सम्पादकीय निवेदन
श्रीमहानामव्रतजी ब्रह्मचारी बंगाल प्रान्त में एक उच्चकोटि के साधक रहे हैं । इनके द्वारा श्रीमद्भागवत एवं श्रीमद्भगवद्रीता-जैसे आर्ष ग्रंथो की सुमधुर एवं प्रभावोत्पादक व्याख्या बँगला भाषा में प्रस्तुत हुई है।
पिछले दो-तीन वर्षोंमें 'कल्याण 'के मासिक अङ्कों में धारावाहिक रूप से 'उद्धव-संदेश' का प्रकाशन होता रहा है, जिसको पाठकों ने विशेष चावसे पढ़ा । श्रीमद्भागवत में भगवान् श्रीकृष्ण का उद्धव के द्वारा ब्रजवासियों तथा व्रजाक्नाओं को संदेश भेजने का प्रसंग अत्यन्त मार्मिक है । इसके सम्पूर्ण भावों की अभिव्यक्ति शब्दों में होनी साधारण बात नही है, परंतु ब्रह्मचारीजीने बँगला भाषामें इस प्रसंगकी अत्यन्त मधुर एवं चित्ताकर्षक प्रस्तुति की है, जिसका हिन्दी अनुवाद सुललित भाषामें श्रीचतुर्भुजजी तोषणीवालके द्वारा सम्पन्न हुआ । 'कल्याणके प्रेमी पाठकों एवं साधकोंके द्वारा यह आग्रह होता रहा कि इसे पुस्तकरूपमें प्रकाशित किया जाय । भगवत्कृपासे अब यह सुयोग प्राप्त हुआ है और यह पुस्तक-रूपमें प्रस्तुत है ।
आशा है पाठकवृन्द इस संकलनको पढ़कर लीलापुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण और उनके अत्यन्त आत्मीय व्रजवासीजनोंके दिव्य भावोंसे किंचित् अनुप्राणित अवश्य होंगे ।
विषय-सूची
1
श्रीभगवान् की भक्त-दु:खकातरता
2
व्रजगमनकी असमर्थता
5
3
दूत-प्रेषणकी सार्थकता
11
4
प्रस्तुतिका आन्तरिक हेतु
15
व्रजकी शुभ यात्रा
22
6
व्रज-प्रवेशका अनधिकार
28
7
नन्दराजके संग निरानन्द वार्तालाप
34
8
अप्रत्याशित व्यर्थताका अनुभव
41
9
सांत्वना -योग्य भाषाका दारिद्र्य
45
10
नन्दराजका दीनभाव
48
श्रीकृष्णकी भगवत्ता
52
12
माधुर्यावगाहनकी अक्षमता
58
13
व्रंजवधुओंकी निकटवर्तिता
63
14
यदुपतिकी मित्रता
70
आगमनका प्रयोजन
76
16
गोपियोंकी मर्मव्यथा
80
17
श्रीराधाविरह -वेदनाका प्राकटय
87
18
चित्रजल्पकी मूल कथा
91
19
प्रजल्प -परिजल्प
98
20
विजल्प -उज्जल्प'
104
21
संजल्प - अवजल्प
113
अभिजल्प, आजल्प, प्रतिजल्प, सुजल्प
124
23
उद्धवकी व्याकुलता
137
24
प्रेमकी सर्वात्मकता
144
25
प्रेम-विवर्धन-परायणता
151
26
कृष्ण-प्रीतिकी सुगभीरता
157
27
नन्दनन्दनकी नवरूपता
164
विरह-व्यथाका उपशमन
172
29
उद्धवकी परमप्रियता
175
30
उद्धवद्वारा लतागुल्म होनेकी कामना
181
31
पदरजकी प्रार्थनाकी चमत्कारिता
190
32
वेदनापूर्ण व्रजवार्ता
198
निवेदन
भक्तके हृदयमें भगवान् बसते हैं, भगवान्के हृदयमें भक्त। यह एक ऐसा योग है जिसमें वियोग होता ही नहीं, जिसमें भक्त और भगवान्का एकान्त मिलन निरन्तर होता ही रहता है। उद्धव ऐसे ही प्रेमी भक्त हैं और स्वयं भगवान्ने उन्हें 'प्रियतम' कहकर सम्बोधित किया है। उन्हीं महाभागवत परम प्रेमी उद्धवका चरित्र आपके हाथोंमें है। आपकेसुपरिचित लेखक पण्डित श्रीशान्तनुविहारीजी द्विवेदीने पूर्ण प्रीतिके साथ इसका प्रणयन किया है। आधार तो मुख्यत: श्रीमद्भागवत तथा गर्गसंहिताका है ही परन्तु उन्होंने अपनी सुन्दर एवं भावपूर्ण शैलीमें चरित्रका जो विन्यास-किया है वह पाठकोंको विशेष प्रीतिकर होगा ऐसा मेरा विश्वास है। पुस्तकके अन्तिम भागमें उद्धवके प्रति भगवान् श्रीकृष्णके उपदेश संकलित हैं जिसके कारण पुस्तककी उपयोगिता और भी बढ़ गयी है। आशा है यह पुस्तक पाठकोंको भगवत्प्रेमकी प्राप्तिमें सहायक सिद्ध होगी।
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