पुस्तक के विषय में
ललित ज्योतिषके माननेवाले जय कभी जन्मपत्र, वर्षपत्र, मासपत्र, दिनपत्र, गोचराष्टकवर्ग दशा-अंतर्दशा अथवा विवाहादिमें कोई अशुभ फलदायी ग्रह देखते हैं तब उसके लिये सूर्यादि ग्रहोंके जप, दान, पूजा, पाठ, व्रत और होम आदि किया करते हैं। इसके लिये अब-तक कोई ऐसा सत्रह नही था जिसके द्वारा उपरोक्त सब काम किेये या कराये जा सके । इस अभावको दूर कर- नेके लिये यह "नवग्रहजपविधि" प्रकाशित की गई है। यह संग्रह बहुत संक्षेपसे है। परन्तु इसमें नवग्रहजपविधि, नवग्रहव्रतविधि, नवग्रहशांतिविधि, नवग्रहपूजाविधि नवग्रहदानविधि और गणपतिमंत्रजपविधि आदि आवश्यक विषय सब लिख दिये गये हैं। इसके द्वारा हम काम संक्षेपसेऔर यथामति विस्तारसे भी सांगोपांग हो सकते हैं अत: आशा है सर्व साधारणको इससे अधिक लाभ होगा।
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