तो दोस्तों, कैसा लगा किताब का टाइटल पढ़कर? सफल व्यक्ति की यात्रा, कहानियों तो आपने बहुत पड़ी होगी पर असफल व्यक्ति की यात्रा? ये तो पहली बार सुन रहा हूँ। एक दम सही कह रहे हैं आप। पर आज मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। आज से पहले क्या कभी आपने गम्भीरता से सोचा, हो गम्भीरता से कि असफल व्यक्ति क्या होता है, क्या उसकी भी कोई श्रेणी हो सकती है या फिर असफल व्यक्ति की परिभाषा क्या है, असफल व्यक्ति किसे कह सकते हैं, इस सवाल का जवाब क्या हो सकता है... आज से पहले आपने कभी सोचा...? शायद नहीं। गम्भीरता से कभी नहीं सोचा होगा। शायद ये पुस्तक इन सवालों का जवाब हो। अब पुस्तक पढ़कर आप खुद निर्णय करें और इसके टाइटल को जस्टीफाइड करें।
एक असफल व्यक्ति की यात्रा... एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सफल होने की छटपटाहट को अंगीकृत कर निरंतर आगे बढ़ता रहा... बढ़ता रहा। और आखिरी छोर तक मंजिल तलाशता रहा। मंजिल मिली या नहीं, ये तो उसे नहीं मालूम पर उसकी आगे बढ़ने की तीव्र लगन, एक सच्ची यात्रा बन गयी जो आत्मकथा के रूप में आपके सामने है।
पर दोस्तो, मेरा आपसे एक सवाल है। क्या ये सच नहीं है कि सफलता की कोई मंजिल, मेरा मतलब आखिरी मंजिल होती ही नहीं। सफलता तो एक दिशा में, एक लक्ष्य पाने की दिशा में ईमानदारी से किये गये निरंतर प्रयास का ही नाम है या यों कहिये कि परिणाम है जिसे कुछ लोग मंजिल भी कह सकते हैं, घोड़ी देर के लिये। पर आगे ये भी तो होता है कि प्रयास करके आज एक मंजिल पा भी ली है तो आगे बढ़ने की लालसा में, एक नई मंजिल पाने की आस घर कर लेती है यानि की मंजिल भी बदल जाती है और इस प्रकार मंजिल बदलने के साथ-साथ प्रयास का निरंतर सिलसिला जारी रहता ही आपको भी नज़र आयेगा बशर्ते आप शिद्दत और पूरी ईमानदारी के साथ अपने लक्ष्य और अपने सपनों को पूरा करने में निरन्तर लगे रहे हो। अब आपको निश्चित ही लग रहा होगा कि इस प्रेरणादायक पुस्तक को अवश्य खरीद लेना चाहिए।
ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की आत्मकथा है जिसने सपना तो देखा था 20 की उम्र में, पर 60 वर्ष के पूर्ण होने पर भी उन सपनों को कोई उड़ान नहीं दे सका। पर हाँ, बीच-बीच में पंख फड़फड़ाकर उड़ने की कोशिश कभी कभार की। पर उसने एक काम जरूर किया कि इन 40 वर्षों में अपने सपनों को कभी मुरझाने नहीं दिया। कभी बूढ़ा नहीं होने दिया।
परिस्थितियों ने उसे अपने मकड़जाल में इस कदर जकड़ रखा था कि मन कसमसा रहा था, चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहा था। पर इन 40 वर्षों में वो अपने सपनों को लगातार सींचता रहा, मजबूती प्रदान करता रहा ये सोचकर कि रात जितनी अँधियारी होगी, रोशनी मिलने पर उस रोशनी का मज़ा भी कुछ और ही होगा। यही सोच उसकी ताकृत बनती गयी। समय के साथ उसने कभी अपने सपनों को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया, मुरझाने नहीं दिया। क्योंकि उसका मानना था कि यदि लक्ष्य निर्धारित है तो उम्र कभी आड़े नहीं आती। और फिर एक दिन उम्र को धता बताते हुए वो व्यक्ति 60 वर्ष पूर्ण कर लम्बी सरकारी सेवा से सेवानिवृत्ति उपरांत इकसठवें वर्ष में अपने 40 वर्ष पुराने सपनों को पूरा करने के लिए एक सुव्यवस्थित जीवन की सुख सुविधा को छोड़कर एक अन्जानी यात्रा पर निकल पड़ा, अंजानी जगह, अंजान लोग जहाँ उसकी उँगली थामने वाला कोई नहीं था। पर वो बराबर चलता चला जा रहा था और उसकी ये यात्रा आज भी जारी है, जारी इसलिए कि उसे लगता है कि सफलता की कोई मंजिल नहीं बल्कि सफलता की राह में निरन्तर प्रयास करते जाना ही सफलता है।
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