पुराण शब्द सुनते ही विस्तार का बोध होता है। पुराना, विस्तृत एवं अनेकानेक कथा, उपकथा, चरित्रों, विचारों युक्त। पुराण के कभी पाँच, कभी दस लक्षण बताए गए हैं। भागवत पुराण की दृष्टि से पुराण के दस लक्षण हैं- सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर, ईशकथा, निरोध, मुक्ति, आश्रय इन्हें ही सर्ग, विसर्ग, वृत्ति, रक्षा, मन्वन्तर, वंश, वंशानुचरित, संस्था (प्रलय), हेतु, अपाश्रय भी कहा गया है। स्पष्ट है इन दसों को लेकर पुराण का कलेवर बढ़ जाता है किन्तु विष्णु पुराण अपवाद है। भगवान् विष्णु से सम्बद्ध यह पुराण दसों विशेषताएँ रखते हुए भी आकार में लघु है। देखन में छोटो लगै। किंतु ज्ञान देत गंभीर। यही कारण है। विद्वानों में इस ग्रंथ का बड़ा आदर है। इसे पुराण प्रवेश की कुंजी भी कहना चाहिए।
डॉ. युगेश्वर ने 'संपूर्ण विष्णु पुराण' को सरल, सुलभ हिन्दी भाषा में पाठकों के समक्ष रखा है। थोड़े शब्दों और वाक्यों द्वारा पाठक भारत की महान् परंपरा और दार्शनिक विचारों से परिचित हो जाता है। भाषा शैली इतनी आकर्षक है कि पाठक पढ़कर ही शांत होता है। अनेक कथाएँ और विचार वाक्य जीवनसाथी बन जाते हैं।
डॉ. युगेश्वर: जन्म- मुंगेर, अब शेखपुरा जिले का एक गाँव। जन्म तिथि- १० जनवरी, १९३४। हिन्दी विद्यापीठ, देवघर से साहित्यालंकार उत्तीर्ण करने के बाद युगेश्वर वाराणसी आ गये। यहाँ उन्होंने हाईस्कूल से पी-एच.डी. तक की शिक्षा पूरी की। हिन्दी में एम.ए. उत्तीर्ण होते ही ये काशी विद्यापीठ के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक हो गये। १० जनवरी १९९४ को आचार्य पद से सेवा निवृत्त होकर वाराणसी को स्थायी आवास बना लिया है। समाजवादी आन्दोलन में रहने के कारण जातिगत उपाधि का प्रयोग के साथ शिखा-सूत्र से भी मुक्त हो गए। डॉ. युगेश्वर सन् ४९ से ही लिखते आ रहे है। कितना, कैसा कैसा और कहाँ-कहाँ लिखा ? गणना कठिन है। रुचि भी नहीं है। कल्पना चौखंभा, जन में नियम से लिखा। राजनीति, शिक्षा, साहित्य, अध्यात्म, भाषा शास्त्र आदि इनके लेखन के मुख्य विषय है। डॉ. युगेश्वर के पंद्रह सांस्कृतिक उपन्यास प्रकाशित और कई प्रकाशन क्रम में हैं। रामायण मेला और अंग्रेजी हटाओ से इनका विशेष लगाव रहा है। इस ख्यात समाजवादी विचारक की मुख्य प्रेरणा और चिता राष्ट्रता, समता और लोकतंत्र है। डॉ. युगेश्वर की अपनी शैली है। विचारों की तीव्रता, स्पष्टता और दिशा निर्देश के कारण युगेश्वर का लेखन सबको आकर्षित करता है। डॉ. युगेश्वर के प्रकाशित ग्रन्थ - १. मगही भाषा, २. हिन्दी कोश विज्ञान का उद्भव और विकास
चिर प्रतीक्षित संपूर्ण विष्णु पुराण पाठकों के हाथों में देते समय हमें अपार हर्ष हो रहा है। यह छोटा सा वैष्णव पुराण अपने महत्त्व के लिये अत्यंत विख्यात है। थोड़े में बहुत सी उपयोगी सामग्रियाँ इस पुराण में समाहित हैं। थोड़ा कहना अधिक समझना कहावत इसी पुराण पर भली-भाँति लागू होती है। यह पुराण अनेक पुराकथाओं के साथ ही तरह-तरह के चिंतन प्रधान विचारों से भरा है। थोड़े में पुराण परंपरा तथा भारत चिंतन को समझने की दृष्टि से यह पुराण पाठकों को अवश्य पसंद आएगा। श्रीमद् भागवत महापुराण है। अधिक विस्तारवाला है। कृष्ण (विष्णु के अवतार) की रास कथा वाला है। विष्णु पुराण सीधे भगवान् विष्णु से जुड़ा है। कृष्ण कथा भी है। छोटा होने से क्या? यह बिना कटे छँटे संपूर्ण है|
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