कामायनी और अग्निसागर का तुलनात्मक अध्ययन: Comparative Study of Kamayani and Agnisagar

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Item Code: HBA003
Author: Rajpal Sirohiwal
Publisher: Suryaprabha Prakashan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2003
ISBN: 8175700092
Pages: 96
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 250 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय

कामायनी और अग्नि सागर का तुलनात्मक अध्ययन' पुस्तक में मनु द्वारा स्थापित मनुस्मृति की विशद व्याख्या की गयी है। 'कामायनी' में जयशंकर प्रसाद ने-समरस थे जड़ और चेतन, सुन्दर साकार घना था चेतनता एक विलसती, आनन्द अखंड़ घना था, कहकर आनन्द वादी प्रत्यभिज्ञा दर्शन स्थापित किया हैं वहीं डॉ. शशि ने 'अग्निसागर' में-ही शोषण मुक्त समाज सभी, ये सारी धरती हो सुखमय, बस यहीं देखने की इच्छा निर्द्वन्द रहे सब चले अमय कह कर सामाजिक यथार्थवादी दर्शन स्थापित किया है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक साहित्य जगत में शोध के विविध आयामों को रेखांकित करती है।

आशा है कि प्रस्तुत पुस्तक शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लेखकीय

मैंने जयशंकर प्रसाद की अमर कृति 'कामायनी' और डॉ. श्याम सिंह शशि के महाकाव्य 'अग्निसागर' को न केवल पढ़ा, बल्कि जिया भी है। छात्रावस्था में 'कामायनी' की उत्तुंग शिला का प्रथम पुरुष मनु मुझे आकर्षित करता। कभी जलप्लावन में गहरे उतारने लगता तो 'अग्निसागर' का आदि पुरुष मनु जलप्लावन के साथ-साथ आदिवासी संस्कृति का आनंद देता। दोनों महाकाव्य अपने-अपने ढंग से मेरे युवा-मन को कुछ लिखने को प्रेरित करते। दोनों को पढ़ने का अपना सुख था, अपना सुकून था।

मुझे जब अपने शोध-विषय का चयन करना था तो उक्त दोनों कृतियां मेरे समक्ष थीं। मैं उनमें पूरी तरह से डूबने लगा। अध्ययन के इस महासागर में मुझे जो भी माणिक-मुक्ता मिले, सुधीजनों के लिए प्रस्तुत हैं।

मुझे प्रसन्नता है कि इस अध्ययन पर राजस्थान विश्वविद्यालय ने मुझे पी-एच.डी. की उपाधि प्रदान की। पर इस सबका श्रेय मेरे गुरुवर डॉ. जगतपाल सिंह को जाता है, जिनके मार्गदर्शन में यह शोध ग्रंथ सम्पूर्णता पा सका। कृतज्ञता के शब्द अधूरे हैं।

मैंने इस ग्रंथ से 'कामायनी' तथा 'अग्निसागर' के वे अंश निकाल दिए हैं जो किसी न किसी रूप में अन्य ग्रंथों में आए हैं। आकार-भय के कारण भी अनेक उद्धरणों का मोह छोड़ना पड़ा। डॉ. शशि ने इतना लिखा है कि उनके अनेक पक्षों पर शोध कार्य चल रहे हैं। मैंने प्रकाशकीय अनुरोध पर डॉ. पुष्पा गर्ग, डॉ. सम्राट शर्मा तथा शशि-साहित्य के अन्य शोधार्थियों के शोध-ग्रंथों के सार संक्षेप व कुछ अंश लेकर इस ग्रंथ की उपादेयता में श्रीवृद्धि की है। सभी के प्रति आभार-प्रदर्शन।

संपादकीय

इस ग्रंथ के छपते-छपते मेरठ विश्वविद्यालय से डॉ. देवेन्द्र नाथ शर्मा के निर्देशन में इस विषय पर डॉ. पुष्पा रानी गर्ग का एक अन्य शोध-ग्रंथ 'कामायनी और अग्निसागर : एक तुलनात्मक अध्ययन भी पी-एच.डी. की उपाधि के लिए स्वीकृति पा गया। बाद में पता चला कि अजमेर तथा अन्य विश्वविद्यालयों से 'कामायनी' और 'अग्निसागर' पर तुलनात्मक अध्ययन हुए। किन्तु पहल दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई जहाँ डॉ. वीरेन्द्र भारद्वाज ने 'अग्निसागर संवेदना और शिल्प को अपने शोध का विषय बनाया। यह ग्रंथ लघु रूप में प्रकाशित भी हुआ।

पता नहीं "अग्निसागर में क्या जादू है, जिसे बार-बार पढ़ने पर पुनः कुछ नया मिलने लगता है। यदि ऐसा न होता तो पटना विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार प्रो. निशांतकेतु 'अग्निसागर की अग्निपरीक्षा समीक्षा ग्रंथ में क्यों मगजपच्ची करते तथा गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. हरिमोहन "अग्निसागर" पर समीक्षा ग्रंथ क्यों लिखते? 'अग्निसागर" अपने युग का बहुचर्चित प्रबंध काव्य है जो समाजोन्मुख आदर्श कविता के रुप में सदैव स्मरण किया जाएगा। हमें भी 'अग्निसागर" में आर्ष-तत्त्वों पर शोध करने का सौभाग्य मिला है।

यह शोध-ग्रंथ बहुत बड़ा था, जिसे प्रकाशन के ध्येय से कम करना पड़ा, किन्तु तथ्यात्मक दृष्टि से सम्पूर्णता बनी रही। आशा है बीसवीं शताब्दी की कालजयी कृतियों पर आधारित यह अध्ययन शोधार्थियों, आचार्यों, आलोचकों तथा पाठकों को कुछ अभिनव चिंतन देगा एवं हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों का ध्यान भी आकर्षित करेगा।

उल्लेखनीय है कि डॉ. शशि के विशाल साहित्य पर अनवरत शोध कार्य हो रहा है। हाल ही में गढ़वाल विश्वविद्यालय ने डॉ. सम्राट सुधा को 'श्याम सिंह शशि के काव्य : 'उत्तर आधुनिकता तथा भूमंडलीकरण' एक विवेचनात्मक अध्ययन' विषय पर डाक्टरेट प्रदान की है। प्रो. सुधा पांडे के निर्देशन में सम्पन्न इस ऐतिहासिक कार्य का सार-संक्षेप भी हम दे रहे हैं। सभी को हार्दिक बधाई तथा धन्यवाद।

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