अर्थसंग्रह: Arthasamgraha

Best Seller
FREE Delivery
Express Shipping
$22
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Usually ships in 3 days
Item Code: NZA734
Author: Kameshwar Nath Mishra
Publisher: Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language: English
Edition: 2012
ISBN: 9789381484586
Pages: 218
Cover: HARDCOVER
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 380 gm
Book Description

प्राक्कथन

'अर्थ-संग्रह' मीमांसा का एक लघुकाय प्रकरण ग्रन्थ है, जिसमें शाबरभष्य में प्रतिपादित बहुत से विषयों का अतिसंक्षेप में निरूपण है। तक्षेप में अधिकतम विषयों को प्रस्तुत करने के कारण इस ग्रन्थ का प्रचार जिज्ञासु-सामान्य में अत्यधिक हुआ और उपयोगी होने पर भी अनेक प्रकरण ग्रन्थ इतने प्रचलितन हो सकें। विश्वविद्यालयो ने तो मीमांसा का प्रारम्भिक ज्ञान कराने को 'मीमांसा न्याय-प्रकाश'तथा 'अर्थ-संग्रह' ही पाठयक्रम में प्राय निर्धारित है, इनमें भी 'अर्थ संग्रह आगे है।

यद्यपि 'अर्थ-संग्रह' की भाषा बहुत श्लिष्ट नहीं है, तथापि सामाज्य जिज्ञासुओं और विशेषत: छात्रों को इसे देखकर कुछ विचित्र-सा अनुभव होने लगता है छात्र इसमें अन्य निर्धारित दर्शन-ग्रन्थों में प्रतिपादित आत्मा, बल, जगत, प्रकृति, पुरुष, पदार्थ आदि विचयों का निरूपण नहीं पल्ले और इसको दर्शन-ग्रन्थ मानने से भी हिचकते है। इसके अतिरिक्त मीमांसा-ग्रन्थों के विषय वैदिक कर्मकाण्ड से सम्बद्ध हैं जिनसे जन-सामान्य बहत परिचित नहीं है। निरूपित उदाहरण अश्वमेंघ, सोम, राजसूय, वाजपेय आदि मार्गो से सम्बद्ध होते हे, जो आय देखने को भी नहीं मिलते। जो क्रम प्रचलित भी हैं उनमें यजमान पुरोहित की आज्ञा मान निर्देशानुसार कार्य सम्पन्न करते रहते हैं, उनमें 'क्यों', 'कैसे' आदि जानने का कौतूहल नहीं रहा। पुरोहित अथवा आचार्य भी एक स्वीकृत पद्धति के अनुसार कर्म-सम्पन कराते रहते हैं और ऐसे बहुत कम हैं जो मंन्त्रविशेष के विनियोग आदि का विचार करते हो। मीमांसा में किस देवता के लिये, किस प्रयोजन से,किस मन्त्र का, कैसे विनियोग हो? आदि विषयों का प्रधानत: धिपार क्यि। जाता है। कर्मकाण्ड की मिश्रित पद्धतियाँ बिद्यमान होने से पुरोहित का काम इनका विचार करने पर भी चला जाता है। अत: आज वस्तु:स्थिति यह है कि कर्म यजमान और पुरोहित के रहते भी 'कर्म-मीमांसा' उपेक्षित हो गयी। यही कारण है कि सामान्य जिज्ञासु को मीमांसा के प्रारम्भिक ग्रन्थों को भी समझने में कठिनाई हो रही है।

छात्र-हितार्थ दस ग्रन्थ को हिन्दी व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। इसके साथ रामेंश्वरशिवयोगी को 'कौमुदी' भी दी जा रही है मूलग्रन्थ के पाठ का निर्धारण केवल प्रचलित मुद्रित पुस्तकों के ही आचार पर नहीं, अपितु सम्पूर्णा नन्द सकत विश्वविद्यालय वाराणसी के सरस्वती भवन में विद्यमान अनेक पाण्डु-लिपियों से भो किया है और पाठान्तरों का उल्लेख यथास्थान कर दिया है। प्रयास किया गया है कि कोई भी दुरूह स्थल अस्पष्ट रह जाये।

प्रस्तुत ग्रन्थ का लेखन-कार्य लगभग 3 वर्ष पूर्व ही सम्पन्न कर प्रकाशक महोदय को सौंपा जा चुका था परन्तु अनेक ग्रन्थों के प्रकाशन में उनकी अत्यधिक व्यस्तता के कारण यह ग्रन्थ अब प्रकाश में सका है। उस समय तक प्रकाश में आई,ग्रन्थ से सम्बद्ध अँग्रेजी, तलत तया हिन्दी की सम्पूर्ण सामग्री का प्रयोग मैंने साभार किया है।

मैं अपने मित्र डॉ० नवजीवन रस्तोगी, संस्कृत विभाग, लखनऊ तथा उनकी शिष्या श्रीमती मीरा रस्तोगी को ग्रन्थवाद देता हूं, जिन्होंने मुझे बहुत-सी दुर्लभ सामग्री उपलब्ध करायी चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन के गुप्त-बन्धुओं को भी ग्रन्थवाद है जिन्होंने ग्रन्थ को यथासम्भव शुद्ध प्रकाशित करने का प्रयास किया।

भूमिका

मीमांसा-निरुक्ति-मान् धातु से सन् और स्त्रीत्व की विवक्षा में टाप् प्रत्ययों के योग से 'मीमांसा' शब्द निष्पन्न होता है, जिसमें दीर्घत्व तथा अभ्यास 'मान्बधदारशान्भ्यों दीर्घश्चाऽऽभ्यासस्य' (पा० सू० 3 1 6) नियम के अनुसार होते हैं । वस्तुत: मान् धातु भ्वादि तथा चुरादि दोनों गणों में पठित है दोनो ही स्थलों पर उसे पूजार्थक' स्वीकार किया है । वार्तिककार उसको 'जिज्ञा- सार्थक'' भी मानते हैं । इन विचारकों की दृष्टि में पूजा और जिज्ञामा दो अर्थ स्पष्ट होते हैं । भट्टोजिदीक्षित ने चुरादि प्रकरण में 310 वी धातु के विवेचन के अवसर पर इसको सन्नन्त होने पर विचारार्थक स्वीकार किया है।3 इस प्रकार पूजा, जिज्ञासा और विचार-ये तीन अर्थ मानु धातु के प्राप्त होते है । इनमें में जिज्ञासा तथा विचार परस्पर निकट हैं, क्योंकि सन्दिग्ध वस्तु में निर्णयहेतु जिज्ञासा होती है और निर्णय बिचारसाध्य होता है। संभवत: इसी दृष्टि से जिज्ञासा अर्थ होने पर मी वृत्तिकार ने इसको विचारार्थक स्वीकार किया है। व्यवहार में सामान्यत: मीमांसा शब्द विचार अर्थ में ही प्रचलित वैद जो जिज्ञासा-पद का लाक्षणिक अर्थ है।4

अर्थसंग्रहकार भास्कर ने इसको और भी स्पष्ट कर दिया है। उनके अनुसार धर्म का विचार प्रस्तुत करने वाला शास्त्र 'मीमांसा' है,5 न कि कोई भी विचार। विख्यात 'भामती' टीका के रचयिता वाचस्पति मिश्र मीमांसा दो 'पूजितविचार' का वाचक स्वीकार करते हैं । 'इनके अनुसार अर्थग्रहण करन पर माद धातु के पूजा तथा जिज्ञासा या विचार दोनों अर्थो की मङ्गति बैठ जाती है, किन्तु यह सङ्गति व्युत्पत्तिगत न होकर ऐतिहासिक हीगी भामती- कार की हीट में पूजितता अर्थ परमपुरुषार्थ-भूत सूक्ष्मतम ब्रह्मज्ञान के विषय में निर्णय देने के कारण है, इसी प्रकार जैमिनिनय के अनुसार परमपुरुषार्थभूत स्वर्ग आदि की प्राप्ति के विशिष्ट साधनो का प्रतिपादक या निर्णायक मानकर यहां मी वह अर्थ स्वीकार किया जा सकता है, किन्तु सत्य यह प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में शनै: शनै: वेदों के प्रति आदर का भाव बढते रहने पर उससे सम्बद्ध विचारों के प्रति भी लोगों में पूज्य-भाव बढा और मीमांसा पूजित-विचार का वाचक हो गया। मान् के दोनों अर्थों की संगति में दीघ अन्तराल की अपेक्षा रही।



Sample Pages















Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at [email protected]
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through [email protected].
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories