संगीत-विदुषी सुमति मुटाटकर की रचनाओं का संग्रह| प्रचलित व विशेष रूप से अल्प-धमार, ख़याल-तराना-चतरंग, इन हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रमुख विधाओं में ये रचनाएँ हैं |
यमन, श्यामकल्याण, देस, पूरिया-धनाश्री, चंद्रकौंस जैसे सर्वविदित रागों के साथ-साथ पटमंजरी, पटबिहाग, दीपक, लक्ष्मी तोड़ी, हेमनाट जैसे अछोप राग एवं वसंतमुखारी, चारुकेशी जैसे नवागत रागों का भी समावेश इस संग्रह मे हैं|
नवरचना की प्रेरणा लेखिका को गुरुवर आचार्य श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर से मिलती रही| आचार्य स्वयं आज के युग के सर्वश्रेष्ठ, सर्जनशील वाग्गेयकार थे| अपने शिष्यों को नवनिर्मिति के लिए प्रेरित करते थे| उनका कहना था की रागरूप का स्पष्ट अंकन हो और किसी की कार्बन कॉपी न हो, इस दिशा में प्रयास करना चाहिए| परम्परा के निर्वाह में आस्था के साथ-साथ सुमति मुटाटकर नविन आयामों का भी अहसास रखती हैं|
इस संग्रह में लगभग सतर बंदिशों के अतिरिक्त एक छोटा- सा खंड सरल सुबोध संस्कृत भाषा में स्वनिर्मित कविता व मुक्तकों का हैं| भरत की नाट्य व संगीत की समृद्ध परम्परा से कुछ बिन्दु इसमें समाविष्ट हैं|
सुमति मुटाटकर (जन्म सन् 1916) पदमश्री व कालिदास सम्मान से विभूषित विदुषी सुमति मुटाटकर संगीत-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं|
आचार्य श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर की प्रमूख शिष्या| अन्य गुरुपंडित राजाभैया पूँछवाले, उस्ताद विलायत हुसैन खाँ, पंडित अनंत मनोहर जोशी, पंडित गोविंद राव बुरहानपुरकर|
क्रियासिद्ध कलाकार, शास्त्रविद् गुरु, आचार्य, प्रशासक के रूप में बहुमूखी कार्य| आकाशवाणी व दिल्ली विश्वविघालय में उच्च पदों पर कार्य| विदेशों में- प्रातिनिधिक विशेषज्ञ व कला प्रस्तुतिकार के रूप में क्रियान्वयन- नेपाल, मॉरीशस, आस्ट्रेलिया, यूरोप, जापान|
विद्धान् गुरुओं से प्रशिक्षण व अपनी साधना के बल पर जो अर्जित किया, उसकी तीन कैसेट के सेट नादज्योति के द्धारा संगीत जगत् के सम्मुख प्रस्तुत|
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