नम्र निवेदन
धर्मका फल है संसारके बन्धनोंसे मुक्ति और भगवत्यप्राप्ति । इस धर्माचरणका ज्ञान पुराणोंके श्रवण मनन आदिसे भलीभांति हो सकता है । वेदोंके समान ही पुराण भी धर्म अर्थ काम मोक्ष इस चतुर्विध पुरुषार्थके उपदेशक हैं । पुराणोंमें भी पद्यपुराणका स्थान विशिष्ट है । इसे श्रीभगवान्के पुराणरूप विग्रहका हृदय माना गया है हृदयं पद्मसंज्ञत्कम् । वैष्णवोंका तो यह सर्वस्व ही है ।
पद्म पुराण में भगवद्भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तपश्चर्या, देवाराधन, तीर्थ, व्रत, दान, धर्म आदि अनेक विषयोंके विशद विवेचनके साथ अनेकों शिक्षाप्रद उपाख्यान और कल्याणकारी कथाएँ हैं जिनके आदर्श चरित्र सत्य, धर्म और नीतिका गहन शिक्षण देनेके साथ आध्यात्मिक चेतना जाग्रत् करके आत्म कल्याणका मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
प्रस्तुत पुस्तकमें पद्मपुराण सृष्टिखण्डसे संकलित पाँच कथाओंका संग्रह है इनमें उच्चकोटिके सरल और प्रेरणाप्रद चरित्रोंके माध्यमसे साररूपमें यह बतलाया गया है कि सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि विशेषरूपसे किन किन स्थानोंपर निवास करते हैं । गीताप्रेससे प्रकाशित पद्यपुराणके संक्षिप्त हिन्दी रूपान्तरका सम्पादन परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा सरल, सुबोध भाषा शैलीमें बहुत पहले किया गया था (जो ग्रन्धाकारमें आज भी उपलब्ध है), उसीसे ली गयी मूक चाण्डाल, तुलाधार वैश्य, नरोत्तम ब्राह्मण आदिकी सुप्रसिद्ध शिक्षाप्रद कथाओंका यह संकलन सबके हितलाभके लिये प्रकाशित किया गया है ।
इस पुस्तकके पठन पाठन और मननद्वारा इन महान् चरित्रोंकी विशेषताओंका अनुसरण एवं धारण करनेसे जीवनमें निश्चित परिवर्तन हो सकता है ऐसा हमारा विश्वास है । सरल, सुबोध भाषामें प्रस्तुत यह पुस्तक सभी वर्गके पाठकोंके लिये अत्यन्त उपयोगी है । अतएव सभी लोगोंको इससे अधिकाधिक लाभ उठाना चाहिये ।
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