भूमिका अध्यात्म-संदेश
हे ईश्वरके प्राणप्रिय राजकुमारो!
हमें आपके सम्मुख सदियों पुराना एक चिरनवीन संदेश रखना है; क्योंकि हमारा विश्वास है कि उससे आपको यथेष्ट प्रेरणा प्राप्त होगी । द्वापरके अन्तमें ऋषि शमीकने महाराज परीक्षित्कों यह संदेश भेजा कि मृगी ऋषिके शापसे तक्षकके काटनेसे राजा मृत्युको प्राप्त होगा, संदेश सुनते ही महाराज विह्वल हो उठे, केवल सात दिन पश्चात् मृत्यु! महाराजको इस समय ज्ञान हुआ कि मानव-जीवन कितना अमूल्य है! उन्होंने एक सरसरी नजर अपने सम्पूर्ण जीवनपर डाली तो उन्हें प्रतीत हुआ कि वास्तवमें अबतक उन्होंने कुछ भी ठोस या स्थायी कार्य नहीं किया है। अपनी बाल्यावस्थासे मृत्युतकके दीर्घकालको हलके जीवन तथा निम्न दृष्टिकोणके साथ गर्वों दिया है। अपनी बड़ी भूलका अनुभव कर वे पश्चात्तापकी वेदनासे विक्षुब्ध हो उठे। सात दिनके अल्पकालमें ही राजाने अपना परलोक सुधारनेका भगीरथ-प्रयत्न प्रारम्भ किया। उन्होंने पूर्ण श्रद्धासे आध्यात्मिक अनुष्ठान किया । शेष जीवनका प्रत्येक पल उन्होंने भगवान्में लगाया । कुछ ही समयमें उनके रोम-रोमसे सच्ची आध्यात्मिकता प्रकाशित होने लगी। उन्हें आत्माकी दीक्षा प्राप्त हुई और उन्होंने वास्तविक जीवनमें पदार्पण किया । मृत्युका भय उनके लिये एक नया पथ दिखानेवाला बना और परिणामस्वरूप वे आत्मवान् महापुरुष बन गये
आप शायद समझते हैं कि बूढ़े तोते क्योंकर कुरान पढ़ सकते हैं। शायद आप कहें कि 'हम तो अब बहुत आयुवाले हो चुके, अब क्योंकर आत्मसंस्कार करें? हमारी तो कुछ एक ही साँसें शेष रही हैं, हमसे कुछ होना-जाना नहीं है।' यदि आपकी ऐसी निराशाभरी धारणाएँ हैं तो सचमुच ही आप भयंकर भूल कर रहे हैं । आत्मसंस्कार-जैसे महान् कार्यके लिये कभी देर नहीं होती । जितनी आयु शेष है, उसीको परम पवित्र कार्यमें व्यय कीजिये। जीवनके प्रत्येक क्षणके ऊपर तीव्र दृष्टि रखिये कि हर एक क्षणका उठ हो रहाहै या नहीं आध्यात्मिक साधन प्रारम्भ करते समय मनमें यह कल्पना न कीजिये कि अमुक महाशय देखेंगे तो हँसेंगे संसारके झूठे लोकदिखावेसे सर्वनाश हो जाता है तथा ऐसे अनेक व्यक्ति मर-मिटते हैं जो वास्तवमें उठनेकी क्षमता रखते हैं । नित्य बहुतसे ऐसे व्यक्ति मरते हैं, जो इसी लोक- दिखावेकी मिथ्या भावनाके डरसे जप, यज्ञ, साधन, प्रत्याहार, आसन, प्रार्थना, मौनव्रत या दृढ़ चिन्तन इत्यादि कोई भी आत्मसंस्कारका कार्य प्रारम्भ न कर सके । यदि ये डरपोक लोग समयको ठीक खर्च करनेकी उचित योजना बनाते तो बहुत सम्भव था कि प्रभावशाली जीवन व्यतीतकर वे कुछ नाम या यश कमाते, अपने उद्योगोंसे अपना तथा दूसरोंका भला करते एवं मानव-जीवनको सफल कर सकते
हे सच्चिदानन्दस्वरूप आत्माओ!
जो समय व्यतीत हो गया, उसके लिये शोक मत कीजिये जो शेष है, वह भी इतना महत्वपूर्ण है कि उचित रीतिसे काममें लाये जानेपर आप अपने जीवनको सफल कर सकते हैं तथा गर्व करते हुए संसारसे विदा हो सकते हैं आजसे ही सँभल जाइये तथा अध्यात्म-पथको परम श्रद्धापूर्वक ग्रहण कीजिये तत्त्वतः ईश्वर स्वयं ही साधकोंको अन्तिम लक्ष्मतक पहुँचानेके लिये प्रयत्नशील है वह आपकी गुत्थियोंको स्वयं खोलता हुआ चलेगा मध्य गुरु आत्मा है उसीको विकसित कीजिये प्रारम्भमें जो छोटी-मोटी कठिनाइयाँ आवें, उनसे कदापि भयभीत न होइये यही परीक्षाका समय होता है दो-चार बार कठिनाइयाँ पार करनेपर आप आत्मिक दृढ़ता प्राप्त कर लेंगे आगे बढ़नेवाले महान् पुरुषोंको इसी आत्मिक दृढ़ताका बल होता है, इसी गुप्त प्रेरणासे वे प्रलोभनोंका तिरस्कार करनेमें समर्थ होते हैं
हे नवीन युगके अग्रदूतो!
आज विश्वभरमें खतरेका बिगुल भयंकर नाद कर रहा है उसका संदेश है कि हम सावधान हो जायें तथा संसारकी अनित्यताके पीछे जो महान् सत्य अन्तर्निहित है, उसे पहचान लें अपने अन्तःकरणका कूड़ा-करकट बुहार डालें इस विषयमें महाभारतमें कहा गया है-
आत्मानदी संयमपुण्यतीर्थां सत्योदका शीलतटा दयोर्मि: ।
तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुदध्यति चान्तरात्मा ।।
अर्थात् 'हे पाण्डुपुत्र! आत्मारूपी नदी संयमरूपी पवित्र तीर्थंवाली है। उसमें सत्यरूप जल भरा हुआ है । शील उसका तट है और दया तले हैं । उसीमें स्नान करो, जलके द्वारा अन्तरात्माकी शुद्धि नहीं हो सकती । वास्तविक शुद्धिकी ओर बढ़िये । असली शुद्धि तो एकमात्र आत्मज्ञानसे ही होती है ।
हे ईश्वरीय तेजपिडो!
मत समझिये कि आप माया-मोहके बन्धनोंमें जकड़े हुए हैं और दुःख द्वन्होंसे भरा हुआ जीवन व्यतीत करनेवाले तुच्छ जीव हैं, क्षुद्र मनोविकारोंके दास हैं। तुच्छ इच्छाएँ आपको दबा नहीं सकतीं। स्वार्थकी कामनाएँ आपको अस्त-व्यस्त नहीं कर सकतीं। प्रबल-सेप्रबल दुष्ट आसुरी भावोंका आपपर आक्रमण नहीं हो सकता । आपको विषय-वासना अपना गुलाम नहीं बना सकती। आप बुद्धिमान् हैं। आपकी बुद्धिमें विषयोंके प्रलोभनोंसे बचनेका बल है। अत: विवेकवती बुद्धिको जाग्रत्कर अध्यात्म-पथपर आरूढ़ हो जाइये । यही वास्तविक मार्ग है।
विषय-सूची
1
उठो
9
2
जागते रहो!
11
3
तुम महान् हो
15
4
अपने-आपके साथ सद्व्यवहार
20
5
जियो तो कुछ होकर जियो
24
6
हमारे मनका आरोग्य
27
7
उन्नतिके लिये आत्मपरीक्षा अनिवार्य है
30
8
आत्मसुधारकी एक नवीन योजना
34
आजके मानवकी सबसे बड़ी आवश्यकता
39
10
निराशाका अन्त
44
सावधान! अज्ञानसे परिचित रहना
48
12
अपने कामको ईमानदारीसे पूर्ण करना ही प्रभुकी पूजा है
51
13
स्वाध्यायमें प्रमाद न करें
54
14
अपनी ओर देखिये
64
जाकी रही भावना जैसी
66
16
सही विचारकी बाधाएँ
71
17
अपने सिद्धान्तोंको व्यावहारिक रूप दीजिये
74
18
मनमाना आनन्द मिलेगा
75
19
अपने विषयमें अशुभ-चिन्तन न कीजिये
77
सोनेकी हथकड़ी -बेड़ियोंसे अपनी आत्माको न बाँधिये
78
21
दुर्भावपूर्ण भावनाओंको इस प्रकार जीत लीजिये
79
22
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकारका स्वरूप
85
23
आत्मसंकेतद्वारा आकर्षक व्यक्तित्वका निर्माण
89
जीवन - धन
97
25
अध्यात्म विद्या
102
26
आध्यात्मिक जीवन
105
परिवारकी धार्मिक व्यवस्था
110
28
आत्मिक विकासकी चार कक्षाऐं
115
29
मनुष्यके दोष
119
दुर्भावपूर्ण कल्पनाएँ
123
31
आदिम प्रवृत्तियोंका परिष्कार
126
32
गृहस्थमें संन्यास
130
33
आध्यात्मिक शान्तिके अनुभव
134
आत्माको आध्यात्मिक आहार दीजिये
138
35
भगवान्को जगाओ
139
36
मैं सब जीवोंको क्षमा करता हूँ
141
37
मोहके बन्धन मत बढ़ाइये
143
38
मानवता ही सर्वोत्तम धर्म है
146
गायत्री एक जीवन-विद्या है
152
40
ईश्वरको अपने भीतरसे चमकने दीजिये
157
41
जब ईश्वरसे मन ऊबता है
162
42
निर्भय- स्वरूप आत्माका बोध
166
43
आत्मोन्नतिका सर्वोत्कृष्ट साधन आत्मभावका विस्तार
171
पश्चात्ताप ही आत्मशुद्धि है
175
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