भगवान श्रीकृष्ण महाराज 'आत्मज्ञान' के बारे में अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं:-
मनुष्याणां सहस्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चितन्मां वेत्ति तत्त्वतः ।।
कि हजारों मनुष्यों में कोई-कोई मनुष्य ही इस आत्मतत्त्व की प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई बिरला, सिद्ध पुरुष ही इसे प्राप्त करता है।
ऐसे ही सिद्ध पुरुष हैं, सद्गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जो कि ढाई वर्ष की बाल्यावस्था से ही अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी कर आत्मतत्त्व की साधना में लगे रहते थे। इस परातत्त्व की पूर्णानुभूति कर लेने के बाद अब वह भारतवर्ष के कोने-कोने में भ्रमण कर जनता जनार्दन के समक्ष इस ध्रुव सत्य को रख रहे हैं किं वास्तव में आत्मा है और यही हमारा वास्तविक स्वरूप है तथा हम अपने ही अन्दर उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति कर सकते हैं बशर्ते कि हमें सही मार्ग दर्शन करने वाला कोई सिद्ध पुरुष, सच्चा सद्गुरु मिले।
प्रस्तुत पुस्तक 'आत्मदर्शन' में, क्या वास्तव में आत्मा है, और अगर है तो उसके प्रत्यक्षीकरण का सबसे सरल और सुगम मार्ग क्या है- इन सब विषयों' पर श्री सतपाल जी महाराज द्वारा भारतवर्ष के विभिन्न स्थानों में दिये गये प्रवचनों का विषयानुसार अंशासंकलन है। आशा है कि पाठकगण 'आत्मा' के गूढ़ रहस्य को, सरल एवं सीधे शब्दों में समझाने के इस लघु प्रयास को सहर्ष स्वीकार करेंगे।
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