प्रस्तुत ग्रन्थ अध्यात्म वाद की एक कड़ी है जो प्राचीन काल से चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रमाणित है। भारत के प्रायः लगभग सभी विश्वविद्यालयों में आज योग विषय के पठन-पाठन की व्यवस्था शुरु हो चुकी है, लेकिन इस विषय की पुस्तकों का विधिपूर्वक तकनीकी रूप के साथ अभाव अनुभव किया जा रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ इस अभाव की पूर्ति की दिशा में एक छोटा-सा प्रयास है। चूंकि योग एक गुढ़ विषय है और इसका अध्ययन-अध्यापन अत्यन्त श्रम साध्य है। अतः महत्त्वपूर्ण तथ्यों व प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से सरल भाषा में रखने का प्रयास किया गया है। तकनीकीओं एवं चित्र के माध्यम से सहजता से ग्रहण करने योग्य रोचक तरीके से इसे बोधगम्य बनाने का भी प्रयास किया गया है। सर्वप्रथम विभिन्न ग्रन्थों में योग के स्वरूप की विस्तृत व्याख्या करते हुए योग की अनेक शाखाओं को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया गया है।
उपरान्त अष्टांग योग की विस्तृत व्याख्या अलग-अलग अध्याय में सरलता से वर्णित किया गया है। वर्तमान में सूक्ष्म योग क्रिया की क्यों और कैसे आवश्यकता है, इसको भी सरलतापूर्वक बताने का प्रयास किया गया है। नाड़ी शुद्धि की क्रिया विधि एवं तकनीकी को समझाते हुए प्राणायाम द्वारा प्राण साधना को बताया गया है। श्वास-प्रश्वास द्वारा रक्त में ऑक्सीजन के स्तर को सुधारना एवं शरीर की विकृतियों को नाड़ी संचालन द्वारा क्रियाशील करते हुए उसकी सफाई करना तथा शरीरगत सूक्ष्म क्रियाओं के जटिल यन्त्रों एवं रासायनिक प्रक्रियाओं को प्राणवायु द्वारा शरीर को पोषित करने की क्रिया को सरलतापूर्वक समझाने का प्रयास किया गया है। शरीर-शोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं के अन्तर्गत षट्कर्म की अन्य क्रियाओं के साथ-साथ गजकरणी, शंख प्रक्षालन क्रिया का तकनीकों के साथ वर्णन किया गया है। कुण्डलिनी चक्र का ग्रन्थियों के साथ घनिष्ठ सम्बन्धों को बताते हुए इनका शरीर और मन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है एवं इसका प्रयोजन क्या है इसकी व्याख्या की गई है। संहिता अनुसार ८४ आसनों के नाम का वर्णन एवं चिकित्सा के लाभ और महत्त्व को बताने का प्रयास किया गया है। योग क्रिया द्वारा शारीरिक एवं हस्त मुद्राओं के विभिन्न स्वरूप एवं उद्देश्य को समझाया गया है।
मैं रंजना आचार्य, वाराणसी निवासी, पुर्वांचल विश्वविद्यालय से एम.ए., मनोविज्ञान विषय से एवं हिन्दी विषय से तथा जैन विश्व भारती संस्थान, लांडनू, राजस्थान से योग विषय से परीक्षा उत्तीर्ण की हैं। UGC NET परीक्षा में दो बार सफलता प्राप्त करने के उपरान्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय से योग विषय में पी-एच.डी. की विद्यार्थी रही हूँ। पूर्व में मैंने संस्कृत विषय से सर्टिफिकेट कोर्स एवं संस्कृत विषय से ही पी.जी. डिप्लोमा कोर्स, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली से प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त की हूँ एवं योग और प्राकृतिक चिकित्सा विषय में महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से सर्वोच्च अंक से उत्तीर्ण रही हूँ। सन् २०१६ से २०१८ तक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में २ वर्ष तक योग कोच के पद पर कार्यरत रह चकुी हूँ। इसके अतिरिक्त अतिथि व्याख्याता के रूप में जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनू, राजस्थान के दूरस्थ शिक्षा केन्द्र के अन्तर्गत वाराणसी शाखा के अघोर फाउण्डेशन में सन् २०१७-२०१८ बैच तथा ई-संचार माध्य द्वारा चैतन्य योग सेवा संस्थान द्वारा संचालित २०२०-२०२१ बैच के एम.ए. योग के विद्यार्थियों को सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक कक्षाओं में सेवा दे चुकी हूँ। एन.एस.एस., महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (२०१८ एवं २०१९) द्वारा संचालित कैम्प के अन्तर्गत ट्रेनिंग प्रोग्राम में प्रायोगिक अध्यापन का भी कार्य किया है।
मेरी पूर्व में भी योग विषय में एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है जिसका नाम 'अष्टांग योग का स्वरूप' है। इसके अतिरिक्त यू.जी.सी.द्वारा मान्यता प्राप्त विभित्र राष्ट्रीय पत्रिका में योग विषय पर शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न पुस्तकों में भी कई शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
सदस्यता के रूप में भारतीय शिक्षण मण्डल, नागपुर एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संगठन (INO), लखनऊ की आजीवन सदस्य हूँ।
वैदिक काल से ही ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक नियमों के आधार पर शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ बताते हुए दीर्घायु की प्राप्ति, रोग से निवृत्ति, स्वास्थ्य संवर्धन एवं व्यक्तित्त्व विकास में योग के द्वारा मार्ग प्रशस्त किये हैं। वर्तमान में यह विद्या शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक रोगों से उत्पन्न समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए विशेष उपचार के रूप में सहयोगी है। विभिन्न आध्यात्मिक अध्ययन-अध्यापन द्वारा वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, बुद्धिजीवियों के माध्यम से इस विषय पर शोध कार्य चल रहा है, जिसका प्रत्यक्ष परिणाम सुखद रूप से परिलक्षित हो रहा है। यह विश्वास हो रहा है कि मनुष्य जीवन की रक्षा में यह चिकित्सा पद्धति कितना सफल है।
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