पुस्तक के विषय में
श्री प्रभाकर केशवराव मोतीवाले जिन्हे आत्मीयजन "बापू" के नाम से जानते है , एक सहज, सरल, सौम्य, प्रेममय, चैतन्य व्यक्तित्व जिनकी सागर समान गहरी आँखे उनके व्यक्तित्व का सतत भं करती रहती है |
मात्र ७ वर्ष की अल्पायु में ही आपको अपने पूर्व जन्मो की घटनाएँ समझने आने लगी |
सन १९७७-७८ में साधना तासीर पर रहते हुए सूक्ष्म जगत की दिव्य आत्माओ के संपर्क में आए | सूक्ष्म जगत के संचालनकर्ता परम गुरु श्री कालनमेजी के मार्गदर्शन एवं सूक्ष्म जगत की दिव्य आत्माओ के सहयोग, सतसंग एवं आचरण से आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त होते रहे है | इसके फलस्वरूप १९८७-८८-८९ में "NOT KNOWING STATE" में पदार्पण हुआ | इसी समय सन ८७ से ९० के मध्य अब तक लिए गए अलग अलग जन्मो के विषय में जाना |
"NOT KNOWING STATE" की प्रारंभिक अवस्था में Physical Transformation हुआ | इसके परिणाम स्वरूप इन्द्रिजन्य एवं मानसिक परिवर्तन हुए | सन २००० में Physical Body का Subtle Body में Transformation होने लगा जो सन २००६-२००७ में पूर्णत्व को प्राप्त हुआ | इसके अंतर्गत अनेक क्रियाएँ, मुद्राएँ एवं सप्त चक्र जागरण घटित हुआ, कुण्डलिनी जागरण की क्रिया संपन्न हुई | इसके अंतिम पायदान के रूप में खेचरी मुद्रा, ब्रह्मरस पण घटित हुआ | कुण्डलिनी जागरण के परिणाम स्वरुप "प्रकृतिस्थता" की अवस्था में आए |
आपके द्वारा सत्य के अन्वेषण एवं साधना के दौरान जो स्वानुभूति, साक्षात्कार हुआ उसे साधको के हितार्थ शब्दों के माध्यम से पुस्तको के रूप में एवं सूक्ष्म चित्रांकन (Astral Images ) के माध्यम से मुद्राओ द्वारा कुण्डलिनी जागरण प्रक्रिया को साधको एवं जान मानस के समक्ष रखा है |
अत्यंत उलझाव भरे कठिन पथरीले साधना पथ में साधको का मार्गदर्शन एवं प्रेरणादायक उत्साहवर्धन आपके द्वारा संभव हुआ है जो मुमुक्षुओं को अत्यंत लाभप्रद है | सभी जिज्ञासाओं का शमन करते हुए साधको के स्वहितार्थ मार्गदर्शन जारी है |
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