वरिष्ठ पत्रकार मंजीत ठाकुर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को करीब से देखने के साथ पिछले 15 वर्षों का हर चुनाव कवर किया है। बंगाल पर अपने गहन शोध व विमर्श के बाद उनका मानना है कि आने वाले चुनावों में भाजपा के पास 'राष्ट्रवाद' और 'रामलला' हैं, लेकिन ममता के पास पहले की तरह 'बंगला अस्मिता' और 'सांस्कृतिक उपाख्यानों' का सहारा है। राष्ट्रवाद और उपराष्ट्रवाद के बीच का द्वंद्व बंगाल के चुनावी युद्ध को और अधिक दिलचस्प बना रहा है।
यह पुस्तक बंगाल में भाजपा (और संघ परिवार) की यात्रा को विस्तार से बताने के साथ-साथ पाठकों को आजादी के बाद से अब तक, बंगाल की बहुरंगी राजनीति से रू-ब-रू कराती है।
मंजीत ठाकुर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को करीब से देखा है और 2009 के बाद से राज्य का तकरीबन हर चुनाव कवर किया है। उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों की समस्याओं पर किताब 'ये जो देश है मेरा' लिखी है, जो विस्थापन की पीड़ा और उससे उपजने वाले मानवीय संघर्षों पर है। उन्होंने सांस्कृतिक उपन्यास 'गर्भनाल' लिखा है और उनकी तीन कहानियाँ अंग्रेजी में अनूदित होकर 'स्टोरीवाला' शीर्षक संग्रह में प्रकाशित हुई है। वह 'फलक' कहानी संग्रह के संपादक रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने एक ऑडियो नॉवेल 'रॉबिन' भी लिखा है, जो स्टोरीटेल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है।
मंजीत ने दूरदर्शन में राजनैतिक, पर्यावरण, सामाजिक मसलों पर जमकर रिपोर्टिंग की है और बहुत सारी डॉक्यूमेंट्रीज बनाई। मशहूर स्टोरीटेलर नीलेश मिसरा के लिए उन्होंने पचास से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने बहुत सारी ऑडियो सीरीज भी लिखी हैं, जिनमें ऑडिबल के लिए 'हमलावर, और अन्य मंचों के लिए 'भारत की रानियाँ, 'योद्धा, सावन ऐप के लिए 'परमवीर चक्र', 'टाइम मशीन' आदि शामिल हैं।
लेखक ने वीएस नायपॉल की 'द लॉस ऑफ एल दोरादो, 'द नाइटवॉचमैंस अक्युरेंस बुक ऐंड अदर कॉमिक स्टोरीज, एपीजे अब्दुल कलाम की 'आरोहण, प्रणय रॉय की 'भारतीय जनादेश', अश्नीर ग्रोवर की 'दोगलापन', भूपेंद्र यादव और इला पटनायक की 'भाजपा का अभ्युदय' और रघुराम राजन और रोहित लांबा की 'ब्रेकिंग द मोल्ड' समेत चौदह किताबों का अनुवाद भी किया है। इसके अलावा, विजय निवेदी की किताब 'संघम शरणम गच्छामि' और प्रखर श्रीवास्तव की किताब 'हे राम' का संपादन भी उन्होंने किया है।
भाजपा ने भी पश्चिम और मध्य भारत में अपने विस्तार के शिखर को हासिल कर लिया है। ऐसे में उसकी राजनीतिक जड़ों को पूरब की मिट्टी में पनपना होगा। बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा जैसे राज्य उसके लिए अभी तक वर्चस्व के बाहर हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल की अहमियत इसलिए भी अधिक हो जाती है, क्योंकि सिर्फ वहाँ की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेत्री ममता बनर्जी ही हैं, जो उनके विरुद्ध ताकतवर दिखती हैं। ऐसे में सूबे की सियासत इस लोकसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनावों में भी काफी दिलचस्प रहने वाली है और मैंने उसके पीछे के आख्यानों को समेटने की कोशिश की है।
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