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समकालीन भारतीय साहित्य- साहित्य अकादेमी की द्वैमासिक पत्रिका वर्ष : 44, अंक : 233, मई-जून, 2024: Contemporary Indian Literature- Bimonthly Magazine of Sahitya Akademi Year 44, Issue 233 (May-June 2024)

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Item Code: HBA469
Author: Edited By Balram
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9770970836008
Pages: 220
Cover: PAPERBACK
Other Details 9x6 inch
Weight 366 gm
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Book Description
संपादकीय

अक्क महादेवी के वचन

बौद्ध परंपरा में चौरासी सिद्धों का वर्णन उपलब्ध है, जिनके वचन दोहा के नाम से संकलित हैं और सिद्ध साहित्य के अंतर्गत जाने जाते हैं। ऐसे महापुरुषों की उक्तियाँ अधिकांश अपने आराध्य या इष्टदेव की स्तुति अथवा प्रार्थना के रूप में, कुछ अपनी आंतरिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के रूप में, कुछ परम तत्त्व की व्याख्या के रूप में या विनेयजन को उपदेश के रूप में रहती हैं। इसलिए ऐसे वचन दीर्घकाल से दिक् एवं काल के बंधन से मुक्त होकर हर कालखंड एवं परिस्थिति में प्रासंगिक रहते हैं (यदि पाठक उन वचनों के अर्थ को थोड़ा-बहुत समझने की क्षमता रखते हैं)। बारहवीं सदी के मध्य में जन्मी अक्क महादेवी एक ऐसी भक्त थीं, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन निस्संकोच भक्तिमार्ग में समर्पित कर दिया। अपने अल्प जीवन में कठोरतम तपस्या के माध्यम से वह मल्लिकार्जुन को प्राप्त कर उसमें समरस हो गई थीं। उनके अत्यंत गंभीर और महत्त्वपूर्ण वचन, जो मूल रूप में कन्नड भाषा में थे, जिनका हिंदी में रूपांतरण प्रसिद्ध कवयित्री, विदुषी गगन गिल ने हिंदी में 'तेजस्विनी : अक्क महादेवी के वचन' शीर्षक से प्रस्तुत किया है, जो पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी और लाभदायक होगा। वह साधुवाद की पात्र हैं। अक्क महादेवी की जीवन शैली और आचरण सामान्य लोगों की समझ में न आना स्वाभाविक है, परंतु एक साधक की दृष्टि से देखा जाए तो वे सहज और अकृत्रिम जीवन का एक परम आदर्श थीं, जहाँ किसी भी प्रकार की कृत्रिमता के लिए कोई स्थान नहीं रह गया था। उनके वचन पढ़ते समय दो पर मेरा ध्यान स्थिर हो गया: प्राण ने जब रूप धरा तेरा, पूजा करूँ मैं किसकी? जब ज्ञान समा गया सब तुझ में, किसको मैं बूझें। दूसरा वचन है: शून्य को लिंग कहू क्या? चीर देने से बचेगा कुछ नहीं। पहाड़ को लिंग कहूँ क्या? चढ़कर खड़े होने से बचेगा कुछ नहीं। इनसे मुझे ऐसी अनुभूति हुई कि ये साधिका अपने साध्य में विलीन होकर अद्वैत के रूप में समरस हो चुकी है। ऐसा लिखा है बौद्ध साधक समदोंग रिनपोछे ने, गगन गिल की भाव रूपांतरित किताब 'तेजस्विनी' के पुरोवाक् के रूप में, जिनसे अक्क महादेवी के वचनों की गहराई का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है और किताब की भूमिका में गगन गिल ने खुद लिखा है: "अक्क महादेवी कवि नहीं थीं, उन्होंने हमारे-आपके लिए कविताएँ नहीं लिखी थीं। भक्ति करती हुई वह देश और काल को पार कर गई थीं। आज यह आप हैं, और मैं, जो उन्हें कवि कहते हैं। ऐसे काँटे में से बिंध कर कोई बात आती हो तो वह कविता हुई न। वे संत लोग थे, वचन कहते थे, सत्य वचन। उनकी वाणी वचन ही कहलाती है, वचन साहित्य। सन् 1130 के आसपास महादेवी का जन्म हुआ था कर्नाटक के शिवमोगा जिले के गाँव उदूतड़ी में। शिव भक्त माता-पिता के घर में। शिव उनके लिए एक जीती-जागती सत्ता थे, शिव से जुड़ी पौराणिक कथाएँ उनकी नसों में दौड़ता अनुभव।"

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