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विमर्श का स्त्री पक्ष: मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास- The Female Side of the Discussion: Maitrayi Pushpa's Novels

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Item Code: HAF549
Author: Rani Gupta
Publisher: HANS PRAKASHAN, DELHI
Language: Hindi
Edition: 2023
ISBN: 9788196565749
Pages: 251
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 416 gm
Book Description
पुस्तक परिचय

मैंने बारह उपन्यास लिखे हैं। जैसे जैसे सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक परिदृश्य से मेरा सामना हुआ तो लगा कि यहाँ कुछ परिस्थितियों से जूझना मुमकिन तो है लेकिन जीतना आसान नहीं। मगर आसान रास्तों की मुसाफ़िर कम से कम स्त्री तो नहीं रही। वह चाहे रानी महारानी ही क्यों न हो ।रानी महारानियों पर उनके ऐशो-आराम के रूप में ही इतनी जकडबन्दी होती है कि औरत तीबा बोले। ऐसा न होता तो औरत बागी हुयी होती ? गुलाम बागी हुये बिना आज़ाद नहीं होता। अंग्रेजों की हुकूमत से बगावत करके हमारा देश आज़ाद हुआ। यह सब जानने समझने के बाद मेरे मन में बार-बार यही सवाल उठता रहा कि हमारे देश की आज़ादी में क्या स्त्रियों की आज़ादी भी शामिल है? इस प्रश्न पर लोगों का सामूहिक विचार यही मिलेगा कि स्वतंत्रता तो सभी के लिये आई है। बेशक माना भी यही जाता है।

मेरा मन शंकालु है, नहीं मानता कि वह स्त्रियों की भी आज़ादी थी। अगर अंग्रेज़ी राज हमारे ऊपर क़ाबिज़ था तो वहाँ स्त्री पर दोहरी गुलामी गुजर रही थी। एक देश के शासक की तो दूसरी घर के शासक की। यह भी कि बग़ावत शासन से की जा सकती है, घरेलू नियमों से नहीं। मैं यही देखा और महसूस किया किया कि हम स्त्रियाँ पुरुषों की गुलाम है । गुलामी को ढकने के लिये समाज ने परिवार का सुनहरी आवरण चढ़ा दिया है। इस आवरण के साथ स्त्री को ममता और गरिमा के साथ साथ पतिव्रत का पाठ पढ़ाया गया। मैं कई ग्रंथ खंगाल डाले मगर स्त्री-कर्तव्यों की सूचियाँ मिलीं । अधिकार भी थे मगर त्याग के नाम पर बलि चढ़े हुये ।

आज़ाद भारत की यह कैसी नागरिक है जिसको स्त्री कहा जाता है। मेरे मन को यही सवाल मथता । मैं अपनी व्यथा कहना चाहती थी मगर किस से? उन सब से जो स्त्रियाँ थीं, स्त्रियाँ हैं। कैसे कहूँ ? उपाय सूझा कलम के ज़रिये। और कलम ने ऐसा साथ दिया कि वे मामूली औरतें काराज़ पर उतर कर समाज के ठेकेदारों के लिये चुनौतियाँ बन गयीं। लेकिन चुनौती हर मालिक के लिये ख़तरा लगती है। मालिक पुरुषों ने और पुरुषों की ताबेदार स्त्रियों ने हमारे लिये ख़तरनाक फ़रमान जारी कर दिये। यह वक्त लगभग ऐसा था जैसे हम "सीस उतारै भुइ धरै " की सजा से गुजर रहे हों। लेकिन अच्छा भी लगा कि लेखकीय हथौड़े की चोट असर कर गयी । लगभग सभी उपन्यासों का तेवर यही रहा, भले ही हर नायिका के सामने स्थितियाँ भिन्न थीं ।

लेखक परिचय

एम ए हिंदी, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी पीएचडी हिंदी ज्योति विद्या पीठ महिला विश्वविद्यालय जयपुर प्रकाशित रचनाएं- सृजन महोत्सव त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी रचनाएं (दिखावा) (बेपनाह प्यार), संगिनी मासिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी रचनाएं (भारत भूमि) (मेरी अभिलाषा), लक्ष्यभेद हिंदी ई पत्रिका में प्रकाशित मेरी रचनाएं-(स्वार्थ का सुख) (एहसास) (जिंदगी), काव्य सुमन साझा काव्य संग्रह में प्रकाशित मेरी रचनाएं (पिता) (नारी शक्ति) काव्य सलिल साझा काव्य संग्रह में प्रकाशित मेरी रचनाएं- (मों का आंचल) (रिश्तों का गठबंधन), मधुशाला साहित्यिक परिवार ई साझा काव्य संकलन में प्रकाशित मेरी रचना (तुम), Life is like a fish A anthology book में प्रकाशित मेरी रचना (व्हाट्सएप का लास्ट सीन), "ख्यालों के मोती "साझा काव्य संग्रह का सम्पादन, "साहित्य डायरी " साझा काव्य संग्रह का सम्पादन, साझा काव्य संग्रह " साहित्य सरिता" में प्रकाशित मेरी रचनाएं (बुलन्द हौसले), (हे ईश्वर), शाश्वत सृजन में प्रकाशित मेरी रचना (सतरंगी पिया), वनिता मैगजीन में प्रकाशित मेरी रचनाएं, गृह लक्ष्मी मैगजीन में प्रकाशित मेरी रचनाएं एवं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।

पुरस्कार-सम्मान- अंतरराष्ट्रीय हिंदी गौरव सम्मान नेपाल (2022)

राष्ट्र स्तरीय नारी गौरव सम्मान नवसारी गुजरात (2023)

प्रस्तावना

किसी भी रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में उसके पारिवारिक परिवेश, वंश, कुल गोत्र एवं शैक्षणिक अभ्यास एवं विचारधारा दर्शन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। युगीन प्रभावों एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को भी व्यक्तित्व एवं कृतित्व निर्माण में अनदेखा नहीं किया जा सकता है। साहित्यकार संवेदनशील प्राणी होता है, इसलिए उसके पारिवारिक प्रभाव एवं युगबोधी संदर्भ चेतन तथा अवचेतन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य का कैनवास ग्राम अंचल, गर्ल्स हॉस्टल कोर्ट कचहरी, पंचायत, खेत-खलिहान और नौकरी पेशा महिलाओं की वीथियो तक ही सीमित नहीं है बल्कि ऑपरेशन थिएटर में एक उपभोक्ता और व्यवसायी जिन्स बना देने वाला शहरी जीवन व महानगरीय जीवन तक व्याप्त है। उन्होंने हिंदी कथा साहित्य में मौलिकता एवं गुणात्मकता की दृष्टि से असाधारण योगदान दिया है। उन्होंने जितने सशक्त आत्मकथा, निबंध तथा संस्मरण आदि लिखा है उतना ही सशक्त काम कहानियाँ और उपन्यास में किया है और हिंदी साहित्य के कोष को समृद्ध बना दिया है।

नारी' शब्द 'नृ' से निष्पन्न हुआ है।' नृधर्मया नारी, नरस्य अपी नारी। जिसका प्रयोग स्त्रीलिंगवाची मादा प्राणी के प्रतीक के रूप में होता है। यास्क के अनुसार 'नरा-नृत्यन्ति कर्मसु' अर्थात कामपूर्ति के लिए नर गतिशील (नृत्य करता) रहता है। नर कि काम भावना में सहयोगी होने के कारण स्त्री को 'नारी' कहा जाता है। एतरेय ब्राह्मण में 'नारी' शब्द का अर्थ है 'पुर्ममसौ वै नरः स्त्रियो नार्यः। अर्थात् मनुष्य के लैंगिक सहयोगी के रूप में नारी का सर्जन हुआ है। वैदिक युग से लेकर आज तक नारी के लिए 'स्त्री' शब्द सबसे अधिक प्रयोग हुआ है। 'स्त्री' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वैदिक युग के 'ऋग्वेद ग्रंथ' में मिलता है - 'स्त्री-सूत्री-जन्म दात्री'। अर्थात वह परिवार की सूत्रधार होने के कारण स्त्री कहलाती है, जन्म देने वाली होने के कारण जन्मदात्री कहलाती है।

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