उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ एवं हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित साहित्यकार डॉ. राहुल मनस्वी लेखक हैं। इनका जन्म वाराणसी के खेवली नामक गांव में एक सामान्य कायस्थ परिवार में 2 अक्टूबर 1952 ई को हुआ है। इनकी अबतक 75 कृतियां-कविता, कहानी, उपन्यास और आलोचना आदि विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उत्तर रामकथा पर केंद्रित 'युगांक' (प्रबन्धकाव्य) का लोकार्पण करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने इसे 20वीं सदी की एक महाकाव्य बताते हुए कहा- 'इससे हमारी सामाजिक-राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी एवं सांस्कृतिक चेतना के पुनर्स्थापन को बल मिलेगा। महाभारतः मूलकथा (2 भाग) रामायणः मूल्यांकन (७ खण्ड) और श्रीमद्भगवद् गीताः मूलकथा (2 भाग) कालजयी ग्रन्थों के अतिरिक्त, गिरिजाकुमार माथुरः काव्य-दृष्टि और अभिव्यंजना, शमशेर और उनकी कविता, लम्बी कविताओं की नामिकृतिः अग्निहोत्र सपनों में, अटल बिहारी बाजपेयी की काव्य-साधना, आलोचना एकात्म मानववाद के पुरोधाः दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और नया कश्मीर, सुभाषचंद्र बोस और उनका उत्तर जीवन, गांधी जीवन और दर्शन विश्व स्तरीय कृतियां हैं जिनकी विशेष चर्चा हुई।
बीसवीं सदी हिन्दी की मानक कहानियां (4 खण्ड) एवं 20वीं सदी हिन्दी के मानक निवन्ध (2 भागः प्रस्तावना लेखक डॉ. रामदरश मिश्र) राजभाषा सम्बन्धी महत्वपूर्ण पुस्तकें तथा एकदर्जन से अधिक बाल साहित्य। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अयोध्या और अष्टछाप कवियों के विवेचक आचार्य भगवती प्रसाद देवपुरा सद्य प्रकाशित कालजयी ग्रन्थ हैं।
अनेक कविताएं पंजाबी, मराठी आंग्ल, तमिल एवं नेपाली भाषा में अनूदित ।
अज्ञेय के इसी कवि रूप के विभिन्न पक्षों-अनुभव, अनुभूति और अभिव्यक्ति को आधार बना कर कवि-आलोचक डॉ. राहुल ने अपनी पुस्तक 'अज्ञेय का काव्य संवेदना और शिल्प' में अज्ञेय की काव्य सर्जना, वैयक्तिक और सामाजिक विवृति, अज्ञेय काव्य के दार्शनिक प्रत्ययों, प्रकृति और उसके सौंदर्यबोध, विम्व विधान, प्रतीक प्रयोगों और काव्य भाषा की सर्जनात्मकता को बहुत ही मनोयोग से विवेचित-विश्लेषित किया है और इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अज्ञेय की कविता का सौंदर्यबोध जहाँ भाषा की दृष्टि से अनूठा और अप्रतिम है, वहीं उनकी कविता में विम्बों का प्रयोग कविता का चाक्षुष विम्बों से समृद्ध करता है। डॉ. राहुल ने अज्ञेय के कविता संसार की विचार और संवेदना बहुल वीथियों में प्रवेश करते हुए कविता के अलंकरणों की दृष्टि से प्रतीक और बिंब के अनूठे और अप्रतिम प्रयोगों की ओर ध्यान दिलाते हुए यह स्थापित किया है कि अज्ञेय का कविता संसार किसी प्रकार के रेटारिक और औसत वक्तव्यों से नहीं बना है बल्कि उसमें पग-पग पर नई भाषिक ध्वनियाँ मिलती हैं, नए बिम्बों का प्रयोग मिलता है जो कविता के आंतरिक अर्थ को खोलता और पाठक को चाक्षुष सुख से भरता है।
डॉ. राहुल ने अज्ञेय की इन उपरिलिखित विशिष्टताओं के दायरे में प्रवेश करते हुए अज्ञेय को कविता-चिंतन की सनातन प्रतिभा मानते हैं। यद्यपि अज्ञेय उन रचनाकारों में हैं जिनका गद्यकार या कथाकार रूप उनके कवि रूप से कहीं कमतर नहीं है तथापि अज्ञेय मूलतः कवि के रूप में ही विख्यात हैं। डॉ. राहुल ने अज्ञेय के काव्य पक्ष में बहुश्रुत गुणों को एक बार फिर मूल्यांकन की कसौटी पर कसते हुए अज्ञेय के कवित्व को बहुमान दिया है, यह स्वागतयोग्य कदम है।
प्राक्कथन
अज्ञेय सुविदित और सुविवेचित रचनाकार हैं। वे कवि, कथाकार, उपन्यासकार, ललित और वैचारिक गद्य के अन्वेषक रचनाकार हैं। अज्ञेय कवि कल्पना के ही नहीं, भावों और विचारों के शहंशाह हैं। पिछली सदी में अज्ञेय की उपस्थिति एक ऐसे महनीय रचनाकार की रही है जिसने सदी के समस्त काव्यांदोलनों को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से प्रभावित किया है। अज्ञेय की कविता का विस्तार परंपरा, नवाचार और नई वैचारिकता की दृष्टि से श्लाघ्य है। अपने प्रयोगों के कारण वे जितना सुख्यात हुए उससे ज्यादा निंदनीय भी। कविता की दृष्टि से अल्प साक्षर समाज को उनके प्रयोगों को पचा पाना मुश्किल था। समाज कविता के नवाचारों, यूरोपीय और विश्व कविता के आंदोलनों और शिल्प व वैचारिक स्थापत्य को लेकर किए जा रहे विश्वव्यापी अवधारणाओं से उतना अवगत नहीं था। लेकिन अज्ञेय की पहुँच विश्व साहित्य में गहरी थी। वे नए से नए हो रहे प्रयोगों के प्रति समुत्सुक थे|
आत्मकथ्य
'अज्ञेय साहित्य-जगत् का एक बहुत आदरणीय नाम है। वे सेतु कवि हैं। हिन्दी-जगत् में छायावाद के स्वर्णयुग से लेकर नयी कविता और साठोत्तरी कविता की प्रवृत्तियों तक वे विंध्याचल की भांति फैले हुए हैं। हिन्दी साहित्य में अज्ञेय के साथ प्रयोगवाद का पर्दापण हुआ। यद्यपि उससे पूर्व प्रगतिवाद पाँव पसारे हुए था। इन दोनों से जुड़कर नयी कविता आयी। सच तो यह है कि नये कवियों में अज्ञेय सबसे प्रखर व्यक्तित्व के कवि निकले। उनकी कविताओं के साक्ष्य पर यह कहा जा सकता है कि वे आधुनिक हैं, नये हैं और उस बीहड़ समय से लेकर आज तक आजीवन अडिग चलते रहे। अज्ञेय को प्रयोगवाद का प्रवर्त्तक और नयी कविता का शलाका कहा गया है। उनका पूरा नाम है सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय। श्री हीरानंद वात्स्यायन उनके पिता का नाम है। अज्ञेय के पिता पुरातत्व विभाग में एक उच्च पदाधिकारी थे। उनका बहुत सा समय पुरातत्व खुदाई शिविर में बीता था। उन दिनों हीरानंद जी जिला देवरिया (कुशीनगर) के एक खुदाई शिविर में सपरिवार रह रहे थे। अज्ञेय का जन्म वहीं 7 मार्च सन् 1911 को हुआ।
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