सुख हर कोई चाहता है लेकिन सुख प्राप्ति के लिए जो उपाय वह करता है, उनसे दुख ही मिलता है। कारण यह है कि मनुष्य ने भोग-उपभोग के सांसारिक साधनों को ही सुख का आधार मान लिया है। इसी आसक्ति के कारण वह अध्यात्मिक, व्यावहारिक और मानवीय गुणों से दूर होता जा रहा है, यही उसके दुख का कारण है। इसी रहस्य को पुस्तक में प्रमुखता से रेखांकित किया गया है।
"मंथन करें दिन रात जल, घृत हाथ में आवे नहीं,
रज-रेत पेले रात दिन, पर तेल ज्यों पावे नहीं।
सद्भाग्य बिन मिलती नहीं ज्यों संपदा व्यापार से,
निज आत्मा के भान बिना त्यों सुख नहीं संसार में।"
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन सुखी, स्वस्थ, संपन्न एवं आनंद से ओत-प्रोत हो परन्तु क्या केवल चाहने मात्र से ऐसा हो सकता है? अपने सपनों को साकार करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति, सुन्दर सुविचार, वांछित पुरुषार्थ और अपेक्षित व्यवहार - इन सब चीज़ों कि आवश्यकता होती है। माना कि जीवन में कदम कदम पर रुकावटें हैं, बाधाएं हैं पर कठिनाइयों से हार मान कर बैठ जाना भी तो कायरता है।
सेना का एक जवान ऐसे ही सीमा पर जाकर शत्रु से युद्ध नहीं करता। उसे पहले ट्रेनिंग लेनी पड़ती है, अनेक साहसिक करतब दिखाने पड़ते है, आवश्यक हथियार लेने पड़ते हैं, अदम्य साहस और मनोबल जुटाना पड़ता है, तब कहीं जाकर वह शतु को परास्त करके विजयी होता है।
जीवन भी एक सफर से कम नहीं। सुखी जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए विवेक पूर्ण व्यवहार से सबको प्रभा- वित करने का निरंतर प्रयास करना होगा तभी मंजिल मिलेगी। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। ईश्वर ने हमें अनोखी सूझ बूझ और शक्ति दी है। अपनी उस शक्ति को पहचान कर दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ना होगा। कोई भी व्यक्ति सारी प्रसन्नता लेकर पैदा नहीं होता लेकिन उसमें इतनी योग्यता होती है कि वह अपने लिए प्रसन्नता पैदा कर सकता है।
आपने बहुत लोगों को यह कहते सुना होगा कि संसार दुखों का घर है; जिंदगी दुखों का बंडल है; यहां हर आदमी दुखी और परेशान है; जिंदगी में भला आराम कहां मिलता है; भागदौड़ करते करते जिंदगी बीत जाती है आदि-आदि। लेकिन क्या सब जगह निराशा का ऐसा ही वातावरण है। दुखों से भरे इस संसार में ऐसे लोग भी हैं जो पूर्ण रूप से सरल, संतुष्ट और खुशहाल हैं।
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