अंग्रेजी शासनक प्रथमशत वर्ष (1757 इ. 1857 इ.) यद्यपि राजनीतिक दासता एवम् पराधीनताक युग छल, तथापि एकर स्थायी महत्त्व अछि। एतेक तँ सत्य अछि जे अंग्रजी शासनसे पूर्व देशमे आन्तरिक शान्तिक अभाव छल, शासकक व्यक्तिगत रूचिक अनुकूल शासन संचालित होइत छल। अंग्रेज द्वारा कानूनी राज्यक स्थापना भेल, जाहिमे पाश्चात्य शिक्षा प्रचार, शासन सम्बन्धी सुधार तथा अन्य हितकर कार्य उल्लेखनीय अछि। सभसँ पैघ बात भेल जे अंग्रेजी संस्कृतिक स्पर्श एवम् ओकर उदार भावना भारतीय जीवनकै संकीर्णताक कारासँ बाहरकऽ नूतन व्यापक दृष्टिकोण ग्रहण करबा लेल प्रेरित कयलक। एहि विविध परिणामक फलस्वरूप जे महान परिवर्तन भेल, तकरा भारतीय इतिहासमे "रिनांशा" अर्थात पुनर्जागरणक संज्ञा देल गेल। फलतः भारतीय साहित्यमे युगान्तर उपस्थित भेल एवम् अंग्रेजी तथा अन्य पाश्चात्य साहित्यक प्रभावसँ भारतीय साहित्यमे नव प्रवृत्ति विकसित होमय लागल।
इस्वी सन् 1000 से 1200 धरि भारतीय साहित्य नाना प्रकारक परस्पर विरोधी भाव-धाराक संगम स्थल भऽ गेल छल। विदेशी आक्रमण नहि मात्र देशक शासनकें नष्ट-भ्रष्ट कऽ देलक, अपितु सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितिमे सेहो भयंकर परिवर्तन आनि देलक । मुदा ई परिवर्तन बहुत स्थूल और स्पष्ट नहि छल। बाड़िक पानि सदृश विदेशी संस्कृतिक बहुत रास तत्त्व भारतीय संस्कृतिमे घुलिमिलि गेल, जाहिसँ नहि मात्र सामाजिक व्यवस्थामे परिवर्तन भेल अपितु एहि अपरिचित भावधाराक आक्रमणक कारणे देशीय संस्कृतिकें कतेको रूपमे "स्वरक्षा" हेतु अपनाकें 'संकुचित करय पड़ल।
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