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समकालीन भारतीय साहित्य- साहित्य अकादेमी की द्वैमासिक पत्रिका वर्ष 40, अंक 208 : मार्च-अप्रैल 2020: Contemporary Indian Literature- Bimonthly Magazine of Sahitya Akademi Year 40, Issue 208 (March-April 2020)

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Item Code: HBA375
Author: Edited By Brijendra Tripathi
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Language: Hindi
Edition: 2020
Pages: 212
Cover: PAPERBACK
Other Details 9x6 inch
Weight 348 gm
Book Description
संपादकीय

समकालीन भारतीय साहित्य का मार्च-अप्रैल अंक आपके हाथों में विलंब से पहुँच पा रहा है, इसका खेद है। वैश्विक महामारी 'कोरोना' के चलते लगभग पूरा विश्व लॉकडाउन में है। ऐसा वैश्विक संकट हमारी कई पीढ़ियों ने नहीं देखा। वायरस के इस संक्रमण के चलते विश्व में चार लाख से अधिक लोग मौत के शिकार हो चुके हैं और साठ लाख से अधिक संक्रमित हैं। भारत में भी मरने वालों की संख्या लगभग पाँच हजार और संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ लाख से ऊपर है। लॉकडाउन के चलते सब कुछ जैसे रुक गया है। कोरोना के इस दौर में सबसे अधिक प्रभावित है श्रमिक वर्ग। उनकी रोजी-रोटी के सारे जरिये बंद हो चुके हैं। भुखमरी की-सी स्थिति है। लॉकडाउन की अवधि बढ़ती जा रही है और मजदूरों के सब्र का बाँध टूट रहा है। जान हथेली पर रखकर वे अपने गाँवों की ओर कूच कर रहे हैं-परिवारीजनों के साथ, जिनमें वृद्ध और बच्चे भी शामिल हैं। कोई साधन मिल जाए तो ठीक, नहीं तो पैदल ही वे सैकड़ों-हजारों किलोमीटर की दूरी तय करने निकल पड़े हैं। टीवी पर इनकी जो तस्वीरें आ रही हैं, वे दिल दहला देने वाली हैं। भूखे, प्यासे, गिरते-पड़ते, धूप-ताप में वे चलते चल रहे हैं।

लॉकडाउन में रेल के पहिए थम गए हैं, सड़कों पर वाहनों की संख्या नगण्य है, मशीनों की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही, तमाम औद्योगिक गतिविधियाँ ठप हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि प्रदूषण घट गया और नदियों में स्वच्छ पानी बहने लगा, आसमान नीला दिख रहा है और तारे भी दिखाई देने लगे हैं। जालंधर और सहारनपुर जैसी जगहों से पर्वत श्रृंखलाएँ नजर आने लगी हैं। बहुत से नगरों में सड़कों पर जंगली जानवर निश्चिंतता से विचरण करने लगे हैं, अपनी उस जमीन पर, जिसे विकास के लिए उनसे हमने हड़पा है।

इस लॉकडाउन ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि हमारी आधारभूत जरूरतें थोड़ी ही हैं, लेकिन हमारी लालसा ने उसे असीम बना दिया है। इसी भौतिक समृद्धि की लालसा ने प्रकृति के साथ हमारे सामंजस्य को तोड़ दिया, जिसका कुफल हम आए दिन बाढ़, भूस्खलन, सूखा और भूकंप के रूप में देखते रहते हैं।

साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। वहाँ ये सारी समस्याएँ प्रतिबिंबित होती हैं। कविता हमारी प्राचीन विधा है। समय के साथ कविता के सरोकार और व्यापक हुए तो उसकी अभिव्यक्ति की प्रक्रिया भी ज्यादा जटिल और संश्लिष्ट हुई है। अगर हम आज की कविता की बात करें तो पाएँगे कि वैश्विक स्तर पर कई मुद्दे हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। इसमें सोवियत संघ का विघटन, भूमंडलीकरण, आर्थिक उदारीकरण, आतंकवाद, सांप्रदायिकता, अपराध का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण, दलित विमर्श, स्त्री विमर्श और आदिवासी विमर्श प्रमुख हैं।

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