लेखिका के विषय में
जिस प्रकार कस्तूरी वाला हिरण अपने अन्दर कीं कस्तूरी की सुगन्ध पाकर उसे ढूँढने के लिए भागता फिरता है जबकि कस्तूरी उसकें पास है, उसी प्रकार की इस समय मानव की स्थिति है। प्रकृति-प्रदत्त इस शरीर को स्वस्थ रखने की शक्ति हमारे शरीर के अन्दर है और हम बाहर भटक रहे हैं, जिसका परिणाम है कि विज्ञान के शिखर पर पहुँच जाने पर भी मानव का स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। हमारे शरीर की रचना इस प्रकार की है कि यदि यह रोगग्रस्त हो जाता है तो उसकी चिकित्सा उसी तत्व द्वारा करने पर वह रोगमुक्त हो जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के वैज्ञानिक युग में हर क्षेत्र में अपूर्व उन्नति हुई है। वैज्ञानिकों ने किसी क्षेत्र में चाहे कितनी ही जबरदस्त प्रगति क्यों न हासिल कर ली हो लेकिन वह ईश्वर-निर्मित ब्रह्माण्ड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर पाया है, ''यह अटल सत्य है और सदा रहेगा, चाहे कोई माने या ना माने ।''यही बात चिकित्सा के क्षेत्र के बारे में भी कही जा सकती है। कोई भी चिकित्सा पद्धति सम्पूर्ण रोगों के निदान में शत-प्रतिशत सफल सिद्ध नहीं हुई है। यदि ऐसा सम्भव होता तो आज विश्व में रोगों की सख्या बढने की जगह कम हो गई होती।
इसकें पीछे प्रमुख कारण हैं-रोगो में दी जाने वाली औषधियाँ जिनके सेवन से रोग ठीक होने की बजाय दब जाते है और जो कुछ समय पश्चात् गम्भीर रूप से उभर कर सामने आते हैं । जो औषधियाँ सफल सिद्ध हुई हैं वे इतनी महँगी होती हैं कि आम इन्सान उन्हें खरीद ही नहीं पाता है । तब मन में ये विचार आना स्वाभाविक ही था कि, ''क्या बिना औषधि सेवन किए; सहज, सरल व सुलभ कोई चिकित्सा पद्धति ऐसी नहीं है, जिससे समस्त रोग बिना साइड-इफैक्ट्स के ठीक किये जा सकें?' नि संदेह हमारी प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ऐसी एक पद्धति है जिससे सभी रोग ठीक किये जा सकते हैं।
इसकें लिए सबसे पहले मैं अपने पूज्य पिताजी (ससुरजी) स्वर्गीय श्री एन-सी. जशनानी की जीवन-भर ऋणी रहूँगी, जिन्होंने हमें प्राकृतिक चिकित्सा की सहज सुलभ उपलब्ध चिकित्सा की जानकारी दी। जिनकी प्रेरणा, सहयोग व आशीर्वाद से हमने एन.डी. की डिग्री प्राप्त की । आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके साथ रहते हुए हमने मानव-जीवन के महत्त्व को अच्छी तरह से समझा। उनके द्वारा कहे गये ये अनमोल शब्द, 'तुम मेरी बहू नहीं, बल्कि बेटी हो और जीवन में मानव जाति के लिए कुछ ऐसा करो कि आने वाली पीढी बिना औषधि-सेवन के स्वस्थ व रोगमुक्त रह सकें।'
ये शब्द आज भी हमारे जीवन में शक्ति व प्रेरणा का संचार करते हैं । आज पिताजी हमारे बीच होते तो सबसे ज्यादा खुश होते कि हमने उनके उद्देश्य की पूर्ति के लिए 'पहला कदम' बढ़ाया है। उनकी पवित्र आत्मा जहाँ भी होगी हमें आशीर्वाद दे रही होगी । हमने जो प्राकृतिक चिकित्सा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए पहला कदम उठाया है वह आगे बढ़ता ही जायेगा, ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है। मैं ऋणी हूँ अपनी प्यारी मम्मी (सासू माँ) श्रीमती निर्मला देवी जशनानी की जिन्होंने मेरी पढ़ाई के वक्त घर-परिवार की जिम्मेदारी से मुझे मुक्त रखा व अपना पूर्ण सहयोग व आशीर्वाद दिया ।
मैं विशेष ऋणी जूँ अपने पति श्री जी.सी. जशनानी जी की जिन्होंने मुझे एन.डी. की पढाई के समय पूर्ण सहयोग व प्रेरणा दी। आज जो डॉक्टरेट की उपाधि मैंने प्राप्त की है उसकें लिए सबसे ज्यादा योगदान उन्हीं का है। यदि वे हमारे लिए एन.डी. का फार्म नहीं भरवाते तो शायद यह सम्भव ही नहीं हो पाता। इतना ही नहीं बल्कि 'निरोगी काया केन्द्र' संस्था खोलने में उनका भरपूर मार्गदर्शन रहा है उन्हीं के कहने पर मैंने सरल प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को जन-मानस तक पहुँचाने के लिए समाचार-पत्रों, स्वास्थ्य-पत्रिकाओं में अपने लेख भेजे।
मेरे जीवन का वह अविस्मरणीय पल, जब मेरा लिखा 'नाभि' सम्बन्धी पहला लेख जयपुर से प्रकाशित सर्वाधिक लोकप्रिय समाचार-पत्र 'दैनिक भास्कर' में। फरवरी, 1998 गुरुवार को छपा, मैं जीवनभर नहीं भूल सकती। यह लेख मैंने लिखा जरूर था लेकिन इसे प्रकाशित करवाकर मेरे पति श्री जी.सी. जशनानी जी ने जो खुशियों के पल मुझे प्रदान किये हैं उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। मैं आजीवन उनके प्यार व सहयोग की ऋणी रहूँगी । उन्हीं के सहयोग से आज हम सिर्फ प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने सम्बन्धी अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित कर पाये हैं।
अनुक्रमणिका
1
'मैं' और 'मेरा' का भेद
1-2
2
शरीर की रचना
3-4
3
रोग का कारण व निवारण
5-6
4
वैकल्पिक चिकित्सा क्या है
7-11
5
चुम्बक चिकित्सा
12-15
6
रेकी
16-23
7
उपवास
24-26
8
सूर्य किरण चिकित्सा
27-32
9
मिट्टी द्वारा काया-कल्प
33-35
10
प्रकृति से तालमेल
36-39
11
शरीर का सशक्त और समर्थ प्रतिरक्षा तंत्र
40-42
12
वात प्रकोप
43-45
13
पित्त प्रकोप
46-48
14
उच्च रक्तचाप 'ब्लडप्रेशर'
49-52
15
निम्न रक्तचाप
53-54
16
नेत्र (आँखें)
55-59
17
अनिद्रा
60-62
18
गर्दन का दर्द (सर्वाइकल पेन)
63-65
19
क्षय रोग
66-72
20
दमा (श्वास रोग)
73-78
21
मधुमेह
79-83
22
नाभि
84-85
23
गुर्दों को स्वस्थ कैसे रखें
86-88
24
कब्ज
88-91
25
हर्निया
92-94
26
साईटिका (गृधसी)
95-96
27
घुटनों का दर्द
97-100
28
फटी एड़ियाँ
101-102
29
मोटापा
103-105
30
गंजापन-केशों का झड़ना, सफेद होना आदि
106-109
31
आसन करने की पद्धतियाँ
110-117
32
आसनों के लाभ
118-119
33
परिक्रमा का महत्व व लाभ
120-124
34
सावन में झूला झूलना स्वास्थ्यवर्धक
125-126
35
सिर्फ ताली बजाकर रोगों का इलाज
127-128
36
नाश्ते के लिए अंकुरित भोजन
129-129
37
फलों द्वारा रोग मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ
130-133
38
संतरे के औषधीय गुण एव उपचार
134-136
39
आलू खुराक भी है दवा भी
137-138
40
फर्क जानिए, कोलेस्ट्रोल और चर्बी का
139-141
41
खट्टे नीबू में हैं कितने मीठे गुण
142-144
42
विभिन्न बीमारियों में कराई जाने वाली जाँच
145-146
43
शुभ विचारधारा
147-147
44
बारह मास के बारह नियम अपनाएँ
148-148
45
पत्रिकाओं में प्रकाशित स्वास्थ्य सम्बन्धित लेखों का संदर्भ
देकर पाठकों का पत्र-व्यवहार द्वारा सम्बन्धित रोग की
प्राकृतिक चिकित्सा पूछना
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