डॉ. नागेश्वर यादव जन्म: 01 नवम्बर, 1972 जन्म स्थान ग्राम वेलवाड़ी, पोस्ट माईलू बाजार, जिला पश्चिम कार्वी आंगलंग (असम)
शिक्षा: एम.ए. (प्रथम श्रेणी) गौहाटी विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, असम एम.फिल. मदुरैकामराज विश्वविद्यालय
पी-एच.डी. असम विश्वविद्यालय, शिलचर
व्यावसाय: अध्यापन (होजाई कॉलेज)।
लेखन-विधा : समीक्षा, कविता।
संपादित कृति : वर्णविभा, जनआकांक्षा, आजादी का अमृत महोत्सव और हिन्दी की विकास यात्रा तथा 20 से अधिक शोध आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
संप्रति : एसो.प्रो. एवं विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, होजाई (असम)।
संपर्क सूत्र : 9954695285
उपलब्ध साहित्येतिहास एवं आलोचनात्मक ग्रंथों के सर्वेक्षण से पता चलता है कि मराठी साहित्य के प्रभाव से हिन्दी में दलित साहित्य-लेखन का शुभारम्भ बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में हुआ। इस नवीन प्रस्फुटित साहित्य की वैचारिक कड़ियाँ एक ओर मानवता को लहूलुहान एवं त्रस्त करने वाली युगीन परिस्थितियों से रू-ब-रू कराती हैं, तो दूसरी ओर गौतम बुद्ध, महात्मा फुले, डॉ. अम्बेडकर, पेरियार और ललई यादव की मानवतावादी विचारधारा से सीधे-सीधे जोड़ती हैं। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अध्येयता इस बात से परिचित हैं कि वैदिक युग से लेकर आज तक वर्ण व्यवस्था, जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा लिंग के आधार पर समाज एवं राष्ट्र को परिचालित करने के लिए जिन नियमों, विधानों, रीति-रीवाजों एवं परम्पराओं का निर्माण किया जाता रहा है, उनसे समाज के मुख्यधारा के लोगों ही लाभान्वित हुए हैं, हाशिए के लोगों को तो सदैव उपेक्षा, अपमान और अवज्ञा के कड़वे घूँट ही पीना पड़ा है। क्योंकि इसी विषमतामूलक विधान ने समाज के एक वर्ग को धन, धरती, धर्म, शिक्षा और सम्मान से वंचित कर उसे पशु तुल्य जीवन जीने के लिए वाध्य करते आया है, तो भौतिक और मानसिक सुख-सुविधा के सभी साधनों, सामाजार्थिक क्षेत्र की सारी सहूलियतों को किसी खास वर्ग के लिए सुरक्षित कर दिया है
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