छीतस्वामी (अष्टछाप कवि और उनकी रचनाएं): Chhitswami (Ashtachhap Poet and His Creations)

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Item Code: NZD003
Publisher: Publication Division, Ministry Of Information And Broadcasting
Author: डा. वसंत यामदग्नि (Dr. Vasant Yamadagni)
Language: Hindi
Edition: 2003
ISBN: 8123010699
Pages: 151
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 210 gm
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Book Description

पुस्तक के विषय में

अस्टछाप के कवियों में दीपस्तंभ की भांति उजास फैलाने वाले -छीतस्वामी ने श्रीनाथ के प्रति जिस अनन्य भक्ति का परिचय दिया है, वह मौलिक और शाश्वत है। अष्टछाप के अन्य कवियों की अपेक्षा छीतस्वामी ने कम ही लिखा है। उनके पद भावपूर्ण और सरस है। पदों में हृदय की पवित्रता और मन की निष्कपटता के-दर्शन होते है। अष्टछाप के कवियों में छीतस्वामी की अनन्य गुरुभक्ति प्रसिद्ध है। छीतस्वामी एक साथ परमभक्त, चिंतक और सरस कवि के रूप में सामने आते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक छीतस्वामी संकलन, संपादन ब्रज साहित्य और संस्कृति के अध्यवसायी अनुसंधाता और व्याख्याता डा. वसंत यामदग्नि ने किया है।

प्रस्तावना भारतीय साहित्य, समाज और संस्कृति के अजस्त्र प्रवाह में जो विभिन्न धाराएं समय-समय पर समाहित होकर उत्तरोत्तर गतिमान हैं, उनमें हिंदी काव्य की मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति धारा सर्वाधिक निर्मल, वेगवती और लोकमन को रससिक्त कर देने में समर्थ मानी जा सकती है। उसमें भी 'अष्टछाप' के अभिधान से ज्ञात आठ कृष्णभक्त कवियों का मंडल एक अष्टमुखी दीपस्तंभ की भाति हिंदी काव्य सागर के बीचोंबीच मार्गबोधक के रूप में प्रतिष्ठित है। इन कृष्ण प्रेमी शब्द शिल्पियों की भक्ति चेतना मात्र दार्शनिक अवधारणा का भाषिक संस्करण नहीं, अपितु यह भारतीय संस्कृति विशेषतया लोक संस्कृति की अखंड अविकल्प आत्मा है। 'इनकी भक्ति चेतना के केंद्रवती तत्व बिंदु वह सात्विक एवं अंतरीय प्रेमभाव है जिसकी निरभ्र, अकलुष ऊर्जा अन्य सभी मानवीय संवेदनाओं को अपने दिव्य आलोक में समाहित किए हुए है। इनके क्ये का आलंबन वह नटवर नागर श्याम है जो भक्तों का परम पुरुष, गोपों का स्वजन-सखा, यादवों का प्यारा, नंद-यशोदा का दुलारा, आर्तजनों का सहारा तथा गोपियों के कन्हैया के नाम से जन-जन मोहक सौम्य प्रसिद्ध विराट व्यक्तित्व का धनी है। उस व्यक्तित्व की अपूर्व-अप्रतिम आधा और अद्वितीय रूप-माधुर्य ने यदि किसी काल में प्रत्यक्ष युगसुंदरी राधा एवं गोपियों को मुग्ध किया तो उसके गुणगायन ने परवर्ती युगों में न जाने कितनों को भक्त, साधक और उपासक बना दिया । भक्त कवियों एवं प्रेम संगीत के गायकों की सुललित वाणी जब उस चुंबकीय व्यक्तित्व में मुखरित हुई तो उनके भावाभिभूत अंतःकरण से ऐसी रस निर्झरिणी प्रवाहित हुई जिसमें कोटि-कोटि जन-मन निमज्जित होकर झूम उठे । ऐसे ही सहृदयों में मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति चेतना के संवाहक 'अष्टछापी' कवियों के अंतर्गत 'छीतस्वामी' का नाम भी अग्रगण्य है।

'कृष्ण' एक शाश्वत सत्ता के प्रतीक हैं, जो सदैव, अक्षय, अच्युत एवं अतिक्त हैं। आधुनिक युग में, पश्चिमी (फारसी, अंगरेजी आदि) साहित्य के गृहीत जीवन दृष्टि के प्रवाचक कतिपय हिंदी लेखकों और समीक्षकों द्वारा 'प्रेम' तत्व को मात्र 'काम' (सेक्स) और 'इश्क' अथवा 'लव' की लौकिक अवधारणाओं के तानेबाने में उलझाकर जिस संकीर्ण परिधि में प्रस्थापित कर दिया गया है, उस सीमितता को छिन्न-भिन्न कर 'प्रेम' के उज्जवल उदात्त मंगलमय रूप का साक्षात्कार करने के लिए अष्टछाप के कवियों की वाणी का अनुशीलन तथा परिशीलन आवश्यक है। मध्ययुग में विभिन्न ब्रह्मवादी व्याख्याताओं ने. लोकमानस में जीवन के प्रति विरक्ति अथवा निवृत्तिपरक दृष्टि जगाकर । उन्हें सहज मानवीय संवेदनाओं से शून्य, एक शुष्क जड़ वस्तुवत् निष्क्रिय बना देने का जो उपक्रम किया उसका परिहार और निवारण इन अष्टछापी कवियों ने. शास्त्रीय दार्शनिक मर्यादाओं का विखंडन किए बिना ही, बड़ी सुचारुता और प्रगल्भता से किया । जीवन की निवृत्तिपरक व्याख्याओं के बीच जीवन स्वीकृति के दिव्य आनंदमय प्रवृत्ति मार्ग को प्रशस्त करने वाले इन काव्य-साधकों ने भारतीय संस्कृति की कालजयी सामरस्य चेतना को ही समृद्ध किया । 'छीतस्वामी' के व्यक्तित्व और काव्य-कृतित्व का दिव्यदर्शन कराने वाली यह पुस्तक इस अवधारणा को, स्पष्ट एवं संपुष्ट करने में सहायक होगी ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।

इस पुस्तक का संकलन, संपादन ब्रज साहित्य और संस्कृति के अध्यवसायी अनुसंधाता और व्याख्याता डा. वसंत यामदग्नि ने किया है। वर्षो तक आकाशवाणी के 'ब्रजमाधुरी' कार्यक्रम के संचालन का अनुभव 'छीतस्वामी' के संबंध में प्रस्तुत की गई इस पुस्तक में प्रत्यक्ष हो उठा है । उन्हीं के शब्दों में 'अष्टछाप के कवियों में सूर यदि वात्सल्य के लिए, नंददास अपनी दार्शनिक विचारधारा के लिए, परमानंददास राधा-कृष्ण की युगल रसक्रीड़ा के लिए तथा कृष्णदास यदि अपनी तत्त्वविधायिका सूक्ष्मान्वेषिणी दृष्टि के लिए विख्यात हैं, तो छीतस्वामी अपनी गुरुभक्ति के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे और आज के निष्ठारहित अंधकार भरे युग में उनके पद प्रकाश स्तंभ की तरह एक अमर 'उजास' फैलाते रहेंगे। इसी स्वस्तिवाचन के साथ यह पुस्तक सहृदय सुधी पाठकों के अध्यनार्थ प्रस्तुत है ।

भूमिका

अष्टछाप के कवियों में छीतस्वामी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और अपने गुरु गोसाईं विट्ठलनाथ के प्रति गहन निष्ठा रखते थे । छीतस्वामी ने गोसाईं जी की कृपा से श्रीनाथ के प्रति जिस अनन्य भक्ति का परिचय दिया है वह सर्वथा मौलिक और शाश्वत है । अष्टछाप के अन्य कवियों की अपेक्षा परिमाण की दृष्टि से छीतस्वामी ने कम ही लिखा है, फिर भी उनके पद बड़े भावपूर्ण और सरस है, उनमें हृदय की पवित्रता और मन की निष्कपटता के दर्शन होते हैं । प्रारंभ में ये छीतू मथुरिया के नाम से प्रसिद्ध थे तथा बड़े झगड़ालू और उग्र स्वभाव के थे, पर गोसाई जी के दर्शन मात्र से इनमें भगवत्भक्ति का उदय हुआ और गुरु के अपनाने पर इन्होंने गिरिवर धर में तथा गोसाई जी में कोई भेद नहीं माना । जब राजा बीरबल ने उनके इस विचार का प्रतिवाद किया, तब ये उनसे वार्षिकी न लेकर गोकुल चले आए । और फिर कभी परम दैन्य में भी आगरा या सीकरी न गए। श्रीनाथ जी को छोड्कर उन्होंने किसी दूसरे के सामने हाथ पसारना उचित नहीं समझा। उनकी वैष्णवता आजीवन निष्कलंक रही। अकबर बादशाह उनकी इस निष्काम भक्ति से परिचित थे और इनका बड़ा सम्मान करते थे।

अष्टछाप के कवियों में सूर यदि वात्सल्य के लिए, नंददास अपनी दार्शनिक विचारधारा के लिए, परमानंददास राधा-कृष्ण की युगल रसक्रीडा के लिए तथा कृष्णदास यदि अपनी तत्त्वविधायिका सूक्ष्मान्वेषिणी दृष्टि के लिए विख्यात हैं, तो छीतस्वामी अपनी गुरुभक्ति के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे और आज के निशा रहित अंधकार भरे युग में उनके पद प्रकाश स्तंभ की तरह एक अमर 'उजास' फैलाते रहेंगे । इस रूप में छीतस्वामी एक साथ ही परमभक्त, चिंतक और सरस कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं । प्रकाशन विभाग, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का आधार किन शब्दों में व्यक्त किया जाए, जिसने अष्टछाप के कवियों के जीवन दर्शन से संबंधित पुस्तक के प्रकाशन का बीड़ा उठाया है और छीतस्वामी सबंधी इस ग्रंथ के प्रकाशन का जिम्मा उठाकर पाठकों को पठनीय सामग्री से अवगत कराया है।

Contents

 

(क) छीतस्वामी का प्रारंभिक जीवन और गोसाई जी से साक्षात्कार 1
(ख) छीतस्वामी की रचनाएं और उनका प्रतिपाद्य 4
(ग) छीतस्वामी की भक्ति- भावना और दार्शनिकता 6
(घ) छीतस्वामी की कविता के ध्यातव्य बिंदु 15
(ङ) छीतस्वामी के काव्य में सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना 29
(च) छीतस्वामी का पद-संग्रह 42
(छ) संदर्भ ग्रंथ  

 

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