योग' एक तपस्या है। शरीर को निरोग एवं सशक्त बनाने की एक संपूर्ण विधि है 'योग'। योग असाध्य रोगों को भी दूर भगाता है। आज संसार भर के लोग योग और इसके चमत्मारी प्रभावों के प्रति आकर्षित हैं। विश्वप्रसिद्ध योगगुरु बी.के.एस. आयंगार की इस पुस्तक 'योग द्वारा स्वस्थ जीवन' में आसन किस प्रकार किए जाएँ, किस प्रकार होनेवाली गलतियों को टाला जा सकता है और अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है, इन बातों को आम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। योग के द्वारा कैसे व्यक्तियों का उपचार किया जाए, इसका त्रुटिहीन अभ्यास करते हुए अधिकाधिक लाभ कैसे प्राप्त किया जाए-इसका सचित्र वर्णन है।
पुस्तक का उपयोग करना आसान व सरल हो, इस दृष्टि से पुस्तक के अंत में दो परिशिष्ट जोड़े गए हैं। परिशिष्ट 1 में आसन क्रमांक और आसनों के नाम देकर उनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट 2 में किस रोग में किस आसन से लाभ होगा, उनका वर्णन है। स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखानेवाली सरल-सुबोध भाषा में योग पर एक अनुपम कृति ।
बी.के.एस. आयंगार का जन्म 24 दिसंबर, 1918 को कर्नाटक के कोलार जिले के बेलूर नामक स्थान में हुआ। पंद्रह वर्ष की अल्पायु में योग सीखना प्रारंभ किया और 1936 में मात्र अठारह वर्ष की आयु में धारवाड़ के कर्नाटक कॉलेज में योग सिखाना प्रारंभ किया। साथ निस्स्वार्थआजीवन योग के प्रति समर्पण एवं सेवाभाव के कार्यरत; अनेक सम्मान एवं उपाधियों से विभूषित। वर्ष 1991 में 'पद्मश्री' और जनवरी 2002 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित। अगस्त 1988 में अमेरिका की 'मिनिस्ट्री ऑफ फेडरल स्टार रजिस्ट्रेशन' ने सम्मान- स्वरूप उत्तरी आकाश में एक तारे का नाम 'योगाचार्य बी.के.एस. आयंगार' रखा। सन् 2003 में 'ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी' में आधिकारिक तौर पर नाम सम्मानित ।सन् 2004 में अमेरिकन 'टाइम मैगजीन' द्वारा 'हीरोज एंड आइकंस' उपशीर्षक से विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित। आधुनिक भारत के योग विषय के भीष्म पितामह के रूप में प्रसिद्धि। विश्व के अनेक ख्यात एवं लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति शिष्य रहे हैं।
'योग द्वारा स्वस्थ जीवन' पुस्तक को पाठकों के समक्ष रखते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। योग साधना के अध्ययन और अध्यापन के अपने अब तक के जीवन में मैंने जो शहद पाया, उसकी यह एक बूँद भर है। अध्यापन के दौरान छात्र अपने साथ ऐसे प्रश्न लाया करते थे, जो मेरे लिए चुनौती बन जाते थे। स्वस्थ शरीर का, निरोगी व्यक्ति शायद ही कभी मिलता। और अगर कभी मिलता भी तो भीतर कहीं- न-कहीं वेदना की टीस होती ही थी, अड़चनें होती ही थीं। उनमें से कइयों के लिए उठना-बैठना, चलना-हिलना असंभव सा हो जाता था। कुछ वृद्ध बिस्तर पकड़े होते थे। दवा या शल्य-क्रिया (ऑपरेशन) का भी असर न होनेवाली कुछ बीमारियाँ होती थीं, जिनमें कसरत कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में उनका स्वतंत्र रूप से योगासन करना तो असंभव ही होता। और जरूरी नहीं कि ऐसा रुग्ण एक ही बीमारी से पीड़ित हो। उदाहरण के लिए, रीढ़ की चकती सरक गई हो (स्लिप डिस्क) और उच्च रक्तचाप या साइटिका का दर्द एवं सिर दर्द सब एक साथ हों। अब यदि स्लिप डिस्क हो अथवा साइटिका हो तो शरीर को आगे की तरफ झुकाया नहीं जा सकता (पश्चिम प्रतन)। और यदि सिर दर्द व उच्च रक्तचाप हो तो शरीर को पीछे झुकानेवाले आसन (पूर्व प्रतन) मना हैं।
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