भाषा विचारों के आदान- प्रदान का माध्यम ही नहीं, राष्ट्र की अस्मिता की भी पहचान हौ इस पटुतक का केन्द्रीय विषय हिंदी भाषा, साहित्य और सम्म `लन हो भाषा और साहित्य केविकास की यात्रा हिन्दुस्तानी के विकास की यात्रा है जो काशी नागरी प्रचारणी सभा, बनारस एवं बाद में हिंदी साहित्य सम्मेलन इसकी पृष्ठभूमि तैयार हुई। एक तरफ महात्मा गाँधी तो दूसरी तरफ पुरुषोत्तम दास टण्डन हिंदी के पक्षधर थे। भाषा के शैलीगत योगदान, शब्द- विन्यास, वाक्य-गठन और साहित्य के विकास में सृजनात्मक, आलोचनात्मक, गवेषणात्मक आदि के विकास में इस परुतक का योगदान सराहनीय है।
नाम- डॉ. त्रिभुवन गिरि
जन्म- 08 जुलाई सन 1985 जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- बी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय (2004), बी.एड्. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय (2007), एम. एड्. कानपुर विश्वविद्यालय (2012), एम.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय (2013), यू.जी.सी. नेट, (शिक्षाशास्त्र), 2012 यू.जी.सी. जे.आर.एफ. (हिन्दी), 2014, एस.आर.एफ. (2019), पी.एच.डी. (हिन्दी एवं भाषाविज्ञान विभाग) 2021, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर, बैचलर ऑफ जर्नलिज्म कम्यूनिकेशन (BJC) जबलपुर (2022)
हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज, हिंदी के व्यवहारिक ज्ञानकोश को निरन्तर बढ़ा रहा है। हिंदी साहित्य सम्मेलन की ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। सम्मेलन अपने सीमित साधनों के बावजूद अपने उद्देश्य की पूर्तिकर रहा है। हिंदी भाषा के उन्नयन के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन देश-विदेश में अपना क्षेत्र विस्तार किए है। भाषा की राष्ट्रीय अस्मिता को और प्रखर का प्रयत्न किया है। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रागराज भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के मध्य आदान प्रदान एवं आपसी समझ विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। अन्तराज्यीय सम्मेलन के माध्यम से हिंदी साहित्य सम्मेलन ने हिंदी प्रेमियों, पाठकों, साहित्य प्रेमियों का सजीव केन्द्र बनाने का प्रयत्न किया है।
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