ग्रन्थके इस भागमें कुछ देवताओंके नामजप किन विकारोंमें उपयुक्त हैं, यह एक ही दृष्टिक्षेपमें समझ पाने हेतु सूचीके रूपमें दिए हैं । इसका मुख्य कारण है - प्रत्येककी अपने उपास्यदेवताके प्रति या ॐ समान उपासना- जपके प्रति दृढ श्रद्धा होती है। विकार-निर्मूलन हेतु अपने उपास्यदेवताका नामजप या उपासना-जप करना हो, तो अधिक श्रद्धापूर्वक किया जाता है, इसलिए उससे विकार शीघ्र दूर होनेमें सहायता मिलती है।
मनुष्यकी देहमें पंचतत्त्वोंमेंसे कोई तत्त्व असन्तुलित होनेपर देहमें विकार उत्पन्न होते हैं। यह असन्तुलन दूर करने हेतु अर्थात उससे उत्पन्न विकार दूर करने हेतु उस तत्त्वसे सम्बन्धित नामजपके साथ ही मुद्रा और न्यास भी उपयुक्त हैं। नामजपसहित मुद्रा और न्यास करनेसे उपचारों का लाभ अधिक होता है। इस विषयमें भी विवेचन किया गया है।
'नामजपके उपचार कर अधिकाधिक रोगी शीघ्रातिशीघ्र विकारमुक्त हों', यह श्री गुरुचरणोंमें और विश्वपालक श्री नारायणके चरणोंमें प्रार्थना है !
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