पुस्तक के विषय में
भारत की स्वाधीनता के लिए ग़दर आदोलन कई दृष्टियों से एक अद्भुत संघर्ष था । यह उत्तर अमरीका में पंजाब से पहुंचने वाले प्रवासी सिख कामगारों और लाला हरदयाल जैसे कुछ निर्वासित क्रांतिकारियों के साझा प्रयासों से 1913 में शुरू किया गया । उन्होंन भारत कै लिए स. रा. अमरीका जैसी पूर्ण स्वाधीनता का स्वप्न देखा था । विश्वयुद्ध के प्रारंभ मैं इनमें से हजारों लोग स्वदेश लौटे जो 1857 के ग़दर जैसी सशस्त्र क्रांति में अंग्रेजी राज का उन्मूलन करना चाहते थे । प्रस्तुत पुस्तक इस आदोलन के जन्म ओर विकास का संक्षिप्त इतिहास है, जो इसके अंतर्राष्ट्रीय आयाम, देशभक्ति की आसक्ति, सीमन और संभ्रम, अकल्पनीय उत्सर्ग और इसकी विरासत को उद्घाटित करती है जिसने भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों कौ प्रेरित किया ।
हरीश के. पुरी अमृतसर के गुरुनानक देव विश्वविद्यालय की डा. वी. आर. आम्बेडकर पीठ के अध्यक्ष और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पद सै सेवानिवृत हुए हैं । उन्होंने राजनैतिक आदोलनों, संघवाद, दलितों, विधर्मिता, जाति, धम और आतंकवाद की राजनीति आदि क्षेत्रों मै व्यापक शोधकार्य करके अपनी कृतियां प्रकाशित की हैं । उनकी पुस्तक हें-ग़दर मूवमंट आइडियोलॉजी, आर्गेनाइजेशन एंड संटजा, टेररिज्म इन पंजाब, अंडरस्टेडिंग ग्रासरुट्स रियलिटी (सह लेखक), दलित्स इन रीजनल कांटेन्क्स्ट (संपादन) और सोशल एंड पॉलिटिकल मूवर्मेंटूस (संयुक्त संपादक) प्रकाश दीक्षित वरिष्ठ लेखक एवं अनुवादक हैं।
आमुख
2013 में ग़दर आदोलन की स्थापना को पूरे सौ साल बीत जाएंगे । लेकिन हम पाते हैं कि शिक्षित जनों में भी इस आदोलन, हरदयाल और सोहन सिंह भाखना जैसे इसके दिग्गज नेताओं और भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में इस आदोलन के योगदान के संबंध में जानकारियां बहुत कम हैं । जब नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन प्रोफ़ेसर विपिन चंद्रा ने सामान्य पाठकों की दृष्टि से ग़दर आदोलन पर एक पुस्तक तैयार करने को कहा, तो वह चाहते थे कि इसे गहन अनुसंधान पर आधारित ऐसी पुस्तक होना चाहिए जो संघर्ष की वास्तविक चेतना को व्यक्त कर सके । मैंने अपने पहले के कार्य, ग़दर मूवमेंट आइडियोलॉजी आर्गेनाइजेशन एड स्ट्रेटजी(1983,संशोधित संस्करण 1993) से बहुत कुछ लिया है, और आगे अन्य अध्ययन तथा चिंतन कालाभ भी उठाया है । नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा इसके प्रकाशन से इस आदोलन की गाथा काफ़ी बड़ी संख्या में पाठकों तक पहुंचने की आशा की जा सकती है और निश्चय ही उनमें से कुछ ऐसे भी होंगे जो इस संबंध में अधिक जानना चाहेंगे-यह भारत के उन स्वाधीनता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने की मेरी शैली है जिन्होंने एक न्यायोचित और संवेदनशील समाज की रचना को स्वप्न देखा था ।
यहां कुछ महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना प्रासंगिक होगा । सबसे पहले मुझे विपिन चंद्रा का आभार व्यक्त करना चाहिए क्योंकि उनके आत्मीय प्रोत्साहन के बिना मैं इस पुस्तक को प्रस्तुत नहीं कर पाता । मुझे हेरोल्ड ए. गोल्ड, सावित्री साहिनी, आयशा जलाल के हाल ही के प्रकाशनों और मायआ रामनाथ के पीएच. डी. के लिए लिखे गए शोध प्रबंध (ड्यूक विश्वविद्यालय) से बहुत सहायता मिली । संदर्भ-सूची में यथास्थान इसका उल्लेख है । ई.वी. एन. दत्ता निरंतर प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, इसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं । मुझे हरशरण सिंह, अमरजीत चंदन और राहुल पुरी के सहयोग का उल्लेख भी करना चाहिए, जिन्होंने पांडुलिपि को पढ़ा और इसके संपादन में मुझे सहायता दी । चित्रों के लिए मैं चंदन, सोहन पूनी और सीता राम बंसल के उदार सहयोग का आभार व्यक्त करता हूं । मेरी संगिनी विजय पुरी से सदा की तरह मुझे जो समर्थन मिला है, उसके लिए गहन कृतज्ञता को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं । और अंत में नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के संपादक बिनी कूरियन और उनके सहयोग के लिए मैं धन्यवाद देता हूं जिनके समर्पण और व्यवसायिक कुशलता से यह पुस्तक प्रकाशित हो सकी है ।
अनुक्रम
नौ
पृष्ठभूमि
ग्यारह
1
भारतीय प्रवासियों का सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
2
नई दुनिया में जीवन आवेग, अनादर और अलगाव
15
3
कनाडा-बहिष्कार का प्रतिरोध
31
4
संयुक्त राज्य अमरीका-भारतीय क्रांतिकारियों
की राजनीतिक तैयारी
46
5
ग़दर आदोलन का जन्म
60
6
ग़दर प्रचार और विचार
72
7
कामागाटामारू की दुखद घटना
87
8
सशस्त्र विद्रोह के लिए भारत चलो
98
9
असफल क्रांति-बलिदानों की गाथा
111
10
भारत से बाहर क्रांतिकारी गतिविधियां
127
11
ग़दर आदोलन की विरासत
143
संदर्भ सूची
158
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