विनम्र निवेदन
जबसे मेरे ज्ञानयोग सम्बन्धी लेखोंका संग्रह ज्ञानयोगका तत्त्व प्रकाशित हुआ है, तभीसे कुछ लोगोंका यह आग्रह है कि प्रेम सम्बन्धी लेखोंका भी एक अलग संग्रह प्रकाशित किया जाय, जिससे प्रेमपथके पथिकोंको एकत्र ही प्रेमसम्बन्धी पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो सके । इसलिये इस पुस्तकमें प्रेमसम्बन्धी २३ लेखोंका संग्रह किया गया है । ये सभी लेख पहले कल्याण में और बादमें तत्त्वचिन्तामणि आदि पुस्तकोंमें भी प्रकाशित हो चुके हैं । इन लेखोंमें प्रेमके वास्तविक स्वरूप और उसकी प्राप्तिके विविध साधनोंका वर्णन तो है ही, साथ ही श्रद्धा और प्रेम, प्रेम और शरणागति, प्रेम और समता, भगवत्प्रेम और भगवत्सुहृदताका तत्त्व भी भलीभांति समझाया गया है । एवं भगवान्के प्रति महाराज दशरथ, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सीता और भक्त सुतीक्ष्ण आदिका तथा श्रीरुक्मिणीजी, श्रीराधाजी, द्रौपदी, मीराबाई और गोपियोंका एवं भक्त प्रवीर आदि भगवत्प्रेमीजनोंका, जो अलौकिक आदर्श और अनुकरणीय प्रेमभाव था, उसका भी विवेचनपूर्वक स्पष्टतया दिग्दर्शन कराया गया है । यद्यपि इन लेखोंमें प्रेमके विषयकी पुनरुक्ति दिखायी देती है, किन्तु वह अनिर्वचनीय प्रेमतत्त्व साधककीसमझमें भलीभांति आ जाय, इसलिये प्रेमके विषयको बारबार सुनपढ़कर समझ लेना अत्यन्त आवश्यक होता है अत इस पुनरुक्तिको दोष नहीं समझना चाहिये । एवं प्रेमको प्राप्त करनेके इच्छुक साधक उचित समझें तो इन लेखोंको पढने और मनन करनेकी कृपा करें और तदनुसार अपने जीवनको विशुद्ध भगवत्प्रेममय बनाने का प्राणपर्यन्त प्रयत्न करें यही मेरा उनसे विनम्र निवेदन है ।
विषय सूची
1
सभी साधनोंमें वैराग्यकी आवश्यकता तथा प्रेमा भक्तिका निरूपण
5
2
संसार से वैराग्य और भगवान्में प्रेम होनेका उपाय
25
3
सर्वोत्तम सत्संगका स्वरूप और उसकी महिमा
30
4
श्रीप्रेम भक्ति प्रकाश
40
रामायणमें आदर्श भ्रातृ प्रेम
53
6
अनन्य प्रेम ही भक्ति है
133
7
प्रेमका सच्चा स्वरूप
137
8
प्रेम और शरणागति
153
9
श्रद्धा विश्वास और प्रेम
164
10
अनन्य प्रेम और परम श्रद्धा
177
11
प्रेम और समता
187
12
शरणागति और प्रेम
195
13
अनन्य भक्ति और भरत आदिका प्रेम
202
14
प्रेमपरवश भगवान्की लीला
216
15
अनन्य विशुद्ध भगवत्प्रेम और भगवान्की सुहृदता
232
16
प्रेम साधन
247
17
गोपियोंका विशुद्ध प्रेम अथवा रासलीला का रहस्य
256
18
तुम मुझे देखा करो और मैं तुम्हें देखा करूँ
278
19
भगवद्दर्शनकी उत्कण्ठा
280
20
श्रद्धा, प्रेम और तीव्र इच्छासे भगवत्प्राप्ति
286
21
प्रेमसे ही परमात्मा मिल सकते हैं
303
22
भगवत्प्रेमकी प्राप्ति और वृद्धिकेविविध साधन
314
23
सबसे भगवद्बुद्धिपूर्वक समान और निष्काम प्रेम करनेसेभगवत्प्राप्ति
342
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