निर्देश
मेरा मानना है, मधुमेह (डायबिटीज) शक्कर का सेवन अधिक करने से ही होता है । पुस्तक लेखन कार्य के दौरान कई लोगों ने तनाव, चिंता, विषाद या गेहूँ या कई दूसरी चीजों को भी मधुमेह के लिए जिम्मेदार माना है । परन्तु यह केवल शक्कर की वजह से होता है, ऐसा पाया गया है । मिठाइयाँ, आइस्क्रीम, चाय, कॉफी वगैरह बहुत सी चीजों में शक्कर डाली जाती है इसलिए मेरा मानना है कि सभी को शक्कर को थोड़ा बेलेन्स (सन्तुलन) कर इस्तेमाल करना चाहिए । जैसे चाय या दूध में शक्कर लेते हो तो दूसरी शक्कर की चीजें नहीं खायें या दूध बिना शक्कर का भी पिया जा सकता है । बिना शक्कर के दूध के साथ भी थोड़ी मिठाई खा सकते हैं, क्योंकि मिठाई तो आखिर मावा या छेना की ही बनती है । इससे डायबिटीज जैसी बीमारी से बचा जा सकता है । इसके अतिरिक्त डायबिटीज (मधुमेह) अगर घर में एक सदस्य को हो जाती है तो दूसरे को भी हो सकती है, इसलिए जरूरी है पूरे घर का खान-पान बदलें । घर में शक्कर के इस्तेमाल में कमी करें । वैसे भी नमक और शक्कर कम खाना चाहिए । अक्सर देखा गया है कि औरतें अधिकतर प्याज और लहसुन नहीं खाने की जिद करती है । लहसुन सभी के लिए काफी फायदेमन्द रहता है । भोजन के साथ एक लहसुन रोज खाना चाहिए । परंतु लहसुन के बारे में थोड़ा ज्ञान रखने कि बात यह है कि यह गर्मी करता है इसलिए तेज गर्मी में इसका उपयोग करने से मुँह में छाले पड़ सकते हैं । प्याज स्त्री व पुरुष दोनों के लिये बहुत उपयोगी है । गर्मी के मौसम में प्याज का सेवन जरूर करें ।
एक काम शक्कर पर घर में जागरूकता लाने के लिए अवश्य किया जा सकता है कि 15-20 दिन या महीने शक्कर का निषेध रखें । शक्कर या शक्कर से बने कोई पदार्थ नहीं खायें । या हर दों-तीन महीने में एक आरोग्य सप्ताह मनाएँ जिसमें शक्कर नहीं खायें ।
इससे डायबिटीज (मधुमेह से) बचा जा सकेगा । यह एक भयंकर रोग है । इसके पथ्य- अपथ्य बहुत हैं साथ ही इसके उपद्रव भी बहुत है । समाज में जागरूक लोग इस बीमारी के बारे ये जागरूकता फैलाएँगे । ऐसा मेरा मानना है ।
नमक-दो-तीन महीने में स्व दिन आरोग्य दिवस मनाएँ जिसमें बिना नमक का भोजन करें ।
दो शब्द
हमारे शरीर में जीवन है तो रोग है । शरीर का क्षय होता है तो रोग लगता है । यह प्राकृतिक नियम है । जो चीज पैदा होती है उसको कुदरत खत्म करने की विधि अपनाकर चलती है । लोहे को जंग लगता है, गलता जाता है । काठ को दीमक, पानी, नम हवाएँ गला देती है । मनुष्य के शरीर पर रोग के कीटाणु हमला करते हैं, बीमार कर डालते हैं । कुछ लोग जल्दी-जल्दी बीमार होते हैं, कुछ बहुत दिनों बाद । रोग लगने का कारण होता है शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता का कम होना ।
प्राकृतिक खान-पान शरीर के हर तत्व को सन्तुलित रखते हैं । सन्तुलन बनाए रखने में विटामिन, खनिज और लौह तत्व का महत्वपूर्ण स्थान होता है और ये तत्व प्राकृतिक चीजों में पाये जाते हैं आज का जमाना तली हुई, वसायुक्त तथा मसालेदार खानपान का हो गया है और लोग मीठी (अधिकतर शक्कर से बनी हुई) चीजें तो इतनी खाते है कि हर चीज में मीठा आता है । मिठाइयों कि दुकाने जगह-जगह खुल गई हैं । मिठाईयाँ, ठण्डा पीना, केक, चॉकलेट वगेरे हर चीज में शक्कर तो डलती ही है और तो और पहले मन्दिरों में नारियल, चना-गुड़, सूखा मेवा, घर पर बने हुए गुड़ में बने लड्डू, चने की दाल-मिश्री, साथ ही दक्षिण के मन्दिरों में आज भी चावल से बनी वस्तुओं का भोग लाल चने का भोग लगाया जाता है । परन्तु अब उन मन्दिरों में भी प्रसाद के नाम पर सूखे मेवे और शक्कर डालकर बनाये हुए लड्डुओं का भोग लगने लगा है । वैसे यह सरल भी है । आजकल की तेज जिन्दगी में हर कोई दुकान से पाव किलो, सौ ग्राम पेड़ा, लड्डू लेकर झट भोग लगा देता है । परंतु वह यह सोचता नहीं है कि आखिर खाना तो उसे ही है । मैंने कई ऐसे लोगो को देखा है जो भगवान को भोग लगाने के नाम पर शक्कर से बने पेड़ा, लड्डू, बर्फी आदि खाते रहते हैं और उनको मधुमेह (डायबिटीज) हो गई ।
हमारा अमाशय गरिष्ठ भोजन (तली हुई चीजें, वसायुक्त तथा मसालेदार खानपान) को सरलता से पचा नहीं पाता, परिणाम होता है गैस बनना, अपच, खट्टी डकारें और अजीर्ण होना । इन पर ध्यान न दिया जाए तो एक से अनेक बीमारियाँ घर करती जाती हैं ।
यहाँ एक रोग के आजमाए हुए कई नुस्खे दिये गये हैं । इसकी वजह यह है कि प्रत्येक इन्सान की प्रकति अलग-अलग होती है । प्रकृति के आधार पर जरूरी नहीं है कि हर नुस्सा, हर किसी के लिए एक सा कारगर हो । इसलिए अगर एक नुस्सा लाभ नहीं पहुँचा रहा हो तो तुरन्त दूसरा या तीसरा नुस्सा आजमाएँ । अधिक से अधिक तीन मुल्कों में लाभ निश्चित है । इतने ज्यादा नुस्खे इसलिए हैं क्योंकि हर चीज उचित समय पर उपलब्ध नहीं होती । अनुपलब्धता की स्थिति में जो चीज पहले उपलब्ध है, उसे ही आजमाएँ । शरीर के कोष रात दिन क्षीण होते जाते हैं । आहार ही नये कोषों का निर्माण करता है । अतएव लोग दैनिक आहार के विषय में ज्ञान प्राप्त करें और शरीर को निरोगी बनाएँ । इसलिए मधुमेह रोगी को चाहिए की शरीर का संतुलन आहार से बनाने की कोशिश करें । जरूरत पड़ने पर औषधि वगैरह लें । मधुमेह रोगी किसी प्रकार का घाव होने पर तुरन्त ध्यान दें क्योंकि मधुमेह में घाव होने पर भरता नहीं है । इसलिए मधुमेह रोगी स्वय की चिकित्सा संबंधी ज्ञान भी रखे तो आसान रहता है ।
भारत में मधुमेह तेजी से फेल रहा है । अज्ञानता के कारण करोड़ो लोग इस रोग से ग्रस्त होकर दारुण दुःख एव विषाद पूर्ण जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं । आज पूरे विश्व में करीब 20 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं जिसमें 5 करोड़ तो सिर्फ भारत में हैं । मधुमेह के फलने-फूलने की सर्वाधिक संभावना वाला देश भारत ही है । भारत में आनुवांशिक जैविक पर्यावरण एवं सामाजिक अनुकुलन व्यवस्था मधुमेह के अनुरूप है ।
विषय
vii
ix
1
मधुमेह
2
मधुमेह (शुगर का कारण एवं लक्षण)
3
शरीर में शर्करा की क्रियाएँ
4
स्त्रियों में मधुमेह
7
5
बच्चे भी डायबिटीज की गिरफ्त में
9
6
मधुमेह में योग द्वारा चिकित्सा
12
मधुमेह के प्रकार
13
8
इन्सुलिन और इसका प्रयोग
15
ऐलोपैथीक दवाओं के सेवन से रक्त में शर्करा की मात्रा सामान्य से कम हो जाना
20
10
मधुमेह में पथ्य-अपथ्य
21
11
चमत्कारी मधुमेह अवरोधी आहार (आहार के द्वारा शर्करा नियंत्रित करना)
25
मधुमेह का पूर्वरूप प्रमेह (एवम् उपचार)
29
प्रमेह/मधुमेह (डायबिटीज) अनुभव
43
14
मधुमेह (डायबिटीज)-अनुभव (उपचार कथा)
60
डायबिटीज का उपचार संक्षेप में
85
16
वैद्यों के मधुमेहनाशक कई परीक्षित योग भाग- 1
87
17
वैद्यों के मधुमेहनाशक कई परीक्षित योग भाग-2
99
18
मधुमेह की प्रसिद्ध औषधियाँ (शास्त्रीय योग)
105
19
मधुमेह की आयुर्वेदिक पेटेन्ट चिकित्सा
114
मधुमेह में औषधोपचार
125
मधुमेह में उपयोगी औषधि व्यवस्था पत्र
142
22
मधुमेह की आहार चिकित्सा
146
23
पानी प्रयोग-पानी का चमत्कारिक इलाज
187
24
मधुमेह में होने वाले अन्य रोगों का इलाज (औषधीय प्रयोग)
189
मधुमेह और बहुमूत्र के योग
201
26
मधुमेह में चोट लगना, सूजन आ जाना, व्रण (घाव) की चिकित्सा
209
27
मधुमहनाशी स्वादिष्ट एव स्वास्थप्रद व्यंजन
225
28
जानने योग्य बातें (नये व पुराने मापतोल एवम् औषधि बनाने की सामान्य विधियों)
245
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