दाता दयाल महर्षि शिवव्रत लाल वर्मन(भारतीय साहित्य के निर्माता): Data Dayal Maharshi Shivvrat Lal Verman (Makers of Indian Literature)

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Item Code: NZA513
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Author: मुहम्मद अंसारुल्लाह : (Mohd. Ansarullah)
Language: Hindi
Edition: 1995
ISBN: 8172018428
Pages: 94
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 50 gm
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Book Description
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पुस्तक के बार में

 

दाता दयाल महर्षि शिवव्रत लाल वर्मन संत मत के पहले प्रचारक थे । देश-विदेश की अनेक भाषाओं से परिचित होने के बावजूद उन्होंने अपने पंथ के प्रचार प्रसार हेतु उर्दू भाषा में ज़माना साधु विज्ञानी आदि डेढ़ दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ निकालीं और असंख्य पुस्तकें प्रकाशित कीं । शायरी और गद्य की नई-पुरानी लगभग हर विधा में अपनी यादगार छोड़ी और उर्दू भाषा को अनेक विषयों से समृद्ध किया । शिकागो विश्वविद्यालय ने 1899 . में उन्हें डॉक्टर आफ़ लाज़की उपाधि से सम्मानित किया । प्रस्तुत पुस्तक में पहली बार दाता दयाल के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित कराने का विनम्र प्रयास किया गया है।

डॉ. मुहम्मद अंसारुल्लाह का जन्म 4 जनवरी,1936 को अलीगढ़ में हुआ । पहला शोध-आलेख नियाज़ फ़तेहपुरी के निगारमें 1955 में प्रकाशित हुआ । क़ाजी अब्दुल वदूद साहब से शोध का मार्गदर्शन प्राप्त किया । चार सौ से अधिक शोध-आलेख तथा डेढ़ दर्जन से ज़्यादा शोध-कृतियॉ प्रकाशित हो चुकी हैं । ऑल इंडिया मीर एकेडमी,लखनऊ से इम्तियाज--मीरपुरस्कार प्राप्त किया तथा मोतमदुद्दौला आग़ा मीरकृति पर बंगाल उर्दू एकेडमी,कलकत्ता से प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया है । आजकल उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रीडर के पद पर कार्यरत हैं।

 

भूमिका

 

दाता दयाल महर्षि शिवव्रत लाल वर्मन के नाम और काम से मेरा पहला परिचय उनके वृहद ग्रंथ कबीर जोगके माध्यम से हुआ जिसके आरम्भ में ही ये बहसें मौजूद हैं:

कबीर साहब आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गौतम बुद्ध जैसे महापुरुष से भी कहीं श्रेष्ठ दिखाई देते हैं...मालिक को मंजूर था कि हिंदुओं के पवित्र विचारों को मुसलमानों के जरिए फिर देश में फैलाया जाये...रज्जब साहब, घीसा साहब और इस प्रकार के बहुत-से आध्यात्मिक संत एक के बाद एक उठ खड़े हुए जो कबीर साहब के साथ-साथ चलना और हिंदू-मुसलमानों को चेताकर भाई चारे के सम्बन्धों में जकड़ देना अपना कर्तव्य समझते थे ।

 

इस रचना ने मेरे मन और मस्तिष्क को बहुत गहरे में प्रभावित किया । महर्षि जी की रचनाएँ हालाँकि इस वास्तविकता का तर्कसम्मत रूप से समर्थन करती हैं फिर भी दुनिया वालों के लिए उन्हें बार-बार यह घोषणा करनी पड़ी थी कि, “मेरे यहाँ द्वेष, संकीर्णता और हठधर्मी नहीं हैं । वे समस्याओं पर स्वयं विचार करते थे और स्वयं किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश करते थे और अपने विचारों को पूरी बेबाकी और साहसिकता के साथ अभिव्यक्ति देते थे । इसीलिए आरम्भिक दौर में उन्हें कड़े विरोधों का सामना करना पड़ा था । वे एक ओर अद्वितीय परम सत्ता के पक्षधर थे, जात-पाँत का विभाजन और स्वीकार नहीं था, प्रेम ही उनका मार्ग था, इसी मार्ग ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया कि आज देश के भीतरऔर बाहर उनके श्रद्धालुओं और अनुयायियों की संख्या लाखों-लाख है । वे अनेक भाषाओं के विद्वान थे और उर्दू गद्य और पद्य की लगभग सभी नई-पुरानी विधाओं में उनकी बड़ी संख्या में रचनाएँ उपलब्ध हैं । इन रचनाओं में दूरगामी और दीर्घ-कालिक प्रभाव की क्षमता विद्यमान हैं ।

विद्यार्जन और लेखन सम्बन्धी व्यस्तताओं के साथ-साथ महर्षि जी ने अपने श्रद्धालुओं की शिक्षा-दीक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । उनका कहना था कि मैं दुनिया में शिक्षक बनाकर भेजा गया हूँ । अपने पीछे उन्होंने अनुयायियों का ऐसा समुदाय छोड़ दिया जो उनकी शिक्षाओं को पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ाने के कार्य में संलग्न है । यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती हैं।

कि बौद्धिक और भौतिक स्तर पर आधुनिक भारत के निर्माण में महर्षि जी का एक विशिष्ट स्थान है ।

इस पुस्तिका के लेखन में माननीय श्री मोहन लाल नैयर (नई दिल्ली) ने मेरा विशेष मार्ग दर्शन किया । ठाकुर कमल सिंह जी (हनम कुंज) से अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त हुईं । श्री सौमित्र कुमार (इलाहाबाद) ने न सिर्फ तमाम आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई बल्कि पाण्डुलिपि का भी कृपापूर्वक अवलोकन किया । इन सज्जनों का सहयोग यदि न मिला होता तो इस पुस्तिका का लिखा जाना सम्भव नहीं था । मैं इनका हृदय से आभारी हूँ ।

 

 

सूची

भूमिका

आत्म-परिचय

1

जन्म, ठाकुर, वंश

1

2

जन्म, नाम, मुखाकृति, स्वभाव, माता-पिता से लगाव,

विवाह, रहन-सहन

4

3

शिक्षा, डॉक्टर ऑफ लाज, अफवाह, ज्ञान में लीन,

एक अलग राय

9

4

नौकरी, व्यवसाय, हेडमास्टरी

12

5

धार्मिक शिक्षा, ब्रह्म समाज, आर्य समाज, शालिग्राम जी, आर्य समाज में, महाशय, हरिद्वार में

17

6

उर्दू आर्य गजट, अलगाव, संत मत, मूर्ति पूजा’, साधु, अग्निकाण्ड, अन्य पत्र-पत्रिकाएँ

18

7

यात्रा, मेहर देहलवी, महर्षि

24

8

नई पत्र-पत्रिकाएँ, अख्तर साहब, उपन्यास-रचना, शाही लकड़हारा, कायस्थ-सभा

27

9

सोसाइटी, दाता दयाल, दक्षिण में, हितोपदेश

31

10

विभिन्न विधाएँ, आदोलन, राजनीति, धाम, पत्र-पत्रिकाएँ, वल्फ़

34

11

लाहौर में, यात्रा, शिक्षण-संस्थाएँ, मानद उपाधि, व्यस्तताएँ

38

12

अलीगढ़ में, इलाहाबाद में, प्राणांतक रोग, प्रस्थान, समाधि, अपनी मौत, मुनव्वर के कुते,, अपने बारे में

41

13

नंदू भाई, फकीर चंद, नैयर साहब, दयालानंद ली हंग चंग, दीपक, पीर-ए-मुगाँ, मानव दयाल, शिवमंगल सिंह

46

14

शैक्षिक सेवाएँ

50

15

पत्रकारिता, नारी शिक्षा, बाल साहित्य, प्रौढों के लिए,

वृत्तांत, विभिन्न रामायण, कबीर, जीवनियाँ, अनुवाद,

व्याख्याएँ, कोश, विविध शैक्षिक पुस्तकें, वचन, पत्र आदि, शायरी, अप्रकाशित रचनाएँ

54

16

अंग्रेजी लेखन, पंजाबी लेखन, तेलुगु लेखन,

70

17

नारा, धर्म, शिक्षाएँ

72

18

टिप्पणियाँ

75

19

स्रोत

82

 

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