मैं न तो कोई लेखक हूँ, न कोई कवि या गीतकार | मुझे तो यह भी ज्ञान नहीं कि भजन क्या होता है, गीत या ग़ज़ल किसे कहते हैं | जो गुरु कृपा से हृदय में भाव उदय हुआ उसे वैसा ही लिख दिया | क्योंकि श्रीमद् आघशंकराचार्य के शब्दों में (शिवमानस स्त्रोत ) " आत्मलम गिरिजामति" तब फिर शब्द या भाव मेरे कहा से हुए? अपना कहना तो चौर्य कर्म हुआ | मेरी पढाई लिखाई भी कुछ खास नहीं हुई | लेखन माधयम भी आंग्ल भाषा थी | यह तो गुरुदेव कि महिती कृपा थी कि उन्होंने हिंदी लिखना सिखा दिया | मैने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी कुछ और वह भी भजन या गीत कुछ भी कहिये लिख पाऊँगा | यह तो एक बार श्री गुरु महाराज जी श्री रामनाथ जो के यँहा मुलुण्ड-मुम्बई में ठहरे हुए थे और श्री गुरुग्रंथ साहिब पर रामनाथ जी कि बहन को लिखवा रहे थे | मैं पास में निठल्ला बैठा था कि अचानक श्री गुरु महाराज ने मुझे संबोधित कर कहा "चलो भजन लिखो" | मेरे प्राण सूख गये- पसीना आ गया | फिर प्रयास किया चार- छ: लाइन लिखी | श्री गुरु महाराज ने पढ़ा और कहा "यह तो एक भजन बन गया | "अब लिखने का प्रयास जारी रखो | तुम थोड़े ही लिखोगे | माँ भगवती कि कृपा हैं | वह स्वयं लिखवाती हैं | यह मेरा प्रथम अनुभव था कि गुरु कृपा चाहे जिससे कुछ भी सामर्थ्य प्रदान कर करवा सकती हैं |
यहाँ एक प्रसंग और लिखना चाहूँगा | जब गुरु महाराज देवास आश्रम में थे तो मैं रात को सोने से पहले प्रणाम करने जाता था | एक रोज गया तो रसोई का दरवाजा बंद था | शायद महाराज भोजन कर रहे होंगे, यह सोचकर बाहर से प्रणाम कर के खड़ा रहा | अंदर श्री गुरु महाराज से किसी ने कहा गोपाल स्वामी जी भजन लिखते हैं वह अपना नाम नहीं लिख कर आपका नाम क्यों लिखते हैं | श्री गुरु महाराज ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का उदाहरण देते कहा कि उसमे पहला महला, दूसरा महला, चौथा महला पाँचवा महला, नवमां महला | इसका अर्थ हैं कि पहला महला तो स्वयं श्री गुरु नानकदेवजी ने लिखा हैं | बाकि उनके उपरांत आये गुरुओं ने लिखा | किंतु किसी ने अपना नाम नहीं लिखा | क्योंकि वे समझ गये थे कि शक्ति तो श्री नानक देव जी कि हैं अतः सबने शबद के अंत में अपना नाम देने के स्थान पर लिखा कह नानक नानक ही तो असली शक्ति थी जो लिखा रही थी | इसी कारण गोपाल स्वामी अपना नाम नहीं देते | पर भजन पढ़ने वाला समझ जाता हैं कि गोपाल स्वामी ने तो लिखा भर हैं | लिखवाया तो गुरु शक्ति ने |
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