवसर मिलने से अधिक मांगलिक क्या होगा ? इस उपक्रम में यहाँ कविगुरु के कुछ सुंदर गीत और एक लोकप्रिय कहानी के साथ उनके अभिनंदन-स्मरण में लिखी एक तेलुगु कविता दी जा रही है।
1910 और 1911 देश के कई महान रचनाकारों का जन्मशती वर्ष है। 1910 में तेलुगु के दो शीर्षस्थानीय रचनाकारों- श्री श्री (श्रीरंगम श्रीनिवास राव) (अप्रैल 1910) और टी. गोपीचंद (सितंबर 1910) का जन्म शताब्दी वर्ष है। 1911 हिंदी के चार वरेण्य कवियों शमशेर (शमशेर बहादुर सिंह) (जनवरी 1911), अज्ञेय (सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय') (मार्च 1911), केदारनाथ अग्रवाल (अप्रैल 1911) और नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) (जून 1911) तथा मलयाळम के महान रचनाकारों वायिलोप्पिली श्रीधर मेनन (मई 1911) और चंगमपुरा कृष्णपिल्लै (अक्तूबर 1911) का शती वर्ष है। इनके अतिरिक्त उर्दू के अजीम शायर फ़ैज़ अहमद फैज (फ़रवरी 1911) की शती भी 1911 में ही है। यद्यपि वे पाकिस्तानी शायर थे, परंतु उर्दू भारत की अपनी भाषा भी है इसलिए वे जितने पाकिस्तान के हैं उतने ही हिंदुस्तान के भी। समकालीन भारतीय साहित्य इन सभी सर्जक मनीषियों का यथासमय स्मरण करता रहेगा। इनसे संबंधित कोई मूल्यवान सामग्री यदि किसी पाठक या लेखक के पास हो तो वह भेजने की कृपा करे।
भारतीय साहित्य के बारे में अकसर कहा जाता है कि यह विभिन्न भाषाओं में लिखा एक साहित्य है। इसे हमने परंपरा और इतिहास में देखा भी है।
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