निराला के शब्दों में 'हास्य लिये एक स्केच' कहा गया यह उपन्यास वपनी यथार्थवादी विषयवस्तु और प्रगतिशील जीवनदृष्टि के लिए बहुचर्तित है! बिल्लेसुर एक गरीब ब्रामण है, लेकिन ब्राह्मणों के रूढ़िवाद से पूरी तरह मुक्त! गरीबी से उबरने के लिए वह शहर जाता है और लौटने पर बकरियाँ पाल लेता है! इसके लिए वह बिरादरी की रुष्टता और प्रायशिचत्त के लिए डाले जा रहे दवाब की परवाह नहीं करता ! अपने दम पर शादी भी कर लेता है!
वह जानता है कि जात-पाँत इस समाज में महज एक ढकोसला है जो आर्थिक वैषम्य के चलते चल रहे है ! यही कारण है कि 'पैसेवाला' होने ही बिल्लेसुर का जाती-बहीष्कार समाप्त हो जाता है ! संक्षेप में, उपन्यास बदलते आर्थिक सम्बन्धों में सामन्ती जड़वाद कि धूर्तता, पराजय और बेबसी की कहानी है!
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