'राग दरबारी ' के प्रख्यात रचनाकार श्रीलाल शुक्ल का यह उपन्यास इस धारणा का खंडन करता है कि अपराध-कथाएँ साहित्यिक नहीं हो सकतीं!
दुर्गादास नाम के व्यक्ति को एक हत्या के जुर्म में उम्रकैद हो गई है और इसकी बिंदु से शुरू होता है यह दिलचस्प उपन्यास ! इसमें जिस बहुरंगी संसार की रचना हुई है, वहाँ वास्तविक संसार जैसा ही उलझाव है और धर्म, प्रेम तथा अपराध जैसी तर्कातीत वृत्तियों में बँधी ही जिंदगी इस उलझाव से निरंतर जूझती रहती हैं ! इसकी सबसे बड़ी समस्या वह हत्या नहीं, जो हो चुकी बल्कि उसके बाद मानवीय संबंधो की हत्या के प्रयास और उन संबधों के बचाव का दूंदू है! वास्तव में अपराध-कथा के-से प्रवाह वाली यह कथाकृति एक वृहत्तर जीवन की कथा है जो पाठक को सहज अवरोह के साथ अंतत: मानवीय नियति के गहराइयों में उतार देती है! कहने की आवश्यकता नहीं कि हिंदी कथा-साहित्य में इस उपन्यास का एक अलग स्थान है!
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