पुरोवाक्
भारतीय वाड्मय में नारी को शक्तिरूपा देवी कहा गया है । सभी देवताओं ने देवी की पूजा की है आद्याशक्ति के रूप में । स्वयं शंकर ने नारी की महिमा की वृद्धि के लिए अर्द्धनारीश्वर रूप ग्रहण किया था । सती महिमा से हमारे धार्मिक ग्रंथ समृद्ध हैं ।
पुरुष साधकों के साथ साथ साधना के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान कम नहीं है । प्रस्तुत संग्रह की सभी साधिकाएँ अपने आपमें अद्भुत हैं । चाहे वह माँ शारदा हों या गोपाल की माँ सिद्धिमाता हों या गौरी माँ । प्रत्येक की साधना अलग अलग ढंग की है ।
माँ शारदा परमहंस रामकृष्णजी की पत्नी थी । बचपन में ही उन्हें ज्ञात हो गया था कि उनका विवाह परमहंसजी के साथ होगा । उधर परमहंसजी भी इस सत्य को जानते थे । अपने गुरु तोतापुरी के निर्देशानुसार दोनों पति पत्नी एक ही बिस्तर पर नौ मास शयन करते रहे, पर किसी के मन में काम भावना उत्पन्न नहीं हुई । स्वयं परमहंसजी ने अपने इष्ट काली माता से निवेदन किया था माँ उसकी कामभावना नष्ट कर दो । आगे चलकर उन्होंने माता शारदा की चरण पूजा अपने इष्ट देवता के रूप में की । यहाँ तक कि अपने निधन के बाद सूक्ष्म रूप में प्रकट हो निरन्तर माँ शारदा की सहायता करते रहे । कभी भी वैधव्यसूचक वस्त्र धारण करने नहीं दिया । माँ शारदा की माँ ने एक बार परमहंस से कहा था कि मेरी बेटी को संतान नहीं हो रही है । परमहंसजी ने कहा माँ घबराती क्यों हो? उसे इतनी संतानें होंगी कि दिन रात माँ माँ स्वर सुनते सुनते वह पागल हो जायगी ।
आगे चलकर रामकृष्णजी के सभी शिष्य माँ शारदा को माँ के रूप में सम्बोधन करते रहे । अगर माँ शारदा कृपा आशीर्वाद न देतीं तो विवेकानन्दजी विदेशों में सफलता प्राप्त न करते ।
गौरी माँ भी एक कर्मठ महिला थीं । परमहंसजी ने योगबल से अपने पास बुलाकर उन्हें अपना शिष्य बनाया था । स्वभाव से वे जितनी तेजस्वी थीं, उतनी ही कर्मठ थीं । बंगाल की अनाथ महिलाओं की मसीहा थीं ।
गौरी माँ की भतीजी दुर्गा माँ का जीवन कम अद्भुत नहीं रहा । सम्पूर्ण भारत में एक यही महिला थीं जिनका विवाह पुरी के जगन्नाथ विग्रह से हुआ था । वे आजीवन भगवान् जगन्नाथ को अपना पति मानती रहीं । गोपाल की माँ जो कि बचपन में विधवा हो गयी थीं, अपनी निष्ठा और लगन से परमहंसजी को गोपाल (कृष्ण का बालरूप) के रूप में प्राप्त की थीं । उनके दिमाग में कभी यह विचार ही नहीं उत्पन्न हुआ कि यह नन्हा बालक कब, कहाँ से आ गया । वह आजीवन उस बालक को गोद में लिए उसकी सेवा करती रहीं ।
सिद्धिमाता अपने नाम के अनुसार पूर्ण योगसिद्ध रहीं । इन्हें घर बैठे सारी ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो गयी केवल नाम जपने से । उपासना या साधना करने की आवश्यकता नहीं हुई । दिन रात अपने भाव में खोयी रहती थीं । अपने जीवन में कभी उन्होंने मोटर तक नहीं देखी । घर से गंगा स्नान करने जातीं और फिर अपने कमरे में आकर नाम जपतीं । प्रत्यक्ष रूप में अनेक देवी देवताओं का दर्शन करती रहीं । उनके शरीर में ही मंत्र अपने आप उत्कीर्ण हो जाते थे जिसे पढ़कर लोग शिष्य बन जाते रहे ।
आनन्दमयी माँ बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की एक महान् संत महिला थीं । शिक्षित न होते हुए भी वे धर्म, दर्शन, वेदान्त के गूढ़ प्रश्नों का इस प्रकार उत्तर देती थीं कि बड़े बड़े विद्वान् चकित रह जाते थे । सिद्धिमाता की भाति आपके भी भाव स्वत: प्रस्फुटित हुए थे । यहाँ तक कि आपके पति भोलानाथजी ने आपका शिष्यत्व स्वीकार कर माँ कहा था ।
शोभा माँ को रामदास काठिया बाबा के शिष्य सन्तदास बाबाजी से नाम प्राप्त हुआ और बचपन से माता आनन्दमयी की भाँति जिज्ञासुओं के प्रश्नों का उत्तर देती रहीं । सिद्धिमाता की भाँति आपने अनेक देव देवियों के दर्शन किये हैं ।
अनुक्रमणिका
श्री माँ शारदामणि
1
गौरी माँ
28
दुर्गा माँ
51
गोपाल की माँ
67
श्री माँ आनन्दमयी
77
श्री सिद्धिमाता
97
शोभा माँ
110
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