निवेदन
इधर, कुछ वर्र्षोसे मुझे भगवद्विषयकी चर्चाके निमित्त गीताके श्लोकोंके आधारपर अथवा स्वतन्त्ररूपसे भी अपनी टूटी-फूटी भाषामें लोगोंके समक्ष कुछ कहनेका अवसर मिलता रहता है । मेरा यह कथन या प्रवचन सुनकर कुछ भाइयोंने मुझसे इन भावोंको लिपिबद्ध करनेका आग्रह किया और उन्होंने स्वयं ही कुछ व्याख्यानोंको लिख भी लिया । यद्यपि मेरे प्रवचनमें गीतादि शास्त्रोंके सिवा और कोई नयी बात नहीं, किंतु लोगोंका आग्रह देखकर और भगवान्के भावोंका किसी भी निमित्तसे अधिकाधिक प्रचार हो, वही अच्छा समझकर उन लिखे हुए व्याख्यानोंको संशोधित करके ' कल्याण ' मासिक पत्रमें छपनेके लिये भेज दिया गया । उन्हीं लेखोंका यह संग्रह लोगोंके विशेष आग्रहसे छापा जा रहा है ।
इन लेखोंमें साधारणतया भगवत्-सम्बन्धी भावोंकी ही कुछ चर्चा की गयी है । इनकी भाषा तो शिथिल है ही, पुनरुक्तियाँ भी कम नहीं हैं, किंतु भगवान्की चर्चामें पुनरुक्तिको दोष नहीं माना जाता, यही समझकर पाठकगण इनमें जो भी चेतावनी, वैराग्य, नामजप, रूपचिन्तन, भक्ति और भगवत्-स्वरूपकी जानकारी आदि बातें उनको अच्छी जान पड़े, उन्हींको यदि आचरणमें लानेका प्रयत्न करेंगे तो मैं अपने ऊपर उनकी बड़ी कृपा समझूँगा । आशा है, विज्ञजन मेरी धृष्टता क्षमा करेंगे ।
विषय-सूची
विषय
पृं.सं
1
समयका मूल्य और सदुपयोग
7
2
कर्मयोग
16
3
वैराग्य
19
4
गीतामें भक्ति और सके अधिकारी
38
5
भगवद्भक्तिका क्रय
62
6
सब नाम-रूपोमें एक ही भगवान्
75
भगवत्तत्त्व
79
8
भगवद्भजनका स्वरूप
115
9
गीता और रामायणके क्रियात्मक
प्रचारकी आवश्यकता
125
10
संत और उसकी सेवा
129
11
सुख कैसे मिले?
140
12
बालहितोपदेश-माला
146
13
बार-बार नहिं पाइये मुनष-जनमकी मौज
154
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