संयोग से समाधि की ओर (जीवन-ऊर्जा का रूपांतरण): From Intercourse to Meditation

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Item Code: NZA632
Author: Osho Rajneesh
Publisher: OSHO MEDIA INTERNATIONAL
Language: Hindi
Edition: 2013
ISBN: 9788172610425
Pages: 352 ( 17 B/W Illustrations)
Cover: Hardcover
Other Details 8.5 inch X 7.0 inch
Weight 720 gm
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Book Description
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पुस्तक के विषय में

जो उस मूलस्रोत को देख लेता है यह बुद्ध का वचन बड़ा अद्भुत है: वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है। वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है।

जिसको मैंने संभोग से समाधि की ओर कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं।

एक तो रति है मनुष्य की स्त्री और पुरुष की । क्षण भर को सुख मिलता है। मिलता है? या आभास होता है कम से कम। फिर एक रति है, जब तुम्हारी चेतना अपने ही मूलस्रोत में गिर जाती है; जब तुम अपने से मिलते हो।

एक तो रति है दूसरे से मिलने की। और एक रति है अपने से मिलने की। जब तुम्हारा तुमसे ही मिलना होता है, उस क्षण जो महाआनंद होता है, वही समाधि है। संभोग में समाधि की झलक है; समाधि में संभोग की पूर्णता है।

मैं आपसे कहना चाहता हूं कि काम दिव्य है, डिवाइन है। सेक्स की शक्ति परमात्मा की शक्ति है। इसलिए तो उससे ऊर्जा पदा होती है और नये जीवन विकसित होते हैं। वही तो सबसे रहस्यपूर्ण शक्ति है, वही तो सबसे ज्यादा मिस्टीरियस फोर्स है। उससे दुश्मनी छोड़ दें।

अगर आप चाहते हैं कि कभी आपके जीवन में प्रेम की वर्षा हो जाए तो उससे दुश्मनी छोड़ दें। उसे आनंद से स्वीकार करें। उसकी पवित्रता को स्वीकार करें और खोजें। उसमें और गहरे और गहरे जाएं तो आप हैरान हो जाएंगे। जितनी पवित्रता से काम की स्वीकृति हो, उतना ही काम पवित्र होता चला जाता है। और जितनी अपवित्रता और पाप की दृष्टि से काम से विरोध होगा, काम उतना ही पापपूर्ण और कुरूप होता चला जाता है।

जब कोई अपनी पत्नी के पास ऐसे जाए, जैसे कोई मंदिर के पास जाता है; जब कोई पत्नी अपने पति के पास ऐसे जाए, जैसे सच में कोई परमात्मा के पास जाता है क्योंकि जब दो प्रेमी काम के निकट आते हैं, जब वे संभोग से गुजरते हैं, तब सच में ही वे परमात्मा के मंदिर ही से गुजरते हैं। वही परमात्मा काम कर रहा है, उनकी उस निकटता में। वही परमात्मा की सृजन शक्ति काम कर रही है।

संभोग के क्षण में जो प्रतीत है, वह प्रतीत दो बातों की है: टाइमलेसनेस और ईगोलेसनेस। समय शून्य हो जता है और अहंकार विलीन हो जाता हक। समय शून्य होने से और अहंकार विलीन होने से हमें उसकी एक झलक मिलती है, जो कि हमारा वास्ताविक जीवन है।

लेकिन क्षण भर की झलक और हम वापस अपनी जगह खड़े हो जाते हैं। और एक बड़ी ऊर्जा, वैद्युातिक शक्तियों का प्रवाह इसमें हम खो देते हैं।

फिर उस झलक की याद, स्मृति में मन में पीड़ा होती रहती है। हम वापस उस अनुभव को पा लेना चाहते हैं। और वह झलक इतनी छोटी है, एक क्षण में खो जाती है। ठीक से उसकी स्मृति भी नहीं रह जाती कि क्या थी वह झलक, हमने क्या जाना था?

बस एक धुन, एक ऊर्जा, एक पागल प्रतीक्षा रह जाती है। फिर उस अनुभव को पुन:पुण: पाने के लिए जीवन भर आदमी इसी चेष्टा में संलग्न रहता है। लेकिन वह झलक एक क्षण से ज्यादा नहीं टिक सकती है।

संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है। और संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे, जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के मिलनी शुरू हो जाएगी। उस दिन संभोग से आप मुक्त हो जाएंगे, सेक्स से मुक्त हो जाएंगे।


अनुक्रम

संभोग से समाधि की ओर

1

संभोग परमात्मा की सृजन-ऊर्जा

11

2

संभोग अहं-शून्यता की झलक

31

3

संभोग समय-शून्यता की झलक

51

4

समाधि : अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव समाधि

71

5

संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन

87

युवक और यौन

1

यौन जीवन का ऊर्जा-आयाम

111

2

युवक और यौन

133

3

प्रेम और विवाह

147

4

जनसंख्या विस्फोट

165

5

विद्रोह क्या है

191

6

युवक कौन

213

7

युवा चित्त का जन्म

227

8

नारी और क्रांति

249

9

नारी-एक और आयाम

267

क्रांतिसूत्र

1

सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति

285

2

भीड़ से, समाज से-दूसरों से मुक्ति

299

3

दमन से मुक्ति

317

4

न भोग न दमन- वरन जागरण

333


 

 

 

 

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